कब,कौन पूछता मरज़ी उसकी,
अग्नी से, वो क्या जलाना चाहे है,
जहाँ लगाई,दिल या दामन,जला गयी!
कुम्हार आँगन बरसी जलभरी बदरी,
थिरक,थिरक गीले मटके तोड़ गयी..
सूरज से सूखी खेती तरस गयी !
कलियों का बचपन ,फूलों की जवानी,
वक़्त की निर्मम धारा बहा गयी,
थकी, दराज़ उम्र को पीछे छोड़ गयी...
अग्नी से, वो क्या जलाना चाहे है,
जहाँ लगाई,दिल या दामन,जला गयी!
कुम्हार आँगन बरसी जलभरी बदरी,
थिरक,थिरक गीले मटके तोड़ गयी..
सूरज से सूखी खेती तरस गयी !
कलियों का बचपन ,फूलों की जवानी,
वक़्त की निर्मम धारा बहा गयी,
थकी, दराज़ उम्र को पीछे छोड़ गयी...
24 टिप्पणियां:
वक्त बहुत कुछ बहा कर ले जाता है अपने साथ
वक्त बहुत निर्मम है !
शुभकामनायें आपको !
भावनाओं का बेहतरीन प्रस्तुतिकरण।
शब्दों का सटीक प्रयोग।
समय के क्रूर पंजों ने आज हमसे बहुत कुछ छीन लिया है ... कविता ने बिम्बों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है सीमित पंक्तियों में ही।
यह जीवन की वह गुत्थी है जो आज तक न सुलझ पायी ..लोग कहते हैं प्रारब्ध(पिछले जन्म ) का भोग दंड है ..मगर मैं मानता हूँ बस संयोग है जिसे हम दुर्भाग्य भी कह सकते हैं और यह भी कि मनुष्य के हाथ कुछ नहीं है ..मनुष्य एक निमित्त मात्र है ...यह सब मनुष्य को इसी सकारात्मक भावना से लेना चाहिए कि उसकी कहाँ गलती है? और फिर जब उसकी गलती नहीं तो वह खुद को क्यों कोसे ? क्यों अधमारा रख कर अपने को रखे ? कुम्हार क्यों पछताए ? क्यों न फिर वह दुगुने उत्साह से अपने काम में लग जाय .....काफी दिनों बाद इतनी अच्छी कविता पढ़ा तो मन विवेचन को उत्साहित हो उठा !
यह जीवन की वह गुत्थी है जो आज तक न सुलझ पायी ..लोग कहते हैं प्रारब्ध(पिछले जन्म ) का भोग दंड है ..मगर मैं मानता हूँ बस संयोग है जिसे हम दुर्भाग्य भी कह सकते हैं और यह भी कि मनुष्य के हाथ कुछ नहीं है ..मनुष्य एक निमित्त मात्र है ...यह सब मनुष्य को इसी सकारात्मक भावना से लेना चाहिए कि उसकी कहाँ गलती है? और फिर जब उसकी गलती नहीं तो वह खुद को क्यों कोसे ? क्यों अधमारा रख कर अपने को रखे ? कुम्हार क्यों पछताए ? क्यों न फिर वह दुगुने उत्साह से अपने काम में लग जाय .....काफी दिनों बाद इतनी अच्छी कविता पढ़ा तो मन विवेचन को उत्साहित हो उठा !
अच्छा चिंतन।
वापस मुड़कर देखना कितना दार्शनिक हो सकता है।
bahut achchi lagi.....
ओह्…………कितना गहन चिन्तन है।
जो भी करें उसे प्रभु की इच्छा मानकर और मैं कर रहा हूँ ऐसा ना मानते हुए करें तो परिणाम का प्रभाव कभी भी उद्वेलित नहीं करता और न ही अहंकार प्रदान करता है कि यह मैंने किया..
होता यह है कि अच्छे किये गए कार्य की श्रेय हम स्वयं को देते हैं और उसके सुखद परिणाम के फल का अधिकारी स्वयं को मान लेते हैं, जबकि उसके दुष्परिणाम और कडवे फल के लिए परमात्मा को दोष देने लगते हैं.
एक नयी सोच को जन्म देने वाली कविता!!
सुन्दर चिंतन.
गहन भावों का समावेश ... मेरे ब्लॉग पर आपका प्रोत्साहन ..हमेशा मन का सुकून देता है ..आपका बहुत-बहुत आभार ।
behatreen prastuti...aabhaar.
Hello,
It was really touchy and too much depth in the words that you've used...
Brilliant composition...
Regards,
Dimple
कुछ सच्चाई कुछ उदासी लिए ... गज़ब की पंक्तियाँ हैं ये ...
दीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
मार्मिक।
कलियों का बचपन ,फूलों की जवानी,
वक़्त की निर्मम धारा बहा गयी.
गज़ब की पंक्तियाँ हैं.
यथार्त चिंतन संप्रेषित करती रचना
आपको सपरिवार दीपावली व नववर्ष की शुभकामनाएं !
गंभीर कविता...
गहरे भाव।ाति सुन्दर।
वक़्त का दरिया अपने साथ उम्र बहा ले जाता है... सुन्दर पक्तियां.. शुद्ध खरी बात...
गहन चिन्तन,गहन भाव,बेहतरीन प्रस्तुति
कुम्हार आँगन बरसी जलभरी बदरी,
थिरक,थिरक गीले मटके तोड़ गयी..
सूरज से सूखी खेती तरस गयी !
bhut gehri...bhut khubsoorat..!!
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