रविवार, 25 सितंबर 2011

खिलने वाली थी...


खिलनेवाली थी, नाज़ुक सी
डालीपे नन्हीसी कली...!
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली....

( भ्रूण  हत्या  को  मद्देनज़र  रखते  हुए  ये  रचना  लिखी  थी ..)

31 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

ओह बेहद संवेदनशील.

संजय भास्‍कर ने कहा…

जज्बातों को खूबसूरती से लिखा है

mridula pradhan ने कहा…

dukhad.......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मार्मिक अभिव्यक्ति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

काश, उन बेहरहमों को भी ये समझ में आता...

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आप चलेंगे इस महाकुंभ में...?
...खींच लो जुबान उसकी।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बेहद मार्मिक .

सदा ने कहा…

ओह ..शब्‍दों में कितनी मार्मिकता है ..।

शारदा अरोरा ने कहा…

samvedansheel ....

vandana gupta ने कहा…

बेहद संवेदनशील और मार्मिक्।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

एक विकराल समस्या का मार्मिक वर्णन...

Rohit Singh ने कहा…

बाजजूद इतने प्रयासों के ये हत्या रुक ही नहीं रही। पता नहीं कब होगा इसका अंत। खासतौर पर लड़की का गर्भ में ही कत्ल कभी रुक सकेगा। आशा तो महिलाऔं से ही है..क्योकं मूढ़ पुरुष को भी समझ तब तक नहीं आएगी..जब तक उनके घर की सभी महिलाएं एकजुट होकर इसका विरोध करेंगी। कोई भी आंदोलन महिलाओं के समग्र सहयोग के पूरा नहीं होता।

Atul Shrivastava ने कहा…

मार्मिक प्रस्‍तुति................

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

मर्मस्पर्शी.... सार्थक...
सादर...

rashmi ravija ने कहा…

ओह! बहुत ही मार्मिक कविता

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…





आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

Arvind Mishra ने कहा…

मार्मिक प्रभावशाली प्रस्तुति!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कलि के माध्यम से गहरी बात कह डी आपने ... २१ वीं सदी आ रही है और समाज वहीं का वहीं है ... दुर्भाग्यपूर्ण ...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता और उसके निहितार्थ सच में बहुत गहरी बात है ... एक बेटी के बाप होने के नाते ये कह सकता हूँ कि इससे बड़ा आनंद और कुछ भी नहीं है ...

amrendra "amar" ने कहा…

संवेदनशील प्रस्तुति ...

अर्चना तिवारी ने कहा…

बड़ी मार्मिक कविता..गहन भाव से पूर्ण सुंदर चित्रण

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर लगा! उम्दा प्रस्तुती!
दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति..

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

मार्मिक शब्द चित्र। सुंदर कलाकारी।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.

Rewa Tibrewal ने कहा…

dardpurn chitran....aisa kyu karte hain log...umda rachna......

Dimple ने कहा…

Bahut achha likha hai...
Dard ko sahi sabdo mein bayaan karna - yehi toh kalaa hai aapki :)

How ru?? Long time - I was away from blogging... Now - back & will commenting on your blog...

Tcare
Dimple

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

shama ji
bahut hi dil ki gahrai se utre ye jajbaat, sach me aankh me aansu aa gaye.
jaane kab ye silsila khatm hoga???
bahut hi samvedan shil prastuti
poonam

शाहजाहां खान “लुत्फ़ी कैमूरी” ने कहा…

wah bhut achha sandesh.

ZEAL ने कहा…

ab bhi ye paap badastoor jaree hai...dukhad !

abhi ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत..मार्मिक!!