एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे,
आखरी बार झडे,पत्ते इस पेड़ के,
बसंत आया नही उस पे,पलट के,
हिल हिल के करतीं हैं, डालें इशारे...
एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे..
बहारों की नज़रे इनायत नही,
पंछीयों को इस पेड़ की ज़रुरत नही,
कोई राहगीर अब यहाँ रुकता नही,
के दरख़्त अब छाया देता नही...
बहारों की नज़रे इनायत नहीं..
42 टिप्पणियां:
वाह ...बहुत बढि़या ।
bahut khoob.
aapki kalam mein jaadoo hai jaise.
कभी ब कभी जीवन इस मोड़ पर आकर ठहर ही जाता है।
बहारें आयेंगी, पर प्रतीक्षा के बाद।
sundar chitr ke sath sundar si kavita ...
बहुत मर्मस्पर्शी...
ओह खामोश बसंत
बहुत शिद्दत से उकेरा है भावनाओं को .......!
har din ek se nahi rahte...ye din bhi badal jayenge.
ek -do chitrkariyan mere paas bhi bhej do....kitni sunder hain.
sunder abhivyakti.
जितनी सुन्दर कलाकारी है उतनी ही सुन्दर उसकी व्याख्या कीहै।
आपकी शिल्प-सर्जना किसी भी गए मौसम को दुबारा खींच कर लाने में सक्षम है.. कविता में छिपी मायूसी, जब विदा होगी, उसी दिन कहूँगा, आए दिन बहार के!!!
अपनी सेहत का ख्याल रखें!!
चित्र और काव्य दोनों ही अद्भुत ...
सुंदर प्रस्तुति।
गहरे भाव....
Aaj baharen na ho lekin..
Kal wo fir se aayengi..
Sukhe taru ko nayi kapolen..
Swatah hi wo de jaayengi..
Man main aasha, na taj dena..
Tajna na man ka vishwas..
Har Patjhad ke baad hi aataa..
Nav banst ka fir aagaj..
Nirasha taj den..man se bhi, kavita se bhi..
Shubhkamnaon sahit..
Deepak Shukla..
प्रेमपुर्ण कविता..
आखरी बार झडे,पत्ते इस पेड़ के,
बसंत आया नही उस पे,पलट के,
शिल्प और काव्य दोनों में आपकी सृजनात्मकता सुन्दर दिखाई दे रही है
सुंदर रचना
ढेरो सुभकामनाएँ !
वाह क्षमा जी दोनों ही कृतियां एक से बढ़कर एक.
आपकी कविता पर तो मेरी नज़र बड़ी देर में पड़ती है...सबसे पहले तो आपका आर्ट-वर्क ही देखते रहता हूँ :)
haheheZ! :D http://tinyurl.com/Pic-XXX101-jpeg
bahut achchi.....
बहारें फिर भी आती हैं ..बहारें फिर से आएँगी.
उदासी और निराशा भी जीवन के अभिन्न अंग हैं ....
शुभकामनायें आपको !
सुन्दर कविता और कल्पना
क्षमा जी,
आपकी रचनाओं में दिन पर दिन
निखार आता जा रहा है,इसी तरह
प्रयासरत रहे,..बहुत सुंदर पोस्ट,..
मेरे पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है,...
ब्लॉग पर प्रस्तुत की गई आपकी सर्वश्रेष्ठ शिल्प-रचनाओं में से एक।
बहारों की नज़रे इनायत नहीं ...
... ........ ..
बदलेगा वक्त, गुल भी खिलेंगे बहार में !
आपकी सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति से
मन भावविभोर हो जाता है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आईं इसके लिए भी आभार.
एक बार फिर से मेरी नई पोस्ट पर आईयेगा.
आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'राही मासूम रजा' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
शमा जी
चित्र और नज़्म दोनों एक दूसरे के पूरक है .. एक अजीब सी उदासी है नज़्म में .. जो की मन को एक अलग सा सकूँ भी देती है ..
बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
पहले मनमोहक चित्र बनाया फिर रचना लिखी , या पहले रचना लिखी ? क्योंकि सामंजस्य गज़ब का है
बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बेहद खूबसूरत ...पोस्ट
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
कभी कभी इंसान का जीवन भी ठूंठ के सामान हो जाता है ... कोई रुकता नहीं ... पत्ते उगते नहीं ... आपकी चित्रकारी सच में सार्थक करती है रचना को ...
वाह,
बहुत खूब.
क्षमा जी
भूल बस अरुण जी टिप्पणी आपके पोस्ट पर हो
गई,...क्षमा चाहुगां,
मेरे नये पोस्ट में इंतजार है,...
आपका अपने ब्लॉग पर इंतजार कर रहा हूँ क्षमा जी.दर्शन देकर कृतार्थ कीजियेगा जी.
bahut khoobsurat kavita... man ko chhoo gaya.. chitra bhi bahut badhiya
The poem reflects a tough phase of life. ...Happens !...All we can do is to be patient and have faith in our efforts.
नियमित लिखिये...प्लीज़!!
बहुत खूब...आप तो वाकई कलाकार हैं...
दोनों रूप बहुत पसंद आये...
कढ़ाई भी कविता भी...
बहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..
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