मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!


सिंदूरी रंगों की छटाओं के रेशम के तुकडे, जिन से मैंने बनाई है  है चित्र की पार्श्वभूमी...कुछ रंगीन रूई के तुकडे, टांकें हैं( जिस रूई से सूत  बनता  है), बने हुए सूत से पेड़ काढ़े हैं...रेशम के धागों से कढ़ाई भी की है...आसमान के ऊपरी हिस्से को रेशमी टिश्यु से ढँक के फिर सिल दिया है. सब से नीचे खादी का रेशमी कपड़ा सिल दिया है.

वो यादें भुलाए नही भूलतीं,
तश्तरी लिए आसमान की,
सुनहरे सपने ऊषा परोसती,
जिन्हें दिन में मै बोती रहती,
लहलहाती  फसल सपनों की,
उजालों में शाम के सिंदूरी,
संग सितारों के आती जो रजनी,
मै उन संग खेलती रहती,
भोर भये तक आँख मिचौली,
कभी भी  थकती नही थी......

आज भी  ऊषा आती तो होगी,
संग सपने लाती तो होगी,
जादुई शामों में सिंदूरी,सिंदूरी,
फसल लहलहाती तो होगी,
रैना,संग सितारों के चलती,
खेलती,मचलती तो होगी,
जा सबा! कह दे उनसे,
बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपनकी!
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते  जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,
हर भोर  मुझे जगाएँ,
रह ना जाऊँ कहीँ,
मै आँखें मलती,मलती!
हर शाम आए लेके लाली,
आँगन में उतरे  मेरे चाँदनी,
हो रातें अमावासकी,
हज़ारों,हज़ारों,सितारों जडी,
रहें  आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!

39 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

वाह ! क्या भाव भरे हैं ……………अपने साथ बहा ले गयीं आप तो…………………बेहद शानदार प्रस्तुति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज भी ऊषा आती तो होगी,
संग सपने लाती तो होगी,
जादुई शामों में सिंदूरी,सिंदूरी,
फसल लहलहाती तो होगी,

bahut khoobsurat ..chitr aur kavita dono..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत सुन्दर और ऊपर से शानदार चित्र.

कडुवासच ने कहा…

... बहुत सुन्दर ... बेहतरीन !!!

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

मन के भावों का सुन्दर चित्रण। और "तस्वीर" की बात ही अलग है। सुन्दर!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

जा सबा! कह दे उनसे...बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपन की...
...
हर शाम आए लेके लाली...आँगन में उतरे मेरे चाँदनी,
हो रातें अमावास की,
हज़ारों, हज़ारों, सितारों जडी...रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!

मनमोहक हैं आपकी दोनों कृतियां...

M VERMA ने कहा…

हज़ारों,हज़ारों,सितारों जडी,
रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!
और फिर खूबसूरत कढाई के क्या कहने

Sunil Kumar ने कहा…

बेहद शानदार

Arvind Mishra ने कहा…

अतीत के आईने से उभरती तस्वीर -क्या कहने !

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय क्षमा जी
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए...............बहुत बहुत आभार.
..............कमाल की लेखनी है

Kailash Sharma ने कहा…

वो यादें भुलाए नही भूलतीं,
तश्तरी लिए आसमान की,
सुनहरे सपने ऊषा परोसती,
जिन्हें दिन में मै बोती रहती,
लहलहाती फसल सपनों की,...

क्या सुन्दर कल्पना और भाव हैं जो सराबोर कर देते हैं मन को पूर्णतः...बहुत सुन्दर

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

कविता नहीं पढ़ी उसके बारे में कुछ नहीं कहूँगा. मैं तो बस आपके द्वारा काढ़ा गया चित्र देखता रहा. बेहतरीन कलाकारी.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सिंदूरी ख़्वाब से सजी सुंदर पंक्तियां।

shikha varshney ने कहा…

वाह कितनी खूबसूरत कविता ..एक एक शब्द मोती सा चुन कर माला बनाई है आपने .
और चित्र तो मनोरम है.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

अब मैंने तो कितनी बार दस्तक दी है ...आप द्वार खोलती ही नहीं :)

सुंदर चित्र और रचना.

ZEAL ने कहा…

वो यादें भुलाए नही भूलतीं,
तश्तरी लिए आसमान की,
सुनहरे सपने ऊषा परोसती,
जिन्हें दिन में मै बोती रहती,
लहलहाती फसल सपनों की,
उजालों में शाम के सिंदूरी,
संग सितारों के आती जो रजनी,
मै उन संग खेलती रहती,
भोर भये तक आँख मिचौली,
कभी भी थकती नही थी....

Beautiful expression !

.

Apanatva ने कहा…

kshama nishavd hoo.... kya kamal kee kalakar ho.....aur kavita sarahneey.............
adbhut sangam.......
kala aur lekhan ka...........

मृत्युंजय त्रिपाठी ने कहा…

कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने...

अच्‍छा है, पर ऐसा अब संभव नहीं। अब न तो वे सपने हम देख सकेंगे और ना ही देखने के लिए हमारे पास पल बचे हैं। बचपन के देखे सपने भी तो अब कहां याद आते हैं, नए सपने तो बुनना ही भूल गए हम...। आपके सपने अवश्‍य पूरे होंगे, कोशिश जारी रखिए।

Saleem Khan ने कहा…

बेहद शानदार प्रस्तुति

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

क्षमा जी शुक्रिया मेरी नयी पोस्ट पर कमेन्ट देने के लिए. आप यहां आ सकती हैं.

Anamika7577@gmail.com

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

मुलतः आपकी रचानाओं की तुलना में यह एक लम्बी कविता है. प्रकृति वर्णन बहुत ख़ूबसूरत है. किंतु मध्य में यह क्या हो गया.. प्रकृति तो किसी तरह को कोई भेदभाव नहीं करती, फिर यह अचानक निराशावादी वक्तव्य क्यों! और अंत में आग्रह भी कि वह सब मुझे पुनः मिल जाए.
सम्भवतः जीवन की निराशा और अंधकार में उस सुंदरता से विमुख हो जाने का वर्णन है. यदि ऐसा है तो अच्छा कॉन्ट्रास्ट बन पड़ा है.
और हाँ, आपका शिल्प हर बार की तरह बहुत सुंदर.. बिल्कुल एक सम्पूर्ण कविता!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

चित्र कलाकृति देखी कविता पढी दौनों आकर्षक। कविता में कल्पना भी ऐसी कि अमावस की रात सितारे जडी और साथ में आंगन में चादनी ? भी उतरे । यदि यह न बताया होता कि चित्र स्वयं का बना है तो इतने घ्यान से देखने की जरुरत ही नहीं थी क्योंकि आमतौर पर चित्र कहीं से ले लिये जाते है।

Khare A ने कहा…

bahut sundar kavita, ek dam dhoop si khili khili, man khil utha, aapne jo shabd chune hain ia kavita me, behad sundar aur sarthak hain,

badhai aapko

dipayan ने कहा…

आप चित्र जितना अच्छा बनाती है, उतनी ही सुन्दर तरीके से शब्दो को अपने रचना में पिरोती हैं । सुन्दर प्रस्तुति । बहुत दिनो तक ब्लाग जगत से दूर रहा, इसके लिये माफ़ी चाहूँगा ।

निर्मला कपिला ने कहा…

चित्र देख कर मन करता है तुम्हारे हाथ चूम लूँ। और कविता मे भी शब्दों का कमाल सराहणीय है। शब्दों का और धागो का ये मेल बहुत खूब रहा। बधाई।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

kshmaji bahut sundar badhai

Unknown ने कहा…

वाह क्षमा दोस्त ...बहुत खूब सजाया कविता को !
मुझे बहुत अच्छी लगी ..............

जय हो मंगलमय हो

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

जा सबा! कह दे उनसे,
बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपनकी!
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,
...बहुत खूब। शब्दों की कढ़ाई भी सुंदर।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,
हर भोर मुझे जगाएँ,...

नादिया की तरह बहते पानी की तरह भीगे एहसासों का प्रहाव .... दूर खींच के ले गयी आपकी रचना ....

Dimple ने कहा…

Namaste ji,

Kaise ho aap?
Behadddd sundar likha hai :)
Aur shabdo ka bahut achha mail-milaap banaaya hai aapne :)

Prem sahit,
Dimple

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर ......क्षमा जी...बेहद शानदार प्रस्तुति

Dr Xitija Singh ने कहा…

wah .. bahut sunder bhav liye hai aapki rachna ... ek dam sar sar karti behti chali gayi dil mein ... bahut khoob

mridula pradhan ने कहा…

bahot achchi lagi.

सागर ने कहा…

बस शुक्रिया अदा करने आया हूँ, एक ईमानदार और लगातार बने रहने वाली पाठक को सलाम
करने आया हूँ. कुछ समय सोचालय पर मुसलसल वक्त देने का बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ.... यहाँ
भी ख्याल नदी से बह रहे हैं, इश्वर करे बहती रहे.. हमारी शुभकामनाएं... आमीन

Kavita sundar hai

अशोक कुमार मिश्र ने कहा…

जा सबा! कह दे उनसे,
बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपनकी!
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,,,,,,,,,

कितना अच्छा और सच्चा लिखा है भावनाएं पिरो दी है आपने ............
धन्यवाद.......
http://nithallekimazlis.blogspot.com/

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

बहुत देर से आयी आपकी इस श्रेष्‍ठ रचना को पढने के लिए। बधाई।

abhi ने कहा…

पहले तो मैं चित्र को ही देखते रह गया...बहुत खूबसूरत है...कविता भी बहुत अच्छी है...

Dimple ने कहा…

hello ji,

aisa lag raha tha aap paint kar rahe ho aur main uski painting ko padd rahi hu inn shabdo ke maadhyam se...
bahut saare bhaav daal diye ek ek shabd mein aapne :)
mannn mein ghar kar gayi...

prem sahit,
Dimple

anita saxena ने कहा…

आँगन में उतरे मेरे चाँदनी,
हो रातें अमावासकी,
हज़ारों,हज़ारों,सितारों जडी,
रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी...... बहुत खूब