हम उन दिनों मुंबई में थे . मार्च का महीना था. होली अब के शुक्रवार को थी,इस कारण लम्बा वीक एंड मिल गया था. मेरी चार सहेलियाँ नाशिक से बृहस्पतवार की शाम को ही आ पहुँचीं थीं. खूब गपशप का माहौल बना हुआ था. मैंने काफी सारे व्यंजन,होली के मद्देनज़र बना के रखे थे. शुक्रवार की सुबह मालपुए बनाने का इरादा था. सोचा सबको नाश्तेमे यही परोसा जाये. उसी की तैय्यारी में मै रसोई में लगी हुई थी.
रसोई को लग के बैठक थी,सो साथ,साथ गप भी जारी थी. होली पे फिल्माए गए गीत सुननेकी चाह में टी वी भी चल रहा था.इतने में दरवाज़े पे घंटी बजी. मै पहुँची तब तक अर्दली ने दरवाज़ा खोल दिया था. बता दूँ की मेरे पती तब ऊंचे ओह्देपे (CID )में सरकारी मुलाजिम थे. दरवाज़े पे आयी हुई टोली हमारी सोसायटी के लोगों की ही थी.उस में अधिकतर भारतीय प्रशासनिक सेवामे कार्य रत थे.
"कहाँ हैं तुम्हारे साहब ?" किसीने अर्दली को सवाल किया.
"जी, वो तो बाथरूम में हैं!" अर्दली ने बताया!मै झट इनके छुटकारे के लिए आगे बड़ी और कहा," आप सब को होली मुबारक हो! दरअसल,ये अर्दली अभी,अभी पहुँचा है....इसे नहीं पता की,ये तो सुबह साढ़े छ: बजे ही अपनी गोल्फ किट लिए गोल्फ कोर्स पे गायब हो चुके हैं!"
"अरे, ये जनाब कहीं बाथरूम में छुप के तो नहीं बैठे?"किसी ने अपनी शंका व्यक्त की!
"नहीं,नहीं...ये तो वाकई सुबह गोल्फ खेलने चले जाते हैं...मै रोज़ ही देखता हूँ....चलो,चलो...इन्हें फिर कभी धर लेंगे...",हमारे एकदम सामने रहनेवाले और बेहद करीबी पड़ोसी,रमेश जी ने कहा. सब ने मान लिया !
"लेकिन,आपके हाथ के व्यंजन खाने तो हम ज़रूर आयेंगे!" उनमे से एक ने कहा!
"जी...जी...ज़रूर!!"मैंने कहा...मेरी जान छूटी. पतिदेव को होली खेलना क़तई भाता नहीं! ये तो सचमे बाथरूम में थे! दरवाज़ा बंद होते ही मै बाथरूम के दरवाज़ेपे पहुची,तथा खट खटा के कहा," मै जब तक कहूँ ना,आप बाहर मत आना!" कहके मैंने बाहर से कूंडी लगा दी!
अब हम सहेलियों का गपशप का दौर दोबारा जोर पकड़ गया! मै गरमागरम मालपुए बना बना के मेज़ पे भेजती जा रही थी....हंसी मजाक चल रहा था...फ्लैट सड़क के काफी करीब था,सो सड़क परकी सारी पी,पी,पों,पों सुनायी देती जा रही थी!
"पिया तोसे नैना लागे रे!" ये गीत टी वी पे आया था. उसपे सबने जमके चर्चा की. चर्चा क्या,खूब तारीफ हुई...guide के दिन याद किये,अदि,अदि.
कुछ डेढ़ घंटा या शायद उससे अधिक बीत गया. जमादारनी आयी तथा सीधे मेरे कमरे में गयी और फिर घबराई-सी बाहर आके मुझ से मुखातिब हुई," बाई साहब...! आपने कहना तो था,की साहब अन्दर हैं...मै तो कूंडी खोल सीधे अन्दर पहुँच गयी!"
इतने में पसीने में तरबतर हुए,ये भी सामने आये! मैंने चकराके सवाल किया," अरे! आप गोल्फ खेलने नहीं गए?"
"हद करती हो! गोल्फ खेलने नहीं गया! मुझे बाथरूम में बंद कर के तुम निकल आयीं....ये तक नहीं बताया की,किसलिए बाहर आने से रोक रही हो...pot पे बैठे, बैठे दोनों अखबार तीन,तीन बार पढ़ लिए...मुम्बई की गर्मी अलग! बताओ,गोल्फ खेलने कैसे जाता? तुम्हें इतने भी होश नहीं? दरवाज़ा भी खडकाने से डर रहा था,की,पता नहीं तुमने क्यों टोक दिया है!" पतिदेव उबल पड़े! और मेरे कुछ देर के लिए होश उड़ गए! मै अपनी रसोई और अपनी गपशप में इन्हें बंद कर के भूलही गयी थी!
मेरी शक्ल पे हवाईयाँ उडती देख,मेरी सहेलियाँ ज़ोर ज़ोरसे हँसने लगीं! एक इनसे मुखातिब होके बोली," चलिए, ये होली भी खूब याद रहेगी! लोग रंगों से भीगते हैं,आप पसीने से भीग रहे थे!"
ना जाने कितने साल बीत गए,पर ये बेवकूफी भुलाये नहीं भूलती! बल्कि हर होली पे याद आही जाती है!