सिल्क के चंद टुकड़े जोड़ इस चित्र की पार्श्वभूमी बनाई. उस के ऊपर दिया और बाती रंगीन सिल्क तथा कढाई के ज़रिये बना ली. फ्रेम मेरे पास पहले से मौजूद थी. बल्कि झरोखानुमा फ्रेम देख मुझे लगा इसमें दिए के सिवा और कुछ ना जचेगा.बना रही थी की,ये पंक्तियाँ ज़ेहन में छाती गयीं....
रहगुज़र हो ना हो,जलना मेरा काम है,
जो झरोखों में हर रात जलाई जाती है,
ऐसी इक शमा हूँ मै..शमा हूँ मै...
परछाईयों संग झूमती रहती हूँ मै,
सदियों मेरे नसीब अँधेरे हैं,
सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै...
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35 टिप्पणियां:
परछाईयों संग झूमती रहती हूँ मै,
सदियों मेरे नसीब अँधेरे हैं,
सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै... ...shama ho...jalti rah....duniya roushan hogi.....tumhari fikra kise hai.....sab jaante hai tumhe khaak hi hona....log sirf samne roshni our sharir ko garmi dena jaanate hain.....shamaa ki fikra kise hai...?
bahut badhiya kavita....
कलाकृति तो बहुत ही सुन्दर है और कविता मे दर्द ही दर्द भर दिया है।
किसकी तारीफ़ करूं, चित्र की, आपकी कारीगरी की या इन पंक्तियों की, तीनों बेहतरीन। लाजवाब।
आपकी कला के क्या कहने.. लाजवाब
और फिर अभिव्यक्ति :
परछाईयों संग झूमती रहती हूँ मै,
सदियों मेरे नसीब अँधेरे हैं,
सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै...
दिन में सूरज का तिलिस्म होता है
सेहर होते भले ही फूँक जी जाती हूँ
सांझ ढलते फिर मैं ही याद आती हूँ
मैं तो घबडाकर भागता आया हूँ कि नाम क्यों बदल दिया -क्षमा से केवल शमा ---अब जाकर राहत हुयी -
बढियां सृजनात्मकता !
तस्वीर और उस पर पंक्तियाँ बहुत सटीक....सुन्दर अभिव्यक्ति
Jitani sunder kalakruti utanee hee behatar kawita.
Jitani sunder kalakruti utanee hee sunder kawita.
वाह शमाजी आपकी कला लाजवाब है ......
सहर होते ही फूँक दी जाती हूँ में....
सुन्दर पंक्तिया ....
वाह! दोनों रचनायें कमाल की हैं!
अनुपम कलाकृति ! कढाई के साथ फ्रेम की जोड़ी कमाल की है ...
कविता भी सुन्दर है !
क्षमा जी आपकी शमाँ बेहतरीन है..फिर से पहला रंग लौट आया है..एक बात खटक रही है..शमाँ के नसीब में अंधेरा नहीं होता, बल्कि अंधेरे नसीब वालों के रास्ते रोशन करती है शमाँ...और दूसरी बात कि हमारे यहाँ शमाँ को फूँकते नहीं… ढाँप देते हैं! कभी कभी ढाँपने में हाथ भी जल जाते हैं..एक बार फिर से बेहतरीन कलाकारीऔर कविता भी..
दोनों रचनाएँ लाजवाब हैं
voh tdpt prvaane voh jhulste prvaane aakhir kisne jlaaye hen hmen to bs usi shmaa ki tlaash he aapne chnd alfaazon men bhut khub bhut kuch kh diyaa he mubaark ho krpyaa bura naa maane hm to bs aese hi hen hmaraa andaaz thodaa alg ht ke he naa. akhtar khan akela kota rajsthan
परछाईयों संग झूमती रहती हूँ मै,
सदियों मेरे नसीब अँधेरे हैं,
सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै...
क्या खूब लिखा है.बधाई.
मै हूँ अंधेरों के नसीब में,मेरे नसीब में अँधेरे..!! 'संवेदना के स्वर' को और क्या जवाब दूँ??
कविता बहुत अच्छी लगी... बहुत गहराई लिए हुए है....
रहगुज़र हो ना हो,जलना मेरा काम है,
जो झरोखों में हर रात जलाई जाती है,
ऐसी इक शमा हूँ मै..शमा हूँ मै...
परछाईयों संग झूमती रहती हूँ मै,
सदियों मेरे नसीब अँधेरे हैं,
सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै...
यह तो बहुत खास है ,दिल को छू गयी ,एक गाना याद आ रहा इस रचना पर -हम वफ़ा कर के भी तन्हा रह गये . अपना ध्यान रखियेगा अभी ओप्रेशन हुआ ....
tasveer to bahut achhi hai aur ye kavita to kitna dard liye hue....dono ka mishran bahut achha laga
परछाईयों संग झूमती रहती हूँ मै,
सदियों मेरे नसीब अँधेरे हैं,
सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै...
बहुत करीब से पहचाना है शमा को आपने .... वो जलती है दूसरों को रोशनी देने के लिया ....
कविता बहुत पसंद आई...
ये कलाकृतियां तो आपके ब्लॉग की पहचान...
और हम सबके लिए खास नज़राना है.
कविता ओर कलाकृति दोनों ही खुबसूरत है !
Good morning Kshama ji,
Aap itna achha likhte ho ki harr baar pichli baar ka record toot jaata hai... :)
Bahut dard hai and Bahut gehraai...
Mujhe wo song yaad aa gayaa...
"Ghungroo ki tarah bajtaa hi raha hu main"
Yeh line bahut achhi laggi mujhe:
"सेहर होते ही फूँक दी जाती हूँ मै... "
Regards,
Dimple
चार पंक्तियों ने ही अजीब सी खुमारी दिल पर ला दी है.
ये क्यों लिखा नहीं जानती लेकिन दिल सवालो के कटघरे में खड़ा कर रहा है...क्यूऊऊऊऊ ????
असरदार पंक्तिया
bahut hunar hai aapke hath me.
aur rachana bhee lajawab..........
kam shabdon me lajavaab prastuti...bas teesti si aah ...
कलाकृति तो लाजवाब .......और रचना में एक कशिश ......बहुत सुन्दर
aapki tippni noreply-comment@blogger.com se aati hai jiski reply aap tak nahi pahunchtee , isliye aapke comment ka uttar yahin de rahi hoon ...
क्षमा जी , पहली दो पंक्तियाँ मशहूर शायर की हैं ...मेरी लिखी हुई ये पंक्तियाँ मैंने कुछ दिन पहले ही लिखी थीं , ब्लॉग पर नहीं पेश की थीं , मुझे लगता है ये हम सबके अन्दर की आवाज है जो पहले भी सुनी सुनी सी लगती है ।
आपकी कलाकृति और कविता, दोनों की जुगलबंदी...
क्या कहने.
कविता तो सुन्दर है ही किन्तु इस कलाकारी को देखने का भी मन चाह रहा है। मुम्बई में ही हो तो क्या कभी देखने को मिलेगी?
घुघूती बासूती
क्षमा जी, पुणे भी आना होता है कभी कभार। देखिए कब और कैसे बात बनती है।
घुघूती बासूती
आपकी कलाकृतियाँ लाज़वाब होती हैं. यह तो बेचैन आत्मा का निवास लग रहा है. रात में चुरानी पड़ेगी.
Are wah..aapki kalam ka to koi jabab nahi...aaj aapne apni kala se bhi rubaru karwa diya..!
waise kavita besak chhoti hai paar bahut badi baat kah di hai aapne!
dono khubsurat hain!
awaysome creation ..............aapki creativity ka javab nahi
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