पिछली फरवरी से मै इस घटना के बारेमे लिखना चाह रही थी. दो तीन तस्वीरें मुझे और चाहिए थीं और इसी कारण रुक गयी.शाम के पाँच बज रहे थे.मै घर के एक शयन कक्ष के पाससे गुज़र रही थी.अचानक उस कमरे से लगे गुसलखाने से मुझे चिड़िया के बच्चे की आवाजें सुनायी दी. उस गुसलखाने की खिड़की में लगे exhaust fan की पातें और उस के आगे मैंने लगाई जाली के बिछो बीछ एक परिंदे के जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था,यह बात तो मुझे पता थी.बल्कि उसकी सुरक्षा के ख़ातिर मैंने पंखे का स्विच ऊपरसे ही बंद कर रखा था.(पहली ही तसवीर में पंखा,गुसलखाना और वहाँ बना घोंसला नज़र आ रहा है).
परिंदे के बच्चे की आवाज़ सुन मै तुरंत गुसलखाने में घुस गयी. देखा एक बच्चा वहाँ दीवारों से बेतहाशा टकराए जा रहा था.उसकी साँसें फूल रही थीं.मैंने उसे हाथ में उठा लिया और खिड़की की कांच पे रख दिया.वहाँ से उसका घोंसला केवल आठ इंच की दूरी पे होगा. लेकिन बेचारा इतना डरा हुआ था,की,उसकी समझ के परे था. वैसे भी वो शायद पहली बार घोंसले के बाहर निकला होगा.मैंने उसे अपनी हथेलियों पे उठा लिया.वो काँप रहा था. थकानसे उसकी आँखें मूँदी जा रही थीं और साँस फूल रही थी.कुछ पल मुझे लगा कहीँ ये दम ना तोड़ दे. घरमे ना जाने किस कारण एक पिंजडा पडा था.मैंने परिंदे को उसमे रखा. रखने से पहले उसे दाना देनेकी,पानी पिलाने की बड़ी कोशिश की.बेचारे को अब तक तो मादा दाना खिलाती होगी.उसे कुछ समझ नही आ रहा था. मैंने अपनी छत पे वो पिंजडा लटका दिया.
अन्धेरा घिर रहा था.तभी देखा, परिंदे का जोड़ा उस पिंजड़े के इर्द गिर्द मंडरा रहा था.उस बच्चे को उस समय छोड़ देना मुझे खतरे से खाली नही लगा. वैसे भी यक़ीन नही था,की,उस बच्चे को उसके माता-पिता वापस लेंगे या नही. और लेभी लें तो कैसे? छत पे बिल्लियाँ भी आती थी. मैंने पिंजड़े को अपने कमरे में रख दिया.उसमे दाना पानी तो डाला ही.कमरे की बिजली बंद कर दी.बेचारा खामोश,आँखें मूंदे बैठा रहा.
सुबह मैंने पिछली बालकनी में वो पिंजडा रखा.देखा तो वो जोड़ा वहाँ भी आया था. अब मुझे यक़ीन हो गया की,ये जोड़ा उस बच्चे को ले जाना चाह रहा है.मै उस पिंजड़े को उठा छत पे ले गयी.(आख़री तसवीर, जो उस शाम मुझे किसी आगंतुक ने अपने मोबाइल के कैमरे से खींच दी थी..तस्वीर धुंदली है.गौरसे देखा जाये तभी बच्चा उस में दिखता है..लग रहा था,की,काश मेरा अपना कैमरा इस वक़्त मेरे पास होता..कोई ले गया था.)
छत पे लगे एक हुक में मैंने पिंजडा लटका दिया और उसका दरवाज़ा खोल दिया.बच्चे को अपनी माता पिता की आवाजें सुनायी दे रही थीं.वो पिंजड़े में काफ़ी देर टकराता रहा.अंत में अचानक खुले दरवाजेसे धम करके फर्श पे जा गिरा.मैंने दिल थाम लिया...! उसे वहाँ देखते ही मादा मेरे वहाँ रखे एक बोन्साय के पौधे के डाल पे जा बैठी. बच्चा उड़ के उस के पास जा बैठा. मै निहाल हो गयी..(तस्वीर में वो डाल नज़र आ रही है.)
चिड़िया वहाँ से तुरंत उडी और छत की रेलिंग पे जा बैठी.( डाल के ठीक बीछ से वो रेलिंग नज़र आ रही है और वहाँ से बाहर की ओर से वो घोसला भी.) बच्चा अपनी माँ के पीछे उड़ के रेलिंग पे जा बैठा..आह! यहाँ से घोंसला दूर था और मादा उड़ के घोंसले के बाहर जा बैठी...मै डर गयी,की,कहीँ बच्चा नीचे ना जा गिरे.सातवें माले से सीधा नीचे गिर सकता था....लेकिन मादा बेहतर जानती थी... बच्चा उडा और मादा के पीछे खिड़की पे बैठा और बाद में घोंसले के अन्दर....! उसके पीछे नर भी अन्दर घुस गया.मेरी आँखों से अबतक बेसाख्ता आँसूं बहे जा रहे थे! क्या नज़ारा मुझे क़ुदरत ने दिखाया था! गर यही विडिओ ग्राफ होता तो कितनी यादगार फिल्म बन जाती!
इस माह उस जोड़े ने तीसरी बार वहाँ अंडे दिए और बच्चे निकाले..हर बार अंडे देने से पूर्व वो चिड़िया नए तिनके लाती है और पुराने तिनके गुसलखाने में गिरा देती है.( वन बेडरूम अपार्टमेन्ट का रेनोवेशन होता रहता है !!)गर उस चिड़िया को मै शुक्रिया कह सकती तो ना जाने कितनी बार कहती...मुझपे विश्वास करने के लिए..बार,बार अपना घरौंदा बनाने के लिए..के उसे वहाँ इतना महफूज़ लग रहा था..अब एक और किसी अन्य परिंदे का जोड़ा घुसलखाने के अन्दर लगे पंखे पे अपना घोंसला बनाने की कोशिश में है! वो तिनका तो गुसलखाने की खिड़की से लाती है,लेकिन वापस उड़ ने के लिए उसे कमरे की खिड़की से जाना होता है!
17 टिप्पणियां:
kitna fakr hai aapkee nekneeyatee par iseka aap andaza bhee nahee laga saktee....we all are proud of you .
चिड़िया कि ये लीला आँखों के सामने घूमने लगा .......चिड़ियों के लिए ये प्रेम देखर ....बहुत अच्छा लगा .
आपकी संवेदनशीलता को नमन...और इतनी अच्छी तरह बयान किया है कि लग रहा है सारा दृश्य हम स्वयं आँखों से देख रहे हैं
bahut acchaa lekhan..tasvir our ktha ki bhumika ko koi jabaav nahi....i salute you.
आपके ब्लॉग पर जो मौलिकता मिलती है, कहीं नहीं मिलती। जैसे जेठ की दुपरी में बरगद की छांव के नीचे सुस्ताने का आनंद मिल गया हो। बड़ा सुकून मिलता है।
सब चलचित्र सा आँखो के सामने दृश्य उपस्थित हो गया……………आपके पंछी प्रेम और सहृदयता को नमन्।
aapke pankshhiyon ke fikar karne ka tarika bha gayaa........:)
bahut sundar byan kiya hai aapne shabdo me isse
चलिए ये जानकर अच्छा लगा कि आखिर बच्चा घोंसले तक पहुँच गया ... आपकी संवेदनशीलता को जितना सराहा जाये कम है ...
sahi hai ek insan hone ka farj to nibhana hi chahiye
dhanywad is nek kaam k liye.
आज तो बस :)
कुछ भी और कहना मेरे बस में नहीं!!
पशु-पक्षियों की भी अपनी भाषा होती है, और सिखाने के नायाब तरीके भी. कितनी समझदारी से चिड़िया मां ने बच्चे को घोंसले में पहुंचाया. इंसानों को पशु-पक्षी बेहतर समझ पाते हैं, बार-बार साबित होता है ये..
पंछी प्रेम और सहृदयता को नमन्।
इस बार आपके लिए कुछ विशेष है...आइये जानिये आज के चर्चा मंच पर ..
आप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
आपकी संवेदनशीलता को नमन ..मर्मस्पर्शी पोस्ट.
बहुत अच्छा लगा
kitna samvedansheel post hai ye..aur kya kahun kuch samajh mein nahi aa raha
बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट ... बचपन में ले गयी ....
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