ये fusion वाली रचना ख़ास अरविन्द मिश्रा जी के अनुरोध पे!
जब ,जब पुरानी तसवीरें,कुछ याँदें ताज़ा करती हैं ,
हँसते ,हँसते भी मेरी
आँखें भर आती हैं!
वो गाँव निगाहोंमे बसता है
फिर सबकुछ ओझल होता है,
घर बचपन का मुझे बुलाता है,
जिसका पिछला दरवाज़ा
खालिहानोमें खुलता था ,
हमेशा खुलाही रहता था!
वो पेड़ नीमका आँगन मे,
जिसपे झूला पड़ता था!
सपनोंमे शहज़ादी आती थी ,
माँ जो कहानी सुनाती थी!
वो घर जो अब "वो घर"नही,
अब भी ख्वाबोमे आता है
बिलकुल वैसाही दिखता है,
जैसा कि, वो अब नही!
लकड़ी का चूल्हाभी दिखता है,
दिलसे धुआँसा उठता है,
चूल्हा तो ठंडा पड़ गया
सीना धीरे धीरे सुलगता है!
बरसती बदरीको मै
बंद खिड्कीसे देखती हूँ
भीगनेसे बचती हूँ
"भिगो मत"कहेनेवाले
कोयीभी मेरे पास नही
तो भीगनेभी मज़ाभी नही...
जब दिन अँधेरे होते हैं
मै रौशन दान जलाती हूँ
अँधेरेसे कतराती हूँ
पास मेरे वो गोदी नही
जहाँ मै सिर छुपा लूँ
वो हाथभी पास नही
जो बालोंपे फिरता था
डरको दूर भगाता था...
खुशबू आती है अब भी,
जब पुराने कपड़ों मे पडी
सूखी मोलश्री मिल जाती
हर सूनीसी दोपहरमे
मेरी साँसों में भर जाती,
कितना याद दिला जाती ...
नन्ही लडकी सामने आती
जिसे आरज़ू थी बडे होनेके
जब दिन छोटे लगते थे,
जब परछाई लम्बी होती थी...
बातेँ पुरानी होकेभी,
लगती हैं कल ही की
जब होठोंपे मुस्कान खिलती है
जब आँखें रिमझिम झरती हैं
जो खो गया ,ढूँढे नही मिलेगा,
बात पतेकी मुझ ही से कहती हैं ....
छोट बच्चे के नज़रिए से ये भित्ती चित्र बनाया था. खादी सिल्क की पार्श्वभूमी पे पहले थोडा पेंट कर लिया और ऊपर से कढ़ाई की है.
कभी,कभी बचपन बहुत याद आता है...सपने आते हैं,जिन में मै स्वयं को एक बच्ची देखती हूँ...बचपन वाला घर दिखता है....बचपन के दोस्त और दादा दादी दिखते हैं...आँखें खुलने पे वो बेसाख्ता बहने लगती हैं...
44 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर भावो का समावेश्।
लकड़ी का चूल्हाभी दिखता है,
दिलसे धुआँसा उठता है,
चूल्हा तो ठंडा पड़ गया
सीना धीरे धीरे सुलगता है!
aankhen nam ho gayeen......dil se likhi behad khoobsurat.....
बहुत ही खूबसूरती से आपने प्रत्येक भाव को शब्द दिये हैं ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत खूबसूरत;;;;;;;;कविता और चित्र दोनों।
भित्ति चित्र भी कमाल का और यादों में सिमटा हर लम्हा खूबसूरत ...भावपूर्ण रचना
बड़ी ही सुन्दर कविता।
khoobsurat yaaden aur behtreen chitr :)
khoobsurat yaaden aur behtreen chitr :)
लकड़ी का चूल्हाभी दिखता है,
दिलसे धुआँसा उठता है,
चूल्हा तो ठंडा पड़ गया
सीना धीरे धीरे सुलगता है!
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ..यादों को शिद्दत से समेटा है.
बहुत भावमयी कविता !
बहुत अच्छे भावों को कलम में समेटा है आपने ।
आपकी कला और और आपकी रचना दोनों अप्रतिम हैं...
नीरज
सुंदर।
बेमिसाल।
बचपन का घर हमेशा हमारे अन्त: मस्तिष्क में बसा रहता है। बेहद मनोहारी रचना।
बहुत बढ़िया कविता... नर्म कोमल...
ख़ूबसूरत ख़ूबसूरत ख़ूबसूरत
Khoobsoorat chitr aur dard us bachpan ke kho jaane ka ..bahut khoobsoorti se ubhara hai...
कविता और चित्र दोनों बहुत ही अच्छा है .
इस फ्यूजन पर सच कहता हूँ अभिभूत हूँ..यह आपकी वह विशिष्ट कलात्मक मौलिक प्रतिभा है जिसे कम से कम मेरे द्वारा तो भूला नहीं जा सकेगा ---भावों की दोनों विधाओं में समान और अद्भुत प्रस्तुति ....मैं इन्हें हाथ में लेकर भी महसूस करना चाहता हूँ .....कभी बनारस आयें तो प्लीज कुछ अपनी इन विशिष्टतम कृतियों को भी साथ लायें और हाँ मैंने इन्हें पुस्तकाकार प्रिंट के रूप में भी देखना चाहता हूँ ...किसी प्रकाशक से बात करें ---यह सृजनशीलता की एक अद्भुत मिसाल है !
पंडित अरविन्द मिश्र जी ने पूरी बात को अपने कमेन्ट में समेट लिया, मेरे लिए कुछ नहीं बचा... उनकी अभिव्यक्ति को मेरी भी मानें!! मैं स्वयं आपका प्रशंसक हूँ!!
वो घर , वो बचपन , वो खेल -खिलौने सब जैसे जेहन में वैसे ही हैं जैसे कि बस आँख बंद करो और वो सामने हाजिर हो जायेंगे.....बेहद खूबसूरत रचना...अतीत में खींच ले गई...
बहुत ही भावपूर्ण !!
बचपन याद आ गया ,,आँखें नम हो गईं
hamesha se hi aapke hathon ki karigari ko dekh hatprabh rahi hun. aur aaj bhi.
aur ye rachna harek k bachpan ko chhooti hai. ye sab yade hamara bachpan ban kar sada k liye dil ke ek kone me basti hain aur ham inhe mehsoos kar kar ke tript hote rahte hain.
sunder ati sunder dono.
यादो का चित्र जितना सुंदर उतनिही सुंदर कलाकारी .
pahli baar aapke blog par aana hua saarthak raha aana itne achche kalakar se mulakat hui.kavita aur kadhaai vala chitra dono prabhaavit kar gaye.jud rahi hoon aapki shrankhla se aap bhi mere yahan aaiye.
rachna or chitr bahut sundar!
वाह इसमें कुछ तो ख़ास बात है.
अतीत को बडे ही प्यारे तरीकों से पिरोया आपने।दिल गदगद हो गया।धन्यवाद।
अतीत को बडे ही प्यारे तरीकों से पिरोया आपने।दिल गदगद हो गया।धन्यवाद।
अद्भुत अनुभूति का अनुभव हुआ। कला और चित्रकला का अनूठा संगम है यहां। कविता की भावना हमें अतीत और वर्तमान के बीच झूले झुलाता रहा।
old sweet memories makes us nostalgic.
अतीत की यादों को बहुत सुन्दर ठंग से पिरोया है..शब्द -शब्द में यादें बसी हैं... अनुपम कृति ..
इन लाजवाब चित्रों ने यादों की कई परतों को उड़ा दिया ... और इस कमाल की रचना ने न जाने कितनी परतों को उखाड के जावन के बीते दौर में पहुंचा दिया और लंबे समय तक रोके रखा ...
अतीत की यादो की अनुपम प्रस्तुती...
मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बेहतरीन भाव के साथ लिखी कविता
बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
आपके भाव अनोखा आनंद प्रदान करते हैं.
आपकी कला कमाल की है.
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
खूबसूरत भावों का समावेश खूबसूरत रचना |
कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे ....?
धन्यवाद!
Hi..
Abhi Sada ji ke blog par ye link mila..link kya ye mere liye ek bhavon ka pitara khul gaya..
Bachpan ka wo ghar jiska darwja khalihan main khulta tha aur khula hi rahta tha..shabd dar shabd, chhand dar chhand mujhe bachpan ki vismrut smrutiyon main duba raha aur kavita ke ant main apni ankhon ke kor geele paaye.. Ek ek kar sab chhoot gaye hain..bachpan ke wo ghar kabke toot gaye hain..jane kaun kaun yaad aa gaya..!!!!
Sundar par marmik ahsaas..aage bhi aapke blog par lautta rahun esliye abhi hi aapke blog ka anusaran kar raha hun.. Haan aankhon ke kor ab bhi geele hain..
Deepak Shukla..
Hi..
Abhi Sada ji ke blog par ye link mila..link kya ye mere liye ek bhavon ka pitara khul gaya..
Bachpan ka wo ghar jiska darwja khalihan main khulta tha aur khula hi rahta tha..shabd dar shabd, chhand dar chhand mujhe bachpan ki vismrut smrutiyon main duba raha aur kavita ke ant main apni ankhon ke kor geele paaye.. Ek ek kar sab chhoot gaye hain..bachpan ke wo ghar kabke toot gaye hain..jane kaun kaun yaad aa gaya..!!!!
Sundar par marmik ahsaas..aage bhi aapke blog par lautta rahun esliye abhi hi aapke blog ka anusaran kar raha hun.. Haan aankhon ke kor ab bhi geele hain..
Deepak Shukla..
बातेँ पुरानी होकेभी,
लगती हैं कल ही की
जब होठोंपे मुस्कान खिलती है
जब आँखें रिमझिम झरती हैं
जो खो गया ,ढूँढे नही मिलेगा,
बात पतेकी मुझ ही से कहती हैं ....
सुन्दर प्रस्तुति !!
अद्भुत रचना....
सादर बधाई...
भावों का बहुत संवेदनशील चित्रण आँखें नम कर देता है...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
दिलसे धुआँसा उठता है,
चूल्हा तो ठंडा पड़ गया
सीना धीरे धीरे सुलगता है!
hridaysparshi chitran.
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
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