गुरुवार, 12 सितंबर 2013

दुल्हनिया!


ना,ना,न छूना घूंघटा,
सहमी सिमटी है दुल्हनिया,
अभी छलके हैं इस के नैना,
यादों में है बाबुल अपना!

आँखों से कजरा बह गया,
बालों में गजरा मुरझाया,
हैं हिनाभरी हथेलियाँ,
याद आ रही हैं सहेलियाँ...

दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...

गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!

सिंगार ,हिना,सावन,नैहर, आँगन।

10 टिप्‍पणियां:

Parul Chandra ने कहा…

अचानक ही मुझे अपनी विदायी का दिन याद आ गया... सुन्दर रचना।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कोमल दुनिया रहे यथावत,
स्वप्न नये आकर बस जायें।

Arun sathi ने कहा…

मार्मिक.. जाने क्यूं... बेटी पराई हो जाती है

ज्योति सिंह ने कहा…

kshma ji ye to bahut hi badhiya rachna hai,yaado ke shringaar se sushobhit hai .shukriyaan bahut bahut .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

दुल्हनिया शब्‍द देखते ही मुझे तीसरी कसम फ़ि‍ल्‍मे का वह गीत यादा आता है जो बच्‍चे बैलगाड़ी के पीछे पीछे गाते चलते हैं ^लाली डोलि‍या में लााली लाली रे दल्‍हनि‍या^

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पीया के घर जाती है दुल्हन ... पर बाबुल को कैसे भूले ... संगी, सहेल्यों को कैसे भूले ... भावमय रचना ...

mridula pradhan ने कहा…

सिंगार ,हिना,सावन,नैहर, आँगन.......bahut sunder......

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावमयी सुन्दर रचना...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

वाकई बहुत सुंदर शब्द संग्रह है।

Arvind Mishra ने कहा…

गहन बिम्ब