सोमवार, 11 अप्रैल 2011

डूबते हुये...


डूबते हुए हमे,वो लगे,
जैसे किनारे हो हमारे !
जितनेही पास गए,
वो उतनाही दूर गए,
वो भरम थे हमारे
वो कोई नही थे सहारे
उनके सामने हम डूबे
लगा,उन्हें पानीसे भय लगे!

राम नवमी की सभी दोस्त पाठकों को अनेक शुभकामनायें!


29 टिप्‍पणियां:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

क्षमा जी बहुत सुंदर कविता है |बधाई और रामनवमी की शुभकामनाएं |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

क्षमा जी बहुत सुंदर कविता है |बधाई और रामनवमी की शुभकामनाएं |

जीवन और जगत ने कहा…

सुन्‍दर कविता। इसे पढ़कर एक फिल्‍मी गीत याद आ गया- हम थे जिनके सहारे। वो हुए ना हमारे।

shikha varshney ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ हैं क्षमा जी !राम नवमी की शुभकामनाये.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

हम्म...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) बढ़िया है ..रामनवमी की शुभकामनायें

ज्योति सिंह ने कहा…

aapko bhi is sundar rachna ke liye badhai raamnavmi ke saath .

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

कविता सुन्दर!!
अओको भी राम नवमी की शुभकामनाएं!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय क्षमा जी
नमस्कार !
बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

संजय भास्‍कर ने कहा…

दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

abhi ने कहा…

:)

Apanatva ने कहा…

dil se niklee panktiya......
shubhkamnae.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

pyari se rachna...:)
राम नवमी की शुभकामनायें

Unknown ने कहा…

kshama ji apko bhi ramnomi ki shubhkamnay.....apki rachna m ek attitude h jo iski prastuti ko or sharthak banati h!↲Jai ho mangalmay ho....

शोभना चौरे ने कहा…

bahut sundar kavita

Sunil Kumar ने कहा…

सुन्दर रचना , बहुत बहुत बधाई रामनवमी की शुभकामनायें....

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

thode shabdo me gahri aur sacchi baat kah di.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया क्षमा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
प्रणाम !!

आपकी कविता बहुत भावपूर्ण है …
कुछ याद आ रहा है …

हम थे जिनके सहारे
वो हुए ना हमारे
डूबी जब दिल की नैया
सामने थे किनारे …

… लेकिन हाय ! भावनाओं का हमेशा ही ऐसा अंजाम !

* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया क्षमा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
प्रणाम !!

आपकी कविता बहुत भावपूर्ण है …
कुछ याद आ रहा है …

हम थे जिनके सहारे
वो हुए ना हमारे
डूबी जब दिल की नैया
सामने थे किनारे …

… लेकिन हाय ! भावनाओं का हमेशा ही ऐसा अंजाम !

* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार

ZEAL ने कहा…

बहुत सुंदर कविता|
बधाई और शुभकामनाएं |

Arvind Mishra ने कहा…

तैरना तो तभी जब किनारों तक खुद जा पहुँचने का दम हो या उनकी परवा न हो !

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।

निर्मला कपिला ने कहा…

इतने शुभदिन पर डूबने मरने की बातें? राम राम ।

daanish ने कहा…

अच्छी कविता है
मन की कुछ अन-कही-सी ...

राम नवमी और बैसाखी पर्व पर
शुभकामनाएं .

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बढ़िया है ..रामनवमी की शुभकामनायें

BrijmohanShrivastava ने कहा…

मै जितना किनारों के पास गया किनारे दूर होते चले गये यही संसार है आदमी चलते चलते थक जाता है और ज्योंही उसे मंजिल नजर आती है ,ठोकर खाजाता है। आदमी इसी भ्रम में जी रहा है और मजेदार बात यह कि डूवने वाला यही समझ रहा है कि शायद उन्हे पानी से डर लगता होगा।कोई उलाहना नहीं कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत नहीं इसे कहते है सच्चे और निस्वार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

एक दर्शन जिसे आपने सिद्दत से महसूस किया।

केवल राम ने कहा…

उनके सामने हम डूबे
लगा,उन्हें पानीसे भय लगे!

सुंदर और ग्राह्य भावों का सृजन मन को प्रभावित कर गया ....आपका आभार

rashmi ravija ने कहा…

achhi panktiyaan