शनिवार, 19 जून 2010

बेमिसाल दास्ताँ!:2(antim)


यह भित्ती चित्र केवल कढाई से बनाया है... जब कभी इस चित्र को या डाल पे बैठे,या फिर  आसमान में उड़ने वाले परिन्दोको देखती हूँ ,तो मुझे वो  लोग याद आ जाते हैं,जिनके बारे में लिखने जा रही हूँ.

अगले दिन हम दोनों फिर बतियाने बैठ गए.मासी की बहन ने उस डॉक्टर से बात चीत कर ली. इधर उन्हों ने अपनी बहू के सामने प्रस्ताव रखा वह संजीदा हो गयी.कुछ देर खामोश रहकर बोली: " ठीक है माजी, मै इस लड़के को मिलने के तैयार हूँ....पर मेरी भी एक शर्त है.."
मासी:" क्या शर्त है?"
बहू :" उसने मुझे आपके साथ स्वीकार  करना होगा...तभी मै ब्याह के लिए राज़ी हो सकती हूँ.."
मासी :" अरे, तो मै कौन कह रही हूँ,की,मुझे भूल जाना ! मै तो मिलती रहूँगी तुझसे!"
बहू:" नही,मै आपको यहाँ अकेले छोड़ के नही जा सकती. मै जहाँ रहूँगी ,आपने मेरे साथ चलना होगा..कौन है आपका इस दुनियामे? आप चाहे इसे मेरी ज़िद समझ लें,पर मै इस निर्णय पे अटल हूँ..."

मासी बड़ी धरम संकट में पड़ गयीं. उन्हों ने लड़के को अपने घर आमंत्रित किया. लड़का समयानुसार आ भी गया. कुछ और मुलाक़ातें तय होने जा रहीं थीं की,बहू, लड़के से मुखातिब हो, बोल पडी : शायद माँ जी   ने मेरी एक शर्त बताई नही.."
लड़का:" तो आप कहिये,क्या शर्त है?
बहू:" मै,मेरी इस माँ को, छोड़ नही सकती. मेरी ख़ातिर इन्हों ने एक अकेली ज़िंदगी जीने का हौसला दिखाया है. जब तक मेरे पती थे,शायद तब हमारा रिश्ता सास-बहू का रहा होगा...अब माँ -बेटी का है.."
लड़का:" मुझे क़तई ऐतराज़ नही! बल्कि आप के लिए मेरे दिल में इज्ज़त बढ़ गयी है! मुझे तो बहुत खुशी होगी,गर ये हमारे साथ रहने आयें...मेरे बेटे को एक बहुत प्यारी-सी दादी मिल जायेगी!"
मासी:" दादी भी और नानी भी..."

दास्ताँ सुनाते,सुनाते मासी की आँखें भर आयीं,बोली:" उस समय भी मै अपनी बहू का प्यार देख रो पडी थी. तब तक उस के प्यार की गहराई नही नाप पाई थी...
" दो चार बार वो दोनों मिले. एक माह के भीतर,भीतर बड़ी सादगी से विवाह संपन्न हो गया. दो माह के बाद मै उनके साथ रहने चली गयी...आखिर मेरे घर को भी समेटना था! मैंने वसीयत बना दी. मेरे बाद मेरा घर मेरी बहू को मिल जाएगा! मै तो एक बेटा,जो मेरा दामाद भी है,पाके बहुत,बहुत ख़ुश हूँ! ईश्वर ने जो छीन लिया था,सूद समेत लौटा दिया! यह बच्चा तो मेरे बिना न खाता है,न सोता है."

दास्ताँ सुन मुझे लगा जैसे मै किसी फ़रिश्ते के सान्निध हूँ..बगीचे के गेट से वो जोड़ा आते दिखाई दिया..मासी खड़ी हो गयीं,तो मैंने बढ़ के अनायास उनके पैर छू लिए..उन्हों ने मुझे गले से लगा के अपने घर आने का तहे दिल से न्योता दिया...और मै गयी भी...वहाँ पहुँच महसूस हुआ, जन्नत में भी इससे अधिक शांती न होगी.....मै तुरंत उस बच्चे की मासी बन गयी...धन्य हो गयी...

15 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बहुत बढ़िया !
इस जज़्बे और ऐसे मानवता की ज़िंदा मिसालों को मेरा सलाम!

Basanta ने कहा…

Great! Existence of such good people can make us optimist about humanity's future.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत ही अच्छा निर्णय था उन सभी लोगों का...

Dev ने कहा…

bahut behtreen ......bahut acha laga ye lekh padhkar ......aaj bhi is desh mein aisi manvta aur rishte ka kadr karne wale log milte hai ....jhana bhvanon se badhkar kuch nahi........bahut bahut shukriya aapka is dastaan ko yahan prastut karne ke liye

abhi ने कहा…

मैंने आज पढ़ी दोनों दास्ताँ :)

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

देखी.....
और पढ़ी...
’शब्दों के फ़नकार की कढ़ाई’

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

कल मेरी लिस्ट में से आपकी यह रचना कैसे स्लिप हो गई पता ही नहीं चला... वर्ना मैं इतनी देर नहीं लगाता... आपकी रचना इस समाज (जिसे सब बुरा होता जा रहा है ऐसा कहते हैं) के उन अनछुए पहलुओं की ओर ले जाती हैं, जिनसे रू ब रू होकर ईश्वर के अस्तित्व पर भरोसा होने लगता है, जो हम जैसा ही हमारे बीच मौजूद है...
मैं ने भी जीवन में जितना पैसा कमाया है उससे कहीं ज़्यादा रिश्ते कमाए हैं... मेरी एक मद्रासी और एक मराठी बहन है, एक बंगाली भाई, एक बंगाली माँ और कई विदेशी मित्र हैं...
हमारी ग़ज़ल के बारे में जो आपने लिखा उसपर यही कहूँगा कि एक रचनाकार की रचना पर उससे बड़ा हक़ उसके पसंद करने वालों का होता है... हाँ! अपनी माता जी को हमारा नमस्कार देकर, उनकी प्रतिक्रिया हम तक अवश्य देंगीं...

Aruna Kapoor ने कहा…

दोनों दास्ताएं ध्यानाकर्षक है!... उत्तम रचनाएं, धन्यवाद!

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

टिपण्णी देने के लिए मैं दास्ताँ के पूरा होने का इंतजार कर रहा था. दास्तान पूरी हुई और वास्तव में बेमिसाल है. बस मेरे मान में जो बात घूम रही है वो ये है की ये जो दो पंछी काढ़े गए हैं वो किस कारीगर की कारीगरी है..... वो कारीगरी तो बस क्या कहूँ..........उस कुशल कलाकार को मेरा प्रणाम.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut naaraz hu me aapse...itna kuchh likh liya in dino aur mujhe khabar tak nahi...

itta saara ab mujhe ek hi baar me padhna pada...:(

lekin kahte he na ant bhala to sab bhala...to ye apki kahani ka end padh kar man prasann hua..lekin abhi vo registan...tapti rait....jalte talve wali baat man me kahin abhi dab k rah gayi he...aage bhi un VANU masi aur apke bare me janNa chahungi. intzar rahega...khabar karti rahna.

Prem Farukhabadi ने कहा…

उत्तम रचनाएं. धन्यवाद!

शारदा अरोरा ने कहा…

सच्ची घटना , फ़रिश्ते जैसे इन्सान भी तो इसी दुनिया में होते हैं । सुकून दे गई ये कथा ।

Dimple ने कहा…

Hello ji,

Aap bahut talented ho :)
You use very nice words in your writeup...
Plus the handwork that you have attached in the form of picture is just fabulous!!

Regards,
Dimple

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत ही सुंदर कहानी । ऐसी मिसालें कम ही देखने को मिलती है । ऐसे व्यक्ती की तो आदर्श मान कर उनके कदमों पर चल कर पूजा करनी चाहिये ।