बुधवार, 1 जून 2011

करूँ तो क्या करूँ?

मैंने पिछले   आलेख में सोचा था,की,माँ बेटी के रिश्ते पे अधिक प्रकाश डालूँगी...लेकिन नही डाल पायी..
अजीब-सी मनस्थिती बनी हुई है. जानती हूँ,की,ये गहरा डिप्रेशन है...उभरना चाहती,हूँ,पर और अधिक डूबती जा रही हूँ...कारण केवल माँ-बेटी के दरमियान का मन मुटाव नही है. बेटी को तो मैंने कबका माफ़ कर दिया...बल्कि उसे दोषी पाया ही नही...मै तो स्वयं को ही दोषी मान के चली हूँ.

इधर मेरी ये हालत है,की,ना लेखन में मन लगता है,ना बागवानी में,ना सिलाई कढ़ाई में. अवस्था बहुत भयावह है...मै खुद इसका बयान नही कर पा रही हूँ...इसी कारण ब्लॉग पे कुछ लिखा भी नही. ब्लॉग पे कुछ पढने में भी मन नही  लगता...हालाँकि कोशिश करती रहती हूँ...नही मालूम की,इस अवस्था से कब और किस तरह बाहर निकल पाऊँगी..दवाई भी ले रही हूँ,लेकिन सब कुछ जैसे बेअसर है...

बस....फिलहाल इतना ही...फिर एक बार अपने ब्लॉगर दोस्तों के आगे  एक सवाल पेश कर रही हूँ...करूँ तो क्या करूँ?

24 टिप्‍पणियां:

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

आप हमारी प्रेरणा हैं. आपसे हमने हौसला सीखा है,जीवन की विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की ताकत पायी है. जीवन की सकारात्मकता को देखा है. निराशा में भी कलात्मकता पाई है..
मुझे लग रहा था तभी उस रोज फोन भी किया आपको. अपना ख्याल रखिये.. और प्लीज़ ब्लॉग पर हमारा साथ न छोडिये!! वरना लोगों का जीवन के संघर्ष पर से विश्वास टूट जाएगा!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्षमा जी ,
अवसाद के क्षणों से निकलने के लिए आपको स्वयं ही प्रयास करने होंगे ..खुद को किसी भी काम में उलझाए रखिये ..कुछ भी लिखती रहिये ...जो भी मन में आए ..ज़रूरी नहीं की वो आप ब्लॉग पर लिखें ..मन की भड़ास ही सही ... धीरे धीरे स्थिति सामान्य होने लगेगी ... आज कल लोंग नेट का इतना प्रयोग कर रहे हैं इसके सदुपयोग और दुरुपयोग के बारे में जानते हैं ... पर फिर भी इन बातों पर अनायास ही विश्वास भी कर लेते हैं ....आपको खुद ही फिर से घर वालों को विश्वास दिलाना होगा ..प्रयास निरंतर करते रहिये ... शुभकामनायें

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अपने आप को व्यस्त अवश्य रखें और कुछ दिनों समय की धारा के साथ प्रवाहित होने दें...

shikha varshney ने कहा…

क्षमा जी ! आपकी पोस्ट्स पढकर मन व्याकुल हो जाता है. परन्तु जीवन की कुछ समस्याओं का हल किसी के पास नहीं होता.अपनी जिंदगी कि जंग हमें खुद ही लड़नी पड़ती है.अपने आप को संभालिए और ठन्डे दिमाग से काम लीजिए वक्त जरुर कोई रास्ता दिखायेगा.
हम सब की दुआएं और शुभकामनायें आपके साथ हैं.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

यह मानसिक अवस्था समय लेती है जाने में, बाह्य गतिविधियों से जुड़ना श्रेयस्कर होना चाहिये फिर वह चाहे टेलिविजन देखने जैसा ही mundane काम क्यों न हो....
शांति.

Apanatva ने कहा…

apne ko vyst rakhiye .bhavukta par bhee ankush jarooree hai.varna ye vivek ko bhee baha le jatee hai.
apnee kala se algav kyo?

take care.
best wishes.

Unknown ने कहा…

DOst DOst Or Dost....aapka or apki beti ka rishta bahut majboot hai...ye chhote mote man mutaw to chalte rahte hai ...aap bade ho bs bhulakar ek nyi shuruaat kijiye....kaise or kya kare ?? iske liye kyo na ek ek cup coffee se shuruaat ki jaye...aap or apki beti ....kuch meethi baato ke sath !!

or ha pareshan na hoeye aap to hum jaiso ko prerna dete ho ....!! isliye kuch nya shuru kare ....apne liye apni beti ke liye !! or haa ek coffee treat to you and ur beti ...take a coffee with meethi meethi baate!

or haa blog laken na chhodna .....hme apko padna achha lagta hai ...!!

Jai HO Mangalmay HO

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

जिनके पास लेखनी होती है वे विपत्तियों से डरते नहीं है। जो कुछ भी विचार आपके मन में आते हैं बस लिखते जाइए। यह भी जरूरी नहीं कि आप उन्‍हें यहाँ प्रकाशित करे ही। देखिए कुछ दिनों बाद आपका मन हल्‍का होने लगेगा। यदि आप इस ब्‍लाग जगत को अपना समझे तो यहाँ प्रकाशित भी कर सकती हैं तो आप अतिशीघ्र स्‍वस्‍थ हो जाएंगी। यह मन की बीमारी है तो मन के संवाद से ही जाएगी। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है।

बेनामी ने कहा…

क्षमा जी.....मैं बस इतना ही कहूँगा की हो सके तो इस परम विराट से जुड़ने की कोशिश करे.....बाकि रिश्ते नाते तब तक हैं जब तक आप उन्हें मानती हैं....एक दिन तो सभी रिश्तो से मुक्त हो जाना है.....तो क्यों न उससे रिश्ता बनाया जाये जो कभी नहीं मिटता....शाश्वत से जुड़े.....उम्मीद है इससे आपका अवसाद दूर होगा|

सदा ने कहा…

जैसे आप के मन की स्थिति है अक्‍सर ऐसे हो जाया करती है ... और फिर जब आप यह मानती हैं कि आप माफ कर चुकी हैं तो ... बस सब कुछ वक्‍त पर छोड़ दीजिए सब ठीक हो जाएगा ..शुभकामनाएं ।

vandana gupta ने कहा…

क्या बात है शमा जी……………देखो आप ऐसे परेशान होंगी तो कैसे चलेगा……………आप को अपना सहारा खुद बनना पडेगा ……………चाहे कितने भी अपने हों मगर कब अपने होते हैं इसलिये हौसला बुलन्द करिये और एक बार फिर अपने काम मे जो भी आप रुचि से कर सके उसमे मन लगाइये मगर मन को यूं ही खाली मत छोडिये नही तो अवसाद पढता जायेगा…………जब तक मन को काबू नही करेंगी तकलीफ़ तंग करेगी कैसे भी करके कोई भी काम करिये चाहे दोस्तो से मिलिये चाहे कोई ऐसा काम जो आप कब से करना चाहती हों और ना कर पाई हो वो कर लीजिये ताकि इस तरफ़ से मन हटे।

kunwarji's ने कहा…

राम राम जी,

असल में हम कुछ भी नहीं कर रहे है,बस करते हुए प्रतीत होते है!ऐसा ही कुछ बताया जाता है!पर जब स्वयं पर गुजरती है तो बतायी-सुनी बाते सब धरी की धरी रह जाती है!बस धीरज धर कर परमात्मा से प्रार्थना करना और हालातो को समझने और समझाने के प्रयास करते रहना चाहिए!बाकी मुझ से तो बहुत अधिक अनुभविजनो के सुझाव और भी आपको मिल रहे और स्वयं आप भी मझ से ज्यादा अनुभवी हो.....

हम भी परमात्मा से प्रार्थना करेंगे जी...

कुँवर जी,

शारदा अरोरा ने कहा…

क्षमा जी , बार बार हम उन्हीं गलियों में क्यों जाएँ , जानते हैं ..इन रास्तों से कहीं पहुंचा नहीं जाता , आप अपनी ताकत को क्यों भुला बैठी हैं , आपकी लेखनी , कमाल का आर्ट एंड क्राफ्ट , हम खुद प्रकाश और एनर्जी का स्त्रोत हैं , बाहर से पाने की आशा की जगह अपनी ऊर्जा को महसूस करें , अब जल्दी से अपना फोन न. मेल करियेगा , मैं आपसे बात करना चाहूंगी . एक बात का ख्याल रखें की अपने आप को किसी न किसी काम में व्यस्त रखें ...एक लिंक भेज रही हूँ ..मानसिक अवसाद से कैसे बचें ....अपना रास्ता स्वयं आलोकित करें http://sharda-arora.blogspot.com/ इसे पढ़ें ...शुभ कामनाओं के साथ

Arvind Mishra ने कहा…

आप भी अजब हैं बच्चों की बातों को इतनी अहमियत देती हैं -बच्चे चीजों के सही पर्सपेक्टिव में नहीं देख पाते ....वे तब अपनी भूलों को रियालायिज करते हैं जब वे खुद माता पिता के उम्र की सीमा छूते हैं ..मन की फांस को निकालिए ...सब ठीक हो जाएगा !

BrijmohanShrivastava ने कहा…

वक्त एक ऐसा मरहम है जो असर तो धीरे करता है पर असर करता जरुर है। आदमी विशेषज्ञ से मिलने में भी कतराता है

ZEAL ने कहा…

जो व्यक्ति या परिस्थिति कष्टकर हो , उसे कहिये बाय-बाय। और निरंतर लिखते रहिये। लेखन में जो शक्ति है वो किसी और में नहीं। आप तो स्वयं ही इतनी साहसी हैं , लेकिन और बनिये...और और और बनिये....और भी ज्यादा बनिये। इतनी ज्यादा की आपके मन के अवसाद , मैदान छोड़कर भाग जाएँ।

श्यामल सुमन ने कहा…

आपसे मिलने पर मैंने महसूस किया था कि आप में काफी सकारात्मकता है और यह सच भी है. फिर इतनी निराशा की बात क्यों? आपको स्वयं को भावनात्मक रूप से मजबूत करना ही होगा. जीवन में स्थितियां बदलतीं रहतीं हैं और उसे निश्चयात्मक सोच से निबटने कि कोशिश भी जारी रहनी चाहिए. मुझे उम्मीद है आप जरुर सफल होंगी. हार्दिक शुभकामनायें.

सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

खाली मत रहिये। कुछ भी करती रहें, व्यस्त रहें। फ़िर आपके पास तो इतनी सशक्त कलम है, हमें इंतज़ार रहेगा आपकी अगली पोस्ट्स का।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दोस्तों से मिलना बाहर निकलना चाहिए .. और किसी अपने करीबी से दुख बाँटना चाहिए ... और भूल जाना चाहिए ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय क्षमा जी
नमस्कार !
यह मानसिक अवस्था समय लेती है जाने में
आप को अपना सहारा खुद बनना पडेगा ……………चाहे कितने भी अपने हों मगर कब अपने होते हैं

Kunwar Kusumesh ने कहा…

डिप्रेसन का साधारण इलाज है.
ज़ियादा न सोंचें.
अपने को busy रक्खें.
अच्छे homeopath से इलाज भी करायें.
Now take care.

Kailash Sharma ने कहा…

समय सबसे बड़ा मलहम होता है..कुछ समय के लिये अपने अतीत से निकल कर वर्तमान में जीने की कोशिश करें. अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होती है. हरेक व्यक्ति के जीवन में ऐसा समय आता है, जब जीवन व्यर्थ लगता है और कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, लेकिन इस अंधकार में भी अगर कोई रास्ता तलाश करें तो अवश्य मिलेगा. अपने आप को व्यस्त रखना सबसे बड़ा तरीका है, क्यों कि मैं स्वयं इसी तरीके से अपने जीवन के विषम अवसादों
से निकलने की कोशिश कर रहा हूँ. हिम्मत रखें सब ठीक होगा. शुभकामनायें और आभार.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बार जीवन मे औइसे ़ाण आते हैं लेकिन हर बार वक्त उनका हल ढूँढ लेता है आपकी पूरी समस्या तो समझ नही पाई लेकिन आप लेखन मे अपना मन लगायें
आज के बच्चों से आपे़क्षायें करने की बजायांपनी तरफ ध्यान दें। साहस साहस साहस बस एक ही दवा है। शुभकामनायें।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

kshama ji mafi chaahti hun dair se pahunchi apke blog tak. kshama ji jahan tak mera vichar hai har insan ko ek acchhe dost ki jarurat hoti hai jis se vo apne sab dil ke avsad share kar sake. agar ye bhi possible nahi ho to aap to net se judi hui hain....apni lekhni se apne avsad par shabdo ka chappu chalaiye aur dhire dhire aap payengi ki ye avsad nichudta jayege...bahut se aise example hain aaj hamare aage, bahut se bloggers ne is baat ko mana hai ki net se judne ke bad vo apne dipression se bahar aa chuke hain. apni mansik bimariyon se nijat pa chuke hain...to dair kis bat ki hai...aap bas 2-4 bar apna man pakka kar ke blog ki duniya me ghus jaiye..likhne ka man na kare to jabardasi padhne ki koshish kijiye...fir dekhiye is net ka jadu aap par hone lagega.

baki hamari duai apke sath hain.

GOD BLESS U AND KEEP U HAPPY.