जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी!
उस की पैरहन पे सितारे जड़े थे,
नज़र कैसे उतारते ,सुबह हो गयी!
झूम के खिली थी रात की रानी,
साँस भी ना ली ,खुशबू फना हो गयी...
जुगनू ही जुगनू,क्या नज़ारे थे,तभी,
निकल आया सूरज,यामिनी छल गयी!
13 टिप्पणियां:
जुगुनुओं के लोकतन्त्र को छल सूरज का राज्य आ गया।
यामिनी का छल ही तो लाता है आशाओं का सिन्दूरी उजाला … बहुत सुन्दर रचना … शुभकामनायें
बहुत खूब
........बरस हो गई
बीती ताहि बिसार दे ....बीती विभावरी जाग री ......
बीती ताहि बिसार दे ....बीती विभावरी जाग री ......
झूम के खिली थी रात की रानी,
साँस भी ना ली ,खुशबू फना हो गयी...
bahut hi sunder bhav
Rachana
समय कहां किसी की प्रतीक्षा करता है
sundar likha hai ....
मन कियो कहां हो पाती है ... पलक झपकते ही रात बीत जाती है ... भावपूर्ण रचना ...
बेहद प्रभावी ......
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
sunder prastuti. mere blog par aapka swagat hai.
sunder prastuti. mere bhi blog par aapka swagat hai.
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