शुक्रवार, 18 जून 2010

बेमिसाल दास्ताँ!

यह भित्ती चित्र केवल कढाई से बनाया है... जब कभी इस चित्र को या डाल पे बैठे,या फिर  आसमान में उड़ने वाले परिन्दोको देखती हूँ ,तो मुझे वो  लोग याद आ जाते हैं,जिनके बारे में लिखने जा रही हूँ!

 मै अपने शहर के (महानगर के )बगीचे में घूमने जाया करती हूँ. घूमने के बाद अक्सर एक बेंच पे कुछ देर बैठ जाती. उसी बेंच पे एक अधेड़ उम्र की महिला को अक्सर बैठा देखती. मेरा घूमना ख़त्म होने से पहले वह अक्सर चली जाया करती. साथ एक बच्चा होता. उसकी उम्र यही कोई ४ या ५ साल की होगी. एक युवा जोड़ा शाम ६ बजे की करीब बगीचे में आता. वह चारों साथ,साथ चले जाया करते.

एक दिन शायद उस जोड़े को आने में देर हो गयी और मै उस महिला के साथ बेंच पे बैठ गयी. मुझे देख वह बड़े स्नेह से मुस्कुरायी, जैसे पुरानी पहचान हो. कुछ संभाषण शुरू करने के इरादे से मैंने उससे कहा:" बच्चा बड़ा प्यारा है..आपका पोता है न? या नाती?"
महिला मंद,मंद मुस्काते हुए बोली::" समझ लो दोनों है..वह कहते हैं ना,two in one!"
मै काफ़ी चकरा गयी ! बोली: " ओह! वो कैसे? "
महिला:" या यूँ कहें,उसने मुझे दादी या नानी के तौर से अपना लिया है!"
मै:" यह तो बड़ी गूढ़ बात है...! पहेली लग रही है!"
महिला:" हाँ अक्सर मेरी यह बात लोगों को पहेली लगती है. जीवन ही जहाँ अनबुझ पहेली है,वहाँ एक और पहेली सही!"
इतने में वह युवा जोड़ा आ गया. उन्हें दूरसे आते देख मैंने कहा:" आपके बहु बेटा आ गए..पर कल मै इस पहेली का जवाब लेके ही मानूँगी ....हाँ वरना आपके पीछे चली आउँगी! मेरे दिमाग में खलबली मच गयी है!"
वह हँस दी और मेरे काँधे को हलके-से थपक, बच्चे की ओर बढ़ गयी. वो चारों हँसते,बोलते चले गए.

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अगले दिन शाम,जैसे ही वह मुझे बेंच पे दिखी,मै उस के पास जा बैठी और बोली:" मै आपको कैसे संबोधित करूँ? मासी कहूँ?
मासी:" हाँ,हाँ! यह बहुत अच्छा रिश्ता होता है! "
मै:" तो अब पहेली सुलझा दीजिये ना मासी!"
मासी:" मेरा एक बेटा था...तीन साल पूर्व उसकी एक अपघात में मौत हो गयी. यह जो मुझे लेने आती है,वह उसकी पत्नी...जब यह हादसा हुआ,वह गर्भवती थी. सदमे के कारण उसका गर्भपात हो गया. हमारा बड़ा सुखी,छोटा-सा परिवार था. क़िस्मत के आगे क्या कर सकते हैं?
"बहू कॉलेज में पढ़ाती थी. वह काम तो था उसके पास. लेकिन बड़ी उदास रहती. उसे देख,मै भी बड़ी उदास रहती. इस संसार में मेरा अन्य कोई नही था. बहू की माँ तो वह स्कूल में थी,तभी   गुज़र गयी थी. पिता मानो,बेटी को ज़िंदगी में स्थायिक करने के लिए जी रहे थे. उसके ब्याह के चंद माह बाद वो भी दिल के दौरा पड़ने के कारण चल बसे. ना भाई ना बहन.
"बहू ने मानो बैराग  ले लिया हो...बेरंग कपडे,न गहने ना सिंगार..एक दिन मै उसके पीछे पड़ गयी,कहा,तुम जैसे पहले रहती थीं,वैसे ही रहा करो.तुम्हें ऐसे देखती हूँ,तो मेरे दिलपे छुरी चल जाती है.
" धीरे, धीरे उसने मेरा मन रखना शुरू कर दिया. चंद लोगों ने उसे ताने दिए. कहने लगे,कोई मिल गया होगा कॉलेज में..और इसी बात पे मैंने सोचना शुरू कर दिया...भला हो निंदकों का...मैंने उसका पुनर्विवाह करने की ठान ली. मैंने अपने एक रिश्ते की बहन को मेरी मनीषा बताई. उसने भी वर तलाशना शुरू कर दिया. चंद हफ़्तों बाद उसका मुझे फोन आया-दीदी, एक लड़का है..डॉक्टर है.उसका एक बेटा है.विधुर है.वह शादी करना चाह रहा है, और कहता है,की,किसी विधवा से ही करूंगा. मै बात आगे बढ़ाऊं?
"मैंने तुरंत हाँ कर दी."
इतने में वह जोड़ा आ गया. और बातें वहीँ रुक गयीं. मै अगले दिन का इंतज़ार करने लगी.
क्रमश:
(कल यह दास्ताँ पूरी हो जायेगी!)

14 टिप्‍पणियां:

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

पूरी कहानी के बाद पूरी प्रतिक्रिया देना ठीक होता, लेकिन घटना जिस प्रकार आगे बढ रही है, उससे एक बात स्पष्ट है... समाज जितना भी आधुनिक होने का ढोंग करे, रूढियाँ जाती नहीं... अपाहिज मनसिकता का परिचय देती प्रस्तुति...और हाँ परिंदों की जोड़ी जीवंत है...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कढाई हमेशा की तरह लाजवाब....और ये कथा भी बहुत मन को भा रही है...

Apanatva ने कहा…

are dekhiye abhee hee rahat mil gayee hai......kash har insaan itnee soojh boojh rakhe aur masale hal karle......
jindgee ko savarna hamare hee hath me hai.......
.hai na ?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

चित्र बहुत सुन्दर है, कृपया एक ही बार में लिख दिया करॆं तो अच्छा होगा...

Unknown ने कहा…

सुन्दर चित्र के साथ मार्मिक दास्तां...आगे की दास्तां का इन्तजार रहेगा..

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

आदाब ,
ये तो समझ में आरहा है कि आगे क्या हुआ ,
ये बहुत बड़ी बात है अगर इसी तरह सब लोग सोचें तो कितनी ही ज़िंदगियां संवर जाएं ,
धन्य हैं ये लोग इन्हें मेरा प्रणाम

Apanatva ने कहा…

jab bhee mahanagree aaee milane ka man hai.....

ज्योति सिंह ने कहा…

dhanya hai aese log jo gahre se gahre dard me bhi jeene ka hausala banaye rakhte hai ,padhkar man bhar gaya ,jeena ise hi kahte hai ,sundar aur gyanvardhak .

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही संवेदनशील कहानी है अगली कडी का इंतज़ार है।

दिलीप ने कहा…

are waah kadhai to mast hai kahani poori hokar kahani pe vichaar rakhunga...par romanch barkaraar hai...

Apanatva ने कहा…

kisee blog par pada ki aap hospitalised huee ......
take care
swasthy labh kee shubhkamnaon ke sath hum sanbhee aapke apne.........

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

nimantran: hamare blog pe aane ka.........aayengi!!??

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dil ko chhuti rachna.......agle baar jaldi aaunga........kyonki mann me bana rahega, kya hua??.........hai na.......

कडुवासच ने कहा…

...रोचक कहानी ... एक ही बार में बयां हो जाती तो ज्यादा ...!!!!