ओ मेरे रहनुमा !
इतना मुझे बता दे,
वो राह कौनसी है,
जो गुज़रे तेरे दरसे!
हो कंकड़ कीचड या कांटे,
के चारसूं घने अँधेरे,
बस इक बूँद रौशनी मिले
जो तेरे दीदार मुझे करा दे!
न मिले रौशनी मुझसे
किसीको,ग़म नहीं है,
मुझसे अँधेरा न बढे,
इतनी मुझे दुआ दे!
ओ मेरे रहनुमा!
बस इतनी मुझे दुआ दे!
आजकल ऐसे लगता है जैसे मै किसी गहरी खाई में जा गिरी हूँ।...मेरा आक्रोश कोई सुनता नहीं....दम घुट रहा है.....आनेवाली साँसों की चाहत नहीं.....जीने का कोई मकसद नहीं....क्यों जिंदा हूँ,पता नहीं.......