मंगलवार, 20 सितंबर 2011

इन पहाड़ों से....

अचानक ख़याल आया ,ये इस ब्लॉग परकी १००वी पोस्ट है!

.रेशमके कपडेपे water कलर, उसके ऊपर धुंद दिखानेके लिए शिफोनका एक layer ....कुछ अन्य रंगों के तुकडे, ज़मीन, पहाड़, घान्सफूस, दिखलाते है...इन कपडों पे कढाई की गयी है...
इन  पहाड़ों से ,श्यामली  घटाएँ,
जब,जब गुफ्तगू करती हैं,  
धरती पे  हरियाली छाती है,
हम आँखें मूँद लेते हैं..
हम आँखें मूँद लेते हैं...

उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,
ज़हन में छाते जाते हैं...

जब बदरी के तुकडे मंडरा के,
ऊपर के कमरे में आते हैं,
हम सीढ़ियों पे दौड़ जाते है,
और झरोखे बंद करते हैं,
 झरोखे  बंद करते हैं,

आप जब सपनों में आते हैं,
भर के बाहों में,माथा चूम लेते हैं,
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं,
हम जाग जाते हैं,

बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते  हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं..

22 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

प्रकृति के विभिन्न आयामों के साथ मन के भाव को पिरो कर इस कविता में जो आपने भावनाओं का गुम्फन किया है वह अभिभूत करता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर कढाई और उस पर भाव भरी रचना ... सुन्दर समायोजन ..

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

कविता और पेंटिंग्स दोनों ही लाजवाब बधाई और शुभकामनाएं

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

कविता और पेंटिंग्स दोनों ही लाजवाब बधाई और शुभकामनाएं

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

श्रृंगार रस की कविता और उसपे बेहतरीन कलाकृति .. वाह क्या बात है !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बरसती बूँदों को सुखद अनुभव।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय क्षमा जी!
निराला अंदाज है
कविता और पेंटिंग्स दोनों लाजवाब
100वीं पोस्ट!
बहुत-बहुत बधाई हो आपको!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत - बहुत बहुत - बहुत बधाई ....यह सिलसिला यों ही बना रहे

संजय भास्‍कर ने कहा…

शतकीय पोस्ट की बहुत -बहुत बधाई ,ये सफर यों ही जारी रहे .....

संजय भास्‍कर ने कहा…

बधाई...बधाई....बधाई लेखनी का यह सफर चलता रहे.

शारदा अरोरा ने कहा…

बढ़िया , आज कुछ बात बनी है ...मन का मौसम भी आज जुदा सा है ....

shikha varshney ने कहा…

आपके हाथों में गज़ब का टेलेंट है.तस्वीर और कविता वाह क्या कॉम्बिनेशन है.

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

सौवीं पोस्ट की बधाई... शुभकामनाएं.. हस्तशिल्प और कविता दोनों एक से बढाकर एक!!

मनोज कुमार ने कहा…

100वीं पोस्ट की बधाई देने के लिए फिर आया हूं।

Arvind Mishra ने कहा…

एक टोकरा और टन भर बधाई -आपका सृजन कर्म हमेशा ही जीवंत होता है!
यह एक फ्यूजन है दो सृजनात्मक विधाओं का -बहुत शुभकामनयें भी !

बेनामी ने कहा…

बुँदे और ख्वाब और कढ़ाई लाजवाब

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

100वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खूबसूरत पहाड़ और प्राकृति को कैद किया है अपने इस काश्तकारी और शब्दकारी में ...
अनेक रंग लिए सुन्दर रचना ..

POOJA... ने कहा…

waah... behtareen...
aur ye lines...
बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं.
kitnee khoobsoorat hain...

Asha Joglekar ने कहा…

जितनी भाव भीनी कविता उतना ही सुंदर कढाई से बना यह दृष्य ।

abhi ने कहा…

सेंचुरी पोस्ट की बधाई!! :)

Dimple ने कहा…

Great job!
Very touchy and deep!

Regards,
Dimple