बुधवार, 18 नवंबर 2009

Ek safar tanhaa..

एक लम्बा तनहा सफ़र...जहाँ दूर दूरतक छाया नही...मानो रेगिस्तान हो..मील के पत्थर कहाँ खोजूँ? बरसों मिला नही...यही पता नही की, कितना दूर निकल आयी हूँ..सरपे धूप रही या रातमे अँधियारा...जो राह दिखाए वो तारा कहीं नही था..युग  बीते..मध्यान्य का सूरज  ...परछाई पैरों तले...दिशा कैसे पता चले? कैसा भयानक दिशा  भ्रम है?

कुछ  तो कहीं रहगुज़र होती...कोई हमसफ़र होता...पर सब कब बिछड़ गए,कैसे बिछड़ गए? एक शोर-सा सुनायी देता था..पर उसे सुने भी अरसा हुआ..कहाँ है मंजिल मेरी...??उस धूलसे सने मीलके पत्थर के पास? जिसे मै पीछे छोड़ आयी..? लौटने के लिए राह नही...आगे,आगे चलती हूँ...पीछे छूटी सराय  के दरवाज़े बंद हो जाते हैं...सराय भी कैसी? अंधेरी..बिना छतकी..दीवारों पे उल्लू और चिमगादर....बस वही ज़िंदगी का निशाँ...मै तो डरना भी भूल चुकी हूँ...ज़िंदगी के निशाँ खोज रही हूँ...गर मेरे साथ उड़े तो ये परिदे भी चलेंगे...लेकिन मेरे लिए ये क्यों अपना बसेरा छोड़ेंगे? 

इन राहों पे लुटेरे भी नही,जिनपे मै चल रही हूँ...क्यों होंगे यहाँ लुटेरे जब पास कोई खजाना भी नही..दरबदर भटकता जीवन..आस के सारे पाखी उड़ गए या मैंने उड़ा दिए? खबर नही..रात कभी रेतपे सो जाती हूँ...तो सपनों में अपनी माँ दिखाई देती है...जो नही रही...सखियाँ जो कबकी साथ छोड़ कहीँ खो गयीं..माँ जो लोरी गुनगुनाती थी,वो भी सुनायी देती रहती है...काश सपने टूटे ना..मै रातों में जी लूँगी...ये हाथसे छूटे ना..

क्रमश:

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बेहतरीन लेखन!
बधाई!

ज्योति सिंह ने कहा…

kitno dilo ki baate aapki kalam ne byan kar di ,
काश सपने टूटे ना..मै रातों में जी लूँगी...ये हाथसे छूटे ना..

waah bahut umda ,yahan main khud hi khamosh ho gayi ,kai rang ud gaye dil ke jaane kahan ,umango me paa nahi saki ,wo bichhda jahan ,dhoondhu jaakar kahan .

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

शमा जी,

आपकी लेखनी किसी शिल्प की भांति है जिसमें जड़ा हुआ एक एक शब्द जैसे गढ़ा गया हो। विषय कोई भी हो या किसी के लिये कोई टिप्पणी लिखी हो सभी जगह एक सी वैचारिक समृद्धता, मैं अभीभूत हूँ।

बिखरे सितारे के माध्यम से जीवनभर के घटनाक्रम को आबद्ध किया है ऐसा लगता है किसी आर्कियोलॉजिकल दस्तावेज से गुजर रहे हो।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Pawan Kumar ने कहा…

बहुत ही दिलकश रचना ...........

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपको पढ़कर स्व० मीना कुमारी की चंद लाइनें याद आती हैं
--चाँद तन्हां है आसामां तन्हां सिमटा-सिमटा सा इक मकां तन्हां
--बहुत दर्द भरा सफर है मेरी दुआएँ हैं कि ताउम्र सपनों का साथ ना छूटे
सपने ही तो हैं जिनके भरोसे हम अपना सफर तय करते हैं।

Rohit Jain ने कहा…

bahut achchha lekh hai....dhool se sane pathar....maa ki lori.....bahut achchha.....Shukriya.

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

agli kadi ka intjaar, ese marmik lekhan ko poora hi likh diya kijiye, kyoki thahraav me azeeb sa lagtaa he/