रविवार, 8 नवंबर 2009

kyon? kyon?

क्यों करते हैं याद उनको,
जो हमें याद करते नही?
क्यों तकते हैं राह उनकी,
जब वो इधरसे गुज़रते नही?
रोज़ करते सिंगार, जबकि,
वो पलक उठा के देखते नही?
दौड़ते हैं खोलने द्वार, जानके भी,
आदतन,के ये कमबख्त जाती नही !

13 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

दौड़ते हैं खोलने द्वार, जानके भी,
आदतन,के ये कमबख्त जाती नही

कुछ आदतें कभी नहीं जातीं, दुष्यंत जी ने कहा है-
"एक आदत सी बन गई है तू,
और आदत कभी नहीं जाती."

Basanta ने कहा…

Beautiful portrayal of love! Very powerful!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना है।

Rajeysha ने कहा…

कि‍सी ब्‍लॉग पर ऐसे ही मि‍लते जुलते भाव पढ़े थे


नहीं आज भी कोई नहीं आया होगा
दरवाजा हवाओं ने खटखटाया होगा

डाकि‍या लाया होगा पड़ोसी का खत

कौए ने पराई मुंडेर पर शोर मचाया होगा

उन्मुक्त ने कहा…

जीवन का शायद यही रोना है
हम जिसे चाहते हैं
वह हमें नहीं,
किसी और को चाहता है।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

दिल की गहराईयों से निकले हैं लफ्ज़
.... भ्रम तो दूर करना ही होगा
किसी एक नतीजे पर पहुंचने के लिये
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

ज्योति सिंह ने कहा…

aadat ko aadat lag jaati hai ,phir muskil se haath chhudati hai .vandana ji ne bahut pyari baat kahi .dushyant ji ka to jawab nahi .wo to mere aziz rachnakaro me hai .

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आदत की बात पर एक मिर्जा गालिब का एक शेर याद आ गया-
रोज कहता हूँ न जाउँगा घर उनके
रोज उस कूचे में इक काम निकल आता है।
-यूँ ही लिखते रहिए यह आदत भी कम खूबसूरत नहीं है।

daanish ने कहा…

daurhte haiN kholne ko dwaar
aadatan, k ye kambakht jaati nahee

bs isiei hi sb kuchh keh diyaa
hai aapne....
bhaav aur shilp ki drishti se
bahut achhee rachnaa .

Apanatva ने कहा…

bahut sunder rachana jo man ko choo gayee .

Rohit Jain ने कहा…

Ek Sher yaad aaya, halaki do-ek shabdo ka her-fer ho sakta hai so dhyan na dein pls.............
lakh guzarta hoon katra ke tere kooche se magar, dil fer ke mujhko kahta hai udhar ko chaliye..

जोगी ने कहा…

waah !!!

S R Bharti ने कहा…

Kyon-Kyon aur Ahat sunder abhibyakti hai.
Bahut Bahut Badhai.