१) देर ना कर राही...
देर न कर राही , अपनी मंजिल खोज ले ,
नही लौटने वाले ये क़ीमती लम्हें ,
या हाथ पकड़ इन राहों के ...
भोर तेरी मंजिल , तय कर ले ..
२ )ग़म का इतिहास
लंबा गम का इतिहास यहाँ ,
किश्तों में सुनाते हैं ,
लो अभी शुरू ही किया ,
और वो उठके चल दिया ?
बुधवार, 30 सितंबर 2009
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
सिमटे लम्हें...
' बिखरे सितारे' इस ब्लॉग से अलग यह ब्लॉग बनाया...वजह, यहाँ रोज़मर्रा की कुछ घटनाएँ पाठकों के साथ सांझा कर सकूँ...
' बिखरे सितारे ' एक धारावाहिक है।' सिमटे लम्हें', ये स्वतंत्र विचारोंका एक प्रवाह होगा..कभी गद्यमय तो कभी पद्यमय। एक अन्य ब्लॉगर सहेली को आमंत्रित करना चाहती हूँ,कि, ब्लॉग की उपेक्षा ना हो जाय।
' बिखरे सितारे' पे की गयीं कुछ काव्य रचनाएँ यहाँ ज़रूर डाल दिया करूँगी, क्योंकि, कुछ पाठकों के पास धारावाहिक पढ़नेका समय नही होता।
एक 'दैनन्दिनी' की तरह ये ब्लॉग होगा...जो झूलेकी तरह से झूलेगा...वर्तमान से भूतमे...या फिर भविष्य में...मन होता ही ऐसा है..अस्थिर..डोलता रहता है...इसकी नकेल पकड़ना आसान काम नही..सधे हुए साधक/साधू ही ये हुनर जानते हैं....मै इसे अनिर्बंध छोड़ दूँगी...जब जहाँ वो, तब तहाँ मै...
गर कोई ब्लॉगर मित्र अपना साक्षात्कार देने के लिए राज़ी हुए, तो वह भी करना चाहती हूँ...कईयों से काफ़ी कुछ सीख रही हूँ...
आज शुरुआत है...पिछले दो दिन ब्लॉग वाणी बंद होगी ये सबको तक़रीबन विश्वास हो गया था...हुआ क्या था,ये तो अबतक नही पता..लेकिन मन नही मान रहा था,कि, बुराई का अच्छाई पे विजय हो सकता है...कदापि नही...अच्छाई मर के भी, विजयी होती है.....बुराई जिंदा भी रहे, तो पराजितों की तरह जीती है...
सबसे प्रथम सभी ब्लॉगर पाठक दोस्तों को बधाई दूँगी,कि, रावण विजयी नही हुआ....राम गर सत्य का प्रतीक हैं,तो देर सवेर जीत सत्य की ही होगी...आज फिर एकबार विश्वास हो गया। अच्छाई पे लांछन चाहे सैकड़ों लगें, लेकिन वो छुप नही सकती।
आज बस इतना ही...जब जैसा, तब तैसा...ये ब्रीद वाक्य बना रहेगा...
' बिखरे सितारे ' एक धारावाहिक है।' सिमटे लम्हें', ये स्वतंत्र विचारोंका एक प्रवाह होगा..कभी गद्यमय तो कभी पद्यमय। एक अन्य ब्लॉगर सहेली को आमंत्रित करना चाहती हूँ,कि, ब्लॉग की उपेक्षा ना हो जाय।
' बिखरे सितारे' पे की गयीं कुछ काव्य रचनाएँ यहाँ ज़रूर डाल दिया करूँगी, क्योंकि, कुछ पाठकों के पास धारावाहिक पढ़नेका समय नही होता।
एक 'दैनन्दिनी' की तरह ये ब्लॉग होगा...जो झूलेकी तरह से झूलेगा...वर्तमान से भूतमे...या फिर भविष्य में...मन होता ही ऐसा है..अस्थिर..डोलता रहता है...इसकी नकेल पकड़ना आसान काम नही..सधे हुए साधक/साधू ही ये हुनर जानते हैं....मै इसे अनिर्बंध छोड़ दूँगी...जब जहाँ वो, तब तहाँ मै...
गर कोई ब्लॉगर मित्र अपना साक्षात्कार देने के लिए राज़ी हुए, तो वह भी करना चाहती हूँ...कईयों से काफ़ी कुछ सीख रही हूँ...
आज शुरुआत है...पिछले दो दिन ब्लॉग वाणी बंद होगी ये सबको तक़रीबन विश्वास हो गया था...हुआ क्या था,ये तो अबतक नही पता..लेकिन मन नही मान रहा था,कि, बुराई का अच्छाई पे विजय हो सकता है...कदापि नही...अच्छाई मर के भी, विजयी होती है.....बुराई जिंदा भी रहे, तो पराजितों की तरह जीती है...
सबसे प्रथम सभी ब्लॉगर पाठक दोस्तों को बधाई दूँगी,कि, रावण विजयी नही हुआ....राम गर सत्य का प्रतीक हैं,तो देर सवेर जीत सत्य की ही होगी...आज फिर एकबार विश्वास हो गया। अच्छाई पे लांछन चाहे सैकड़ों लगें, लेकिन वो छुप नही सकती।
आज बस इतना ही...जब जैसा, तब तैसा...ये ब्रीद वाक्य बना रहेगा...
लेबल:
क्षमा,
ब्लॉग वाणी विजय,
राम,
रावण,
लम्हें,
विश्वास.,
सत्य असत्य
सदस्यता लें
संदेश (Atom)