अचानक ख़याल आया ,ये इस ब्लॉग परकी १००वी पोस्ट है!
इन पहाड़ों से ,श्यामली घटाएँ,
जब,जब गुफ्तगू करती हैं,
धरती पे हरियाली छाती है,
हम आँखें मूँद लेते हैं..
हम आँखें मूँद लेते हैं...
उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,
ज़हन में छाते जाते हैं...
जब बदरी के तुकडे मंडरा के,
ऊपर के कमरे में आते हैं,
हम सीढ़ियों पे दौड़ जाते है,
और झरोखे बंद करते हैं,
झरोखे बंद करते हैं,
आप जब सपनों में आते हैं,
भर के बाहों में,माथा चूम लेते हैं,
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं,
हम जाग जाते हैं,
बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं..
22 टिप्पणियां:
प्रकृति के विभिन्न आयामों के साथ मन के भाव को पिरो कर इस कविता में जो आपने भावनाओं का गुम्फन किया है वह अभिभूत करता है।
सुन्दर कढाई और उस पर भाव भरी रचना ... सुन्दर समायोजन ..
कविता और पेंटिंग्स दोनों ही लाजवाब बधाई और शुभकामनाएं
कविता और पेंटिंग्स दोनों ही लाजवाब बधाई और शुभकामनाएं
श्रृंगार रस की कविता और उसपे बेहतरीन कलाकृति .. वाह क्या बात है !
बरसती बूँदों को सुखद अनुभव।
आदरणीय क्षमा जी!
निराला अंदाज है
कविता और पेंटिंग्स दोनों लाजवाब
100वीं पोस्ट!
बहुत-बहुत बधाई हो आपको!
बहुत - बहुत बहुत - बहुत बधाई ....यह सिलसिला यों ही बना रहे
शतकीय पोस्ट की बहुत -बहुत बधाई ,ये सफर यों ही जारी रहे .....
बधाई...बधाई....बधाई लेखनी का यह सफर चलता रहे.
बढ़िया , आज कुछ बात बनी है ...मन का मौसम भी आज जुदा सा है ....
आपके हाथों में गज़ब का टेलेंट है.तस्वीर और कविता वाह क्या कॉम्बिनेशन है.
सौवीं पोस्ट की बधाई... शुभकामनाएं.. हस्तशिल्प और कविता दोनों एक से बढाकर एक!!
100वीं पोस्ट की बधाई देने के लिए फिर आया हूं।
एक टोकरा और टन भर बधाई -आपका सृजन कर्म हमेशा ही जीवंत होता है!
यह एक फ्यूजन है दो सृजनात्मक विधाओं का -बहुत शुभकामनयें भी !
बुँदे और ख्वाब और कढ़ाई लाजवाब
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
100वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई...
खूबसूरत पहाड़ और प्राकृति को कैद किया है अपने इस काश्तकारी और शब्दकारी में ...
अनेक रंग लिए सुन्दर रचना ..
waah... behtareen...
aur ye lines...
बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं.
kitnee khoobsoorat hain...
जितनी भाव भीनी कविता उतना ही सुंदर कढाई से बना यह दृष्य ।
सेंचुरी पोस्ट की बधाई!! :)
Great job!
Very touchy and deep!
Regards,
Dimple
एक टिप्पणी भेजें