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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
सूरज मुखी..
एक पुरानी रचना !ख़राब सेहत के कारन बहुत दिनों न कुछ लिखा है न पढ़ा! सभी से क्षमा याचना है!
बचपन में हमारे खेत के एक छोटे हिस्से में सूरज मुखी लगाया करते थे. खेत ख़त्म होते,होते घने पेड़ों के झुरमुट थे. अक्सर अपने संगी साथियों के साथ मै वहाँ खेलने निकल जाया करती. कई बार सिर्फ माँ के साथ चल पड़ती. माँ खेतों में चल रहे काम पे निगरानी करतीं और मै उछलकूद! सूरजमुखी के खेत में पेड़ों के झुरमुट तक पहुँचने के लिए मैंने अपने छोटे,छोटे पैरों से पगडंडी बना रखी थी.
ऐसे ही एक दिन मै खेतों से गुज़र पेड़ों पे छलांगे लगाने झुरमुट में चली गयी. माँ के बुलाने पे निकली तो मैंने गौर किया,की,जब मै दो घंटे पहले खेतमे खड़ी थी तो फूलों की दिशा कुछ और थी! अब फूल घूम गए थे!
बड़ी हैरत से मैंने माँ से सवाल किया:" माँ! ये फूल घूम कैसे गए?"
माँ: "बेटे,ये फूल हमेशा सूरज की दिशामे घूम जाते हैं...कुदरतन..देखो! सूरज वहाँ है,और इनके मुखड़े उसी ओर! इसीलिये तो इन फूलों को सूरजमुखी कहते हैं!"
मै:"और गर सूरज बादलों के पीछे छुपा हो तो?"
माँ:" इन्हें फ़र्क़ नही पड़ता! ये ढून्ढ लेते हैं,चाहे सूरज घने बादलों के पीछे हो!"
खैर ! बरसों बाद मेरी बिटिया जब कुछ ६/७ साल की थी,उस ने एक सूरजमुखी की जलरंगों से पेंटिंग बनाई.उसे राज्य स्तरीय प्रथम अवार्ड मिला. उस चित्र ने मुझे इतना आकर्षित किया,की,मैंने वैसी ही कढाई बनाई.और उसके बाद ना जाने मैंने सैंकड़ों सूरजमुखी बना दिए! भित्ती चित्रों से लेके तो पडदे,चादरें,टेबल covers ,घरकी दीवारें,ना जाने कहाँ,कहाँ सूरज मुखी अपनी जगह बना ने लगी! न जाने कितने तो मैंने अपने दोस्तों को दिए! बिटिया के बने चित्र को बाद में मैंने laminate कर के गोल आकार का कोस्टर बना लिया.उसकी तसवीर नही है,वरना पोस्ट में डाल देती!
किसी तनहा खामोश दोपहर में मै अपनी दीवार पे लगे सूरजमुखी के खेत को निहार रही थी और एक रचना मेरे मन में आती रही...
ना जाने कब बन गयी,
ज़िंदगी का प्रतीक सूरज मुखी?
रात चाहे रही अमावस की,
उसकी भोर रौशन रही!
चाहे छाई बदरी कारी,
सूरज मुखी ने दिशा बतायी!
दिखे न दिखे उस ओर घूम गयी,
उसी की ओर रुख करती रही!
चित्र बनाने के लिए अलग,अलग तरीके अपनाये हैं.सूरज मुखी का खेत जो है,उसकी पार्श्वभूमी अलग,अलग सिल्क के टुकड़ों से बना ली. नीले आसमान पे हल्का-सा सफ़ेद जल रंग लगा दिया! पेड़ों के झुरमुट फ्रेंच नॉट्स से बनाये हैं. सूरज मुखी के फूल जो पीछे की ओर हैं,उन्हें तो सीधे कपडे पे कढ़ाई से बना लिए.जो आगे की ओर हैं,उन्हें पानी में पिघल जाने वाले ,जिलेटिन पेपर जैसे दिखने वाले कपडे पे कढ़ाई से बना लिए. कपडे को पानी में डुबोया तो फूल अलग हो गए.उन्हें एकेक कर टांक दिए.जब इन पे रौशनी पड़ती है तो चित्र में परछाई दिखाई देती है. दाहिने हाथ के कोने में बने पत्ते,स्टार्च किये सिल्क में से काट के टांक दिए हैं.
अन्य चित्रों में सूरज मुखी का मध्य कांच के मोतियों से बनाया है.
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