रविवार, 4 अक्तूबर 2009

2 kshanikayen

१)संगदिल सनम

पहले   तो  सनम  ने हमें  आँसू  बना आँखों   में  बसाया  ,
बेदर्द , संगदिल  निकला ,  आँसू  को  संगपे  गिरा  दिया !


२ ) निशाने ज़ख्म

रहने दो ये ज़ख्मों  निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,
सिमटी -सी यादें तुम्हारी हैं,
सब तो छीन लिया,
छोडो, जो  दिल में हमारी हैं !

4 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

Aapkee dono hee rachnaen khoobsurat hain par nishane jakhm to bahut khoob.

Rajeysha ने कहा…

छोटी सी गहरी बात।

Arshia Ali ने कहा…

कविता तो बहुत लोग लिखते हैं, पर जो लोग कम शब्दों में बडी बात कह जाते हैं, वही अचछे कवि कहलाते हैं। और आपमें वह सलाहियत मैं देख रही हूं।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

vijay kumar sappatti ने कहा…

shama ji
namaskar ;

dusri kshanika dil ko choo gayi ... main kya kahun yaaden apone aap me dharohar hai ..

is post ke liye meri badhai sweekar kare..

dhanywad

vijay
www.poemofvijay.blogspot.com