सहमी सिमटी है दुल्हनिया,
अभी छलके हैं इस के नैना,
यादों में है बाबुल अपना!
आँखों से कजरा बह गया,
बालों में गजरा मुरझाया,
हैं हिनाभरी हथेलियाँ,
याद आ रही हैं सहेलियाँ...
दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...
गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!
सिंगार ,हिना,सावन,नैहर, आँगन।
11 टिप्पणियां:
अचानक ही मुझे अपनी विदायी का दिन याद आ गया... सुन्दर रचना।
वाह !! रसभरी रचना ---बहुत सुन्दर ( मेरा ब्लॉग आपके इन्तजार में -देखें www.sriramroy.blogspot.in
कोमल दुनिया रहे यथावत,
स्वप्न नये आकर बस जायें।
मार्मिक.. जाने क्यूं... बेटी पराई हो जाती है
kshma ji ye to bahut hi badhiya rachna hai,yaado ke shringaar se sushobhit hai .shukriyaan bahut bahut .
दुल्हनिया शब्द देखते ही मुझे तीसरी कसम फ़िल्मे का वह गीत यादा आता है जो बच्चे बैलगाड़ी के पीछे पीछे गाते चलते हैं ^लाली डोलिया में लााली लाली रे दल्हनिया^
पीया के घर जाती है दुल्हन ... पर बाबुल को कैसे भूले ... संगी, सहेल्यों को कैसे भूले ... भावमय रचना ...
सिंगार ,हिना,सावन,नैहर, आँगन.......bahut sunder......
बहुत भावमयी सुन्दर रचना...
वाकई बहुत सुंदर शब्द संग्रह है।
गहन बिम्ब
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