कुछ
रंगीन कपडे के टुकड़े ,कुछ धागे , और कल्पना के रंग ...इन के
मेलजोल से मैंने बनाया है यह भित्ति चित्र...जब कभी देखती हूँ,अपना गाँव
याद आ जाता है..
वो वक़्त भी कैसा था,
सुबह का सुनहरा आसमाँ,
हमेशा अपना लगता था!
तेरा हाथ हाथों में रहता,
शाम का रेशमी गुलाबी साया,
कितना पास लगता था !
रंगीन रूई से टुकड़ों में चेहरा,
खोजना एक दूजे का,
बेहद अच्छा लगता था !
आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....
शाम का सुरमई गुलाबी साया,
लगता है कितना सूना,सूना!
रातें गुज़रती हैं,तनहा,तनहा...

वो वक़्त भी कैसा था,
सुबह का सुनहरा आसमाँ,
हमेशा अपना लगता था!
तेरा हाथ हाथों में रहता,
शाम का रेशमी गुलाबी साया,
कितना पास लगता था !
रंगीन रूई से टुकड़ों में चेहरा,
खोजना एक दूजे का,
बेहद अच्छा लगता था !
आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....
शाम का सुरमई गुलाबी साया,
लगता है कितना सूना,सूना!
रातें गुज़रती हैं,तनहा,तनहा...

लेबल: आसमान , रातें ,साए , तन्हाई , वक़्त ,हिन्दी कविता
10 टिप्पणियां:
जितना सुन्दर चित्र बुना, उतनी ही सुन्दर कविता भी बुनी।
यादें...जीवन का एक अहम् हिस्सा .....इतना ....कि उनके बगैर ...जीना भूल जायें ....वाकई ...!!!!
वियोग की रेशमी सिहरन
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
गुरूजनों को नमन करते हुए..शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (06-09-2013) के सुबह सुबह तुम जागती हो: चर्चा मंच 1361 ....शुक्रवारीय अंक.... में मयंक का कोना पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी रचना।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
कृपया आप यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13
यादों के झरोखे से ...रेशमी एहसास
आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....
...वाह! बहुत भावपूर्ण रचना...
वक्त की कद्र शायद गुजर जाने के बाद ही होती है।
chitr aur kavita donon hi lajabab.....
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