सिल्क के टुकड़े पे water कलर से पार्श्वभूमी बना ली...बाद में कढाई..
तितली बन,अल्हड़पन,
चुपके से उड़ आता है,
यादों की फुलवारी में,
डाल,डाल पे,फूल,फूल पे,
झूम,झूम मंडराता है...
वो ठंडी,ठंडी बादे सबा,
आँगन में उतरी शामें ,
पौधों के पीछे छुपना,
आँखमिचौली रचना ...
वो शामों का गहराना,
फिर माँ का बुलाना,
किस दिन रचा आखरी खेला
कुछ याद तुम्हें भी होगा?
हाथ पकड़ मेलों में घूमना,
है याद तुम्हें वो आखरी मेला?
छोड़ा हाथ फिर ना पकड़ा?
क्यों फिर ना पकड़ा?
प्यारा अल्हड़पन छोड़ा?
