शनिवार, 26 नवंबर 2011

नज़रे इनायत नही...


पार्श्वभूमी  बनी  है , घरमे पड़े चंद रेशम के टुकड़ों से..किसी का लहंगा,तो किसी का कुर्ता..यहाँ  बने है जीवन साथी..हाथ से काता गया सूत..चंद, धागे, कुछ डोरियाँ और कढ़ाई..इसे देख एक रचना मनमे लहराई..

एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे,
आखरी बार झडे,पत्ते इस पेड़ के,
 बसंत आया नही उस पे,पलट के,
हिल हिल के करतीं हैं, डालें इशारे...
एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे..

बहारों की  नज़रे इनायत नही,
पंछीयों को इस पेड़ की ज़रुरत नही,
कोई राहगीर अब यहाँ रुकता नही,
के दरख़्त अब छाया देता नही...
बहारों की नज़रे इनायत नहीं..


42 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत बढि़या ।

विशाल ने कहा…

bahut khoob.
aapki kalam mein jaadoo hai jaise.

मनोज कुमार ने कहा…

कभी ब कभी जीवन इस मोड़ पर आकर ठहर ही जाता है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहारें आयेंगी, पर प्रतीक्षा के बाद।

शारदा अरोरा ने कहा…

sundar chitr ke sath sundar si kavita ...

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी...

Arvind Mishra ने कहा…

ओह खामोश बसंत

केवल राम ने कहा…

बहुत शिद्दत से उकेरा है भावनाओं को .......!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

har din ek se nahi rahte...ye din bhi badal jayenge.

ek -do chitrkariyan mere paas bhi bhej do....kitni sunder hain.

sunder abhivyakti.

vandana gupta ने कहा…

जितनी सुन्दर कलाकारी है उतनी ही सुन्दर उसकी व्याख्या कीहै।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपकी शिल्प-सर्जना किसी भी गए मौसम को दुबारा खींच कर लाने में सक्षम है.. कविता में छिपी मायूसी, जब विदा होगी, उसी दिन कहूँगा, आए दिन बहार के!!!
अपनी सेहत का ख्याल रखें!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चित्र और काव्य दोनों ही अद्भुत ...

Atul Shrivastava ने कहा…

सुंदर प्रस्‍तुति।
गहरे भाव....

Deepak Shukla ने कहा…

Aaj baharen na ho lekin..
Kal wo fir se aayengi..
Sukhe taru ko nayi kapolen..
Swatah hi wo de jaayengi..

Man main aasha, na taj dena..
Tajna na man ka vishwas..
Har Patjhad ke baad hi aataa..
Nav banst ka fir aagaj..

Nirasha taj den..man se bhi, kavita se bhi..

Shubhkamnaon sahit..

Deepak Shukla..

Arun sathi ने कहा…

प्रेमपुर्ण कविता..

Vandana Ramasingh ने कहा…

आखरी बार झडे,पत्ते इस पेड़ के,
बसंत आया नही उस पे,पलट के,

शिल्प और काव्य दोनों में आपकी सृजनात्मकता सुन्दर दिखाई दे रही है

कुमार संतोष ने कहा…

सुंदर रचना
ढेरो सुभकामनाएँ !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह क्षमा जी दोनों ही कृतियां एक से बढ़कर एक.

abhi ने कहा…

आपकी कविता पर तो मेरी नज़र बड़ी देर में पड़ती है...सबसे पहले तो आपका आर्ट-वर्क ही देखते रहता हूँ :)

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

haheheZ! :D http://tinyurl.com/Pic-XXX101-jpeg

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi.....

shikha varshney ने कहा…

बहारें फिर भी आती हैं ..बहारें फिर से आएँगी.

Satish Saxena ने कहा…

उदासी और निराशा भी जीवन के अभिन्न अंग हैं ....
शुभकामनायें आपको !

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

सुन्दर कविता और कल्पना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

क्षमा जी,
आपकी रचनाओं में दिन पर दिन
निखार आता जा रहा है,इसी तरह
प्रयासरत रहे,..बहुत सुंदर पोस्ट,..
मेरे पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है,...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जीवन और जगत ने कहा…

ब्‍लॉग पर प्रस्‍तुत की गई आपकी सर्वश्रेष्‍ठ शिल्‍प-रचनाओं में से एक।

daanish ने कहा…

बहारों की नज़रे इनायत नहीं ...
... ........ ..
बदलेगा वक्त, गुल भी खिलेंगे बहार में !

Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति से
मन भावविभोर हो जाता है.

अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आप आईं इसके लिए भी आभार.
एक बार फिर से मेरी नई पोस्ट पर आईयेगा.

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'राही मासूम रजा' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

vijay kumar sappatti ने कहा…

शमा जी

चित्र और नज़्म दोनों एक दूसरे के पूरक है .. एक अजीब सी उदासी है नज़्म में .. जो की मन को एक अलग सा सकूँ भी देती है ..

बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पहले मनमोहक चित्र बनाया फिर रचना लिखी , या पहले रचना लिखी ? क्योंकि सामंजस्य गज़ब का है

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बेहद खूबसूरत ...पोस्ट
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी कभी इंसान का जीवन भी ठूंठ के सामान हो जाता है ... कोई रुकता नहीं ... पत्ते उगते नहीं ... आपकी चित्रकारी सच में सार्थक करती है रचना को ...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

वाह,
बहुत खूब.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

क्षमा जी
भूल बस अरुण जी टिप्पणी आपके पोस्ट पर हो
गई,...क्षमा चाहुगां,
मेरे नये पोस्ट में इंतजार है,...

Rakesh Kumar ने कहा…

आपका अपने ब्लॉग पर इंतजार कर रहा हूँ क्षमा जी.दर्शन देकर कृतार्थ कीजियेगा जी.

मेरे भाव ने कहा…

bahut khoobsurat kavita... man ko chhoo gaya.. chitra bhi bahut badhiya

ZEAL ने कहा…

The poem reflects a tough phase of life. ...Happens !...All we can do is to be patient and have faith in our efforts.

Udan Tashtari ने कहा…

नियमित लिखिये...प्लीज़!!

vidya ने कहा…

बहुत खूब...आप तो वाकई कलाकार हैं...
दोनों रूप बहुत पसंद आये...
कढ़ाई भी कविता भी...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..

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