बस ,ट्रेन,या कार में सफ़र करते समय आसपास लगातार निरिक्षण करना मेरी आदत -सी बन गयी है. रास्तेपे चलते हुए लोग,सब्ज़ी खरीदती औरतें,बस पकड़ने के लिए भागते हुए लोग,रास्ता पार करते हुए लोग....और उन सब के हावभाव....बड़ा मज़ा आता है देखते रहने में!
उस दिन इसी तरह मेरी कार ट्राफिक सिग्नल पे रुकी थी. दाहिने हाथ पे चौड़ा रोड divider था. वहाँ चंद भिखारी बच्चे आपस में मौज मस्ती कर रहे थे. एक लडकी,जो कुछ १२ या १३ साल की होगी,छोटे बच्चे को गोद में लिए, कभी रुकी हुई गाड़ियों के पास जाके भीख मांगती तो कभी अन्य भीखमंगों के साथ छीना झपटी करती .देखने में एकदम चंचल और चंट लग रही थी. एक और बात मैंने हमेशा गौर की. सभी गरीब तपके की औरतों के बाल बडेही लम्बे और घने होते हैं! उनमे चाहे मिट्टी जमी हो, चाहे जुएँ हों! गर्दन पे बड़ा-सा जूड़ा ज़रूर बंधा होता है! खैर!
मेरी गाडी तो चीटीं की चाल से रेंग रही थी. मुंबई में जो थी! उस लडकी के पास से एक करीब सत्तर साल का वृद्ध, सरपे टोकरी लिए गुज़र रहा था. बड़ी,बड़ी सफ़ेद मूँछें थीं और चेहरे पे स्वाभिमान की झलक. देखने में राजस्थानी लग रहा था. इस लडकी ने उससे फल माँगने शुरू किये. उस फलवाले ने उस तरफ गौर नही किया. तब लडकी ने उसे पैसे दिखाते हुए कहा की,वो खरीदेगी. फलवाला भी चौकस था. वो फूटपाथ पे एक ओर बने छोटे-से चबूतरे पे चढ़ गया. मै साँस रोके देख रही थी. मुझे यक़ीन था की गर बूढा टोकरी नीचे रखेगा तो लुट जाएगा....उसने टोकरी सरपे ही रखे,रखे, उसमे हाथ डाला और संतेरे की एक जालीदार थैली नीचे उतारी.उस में चार संतरे थे. उस लडकी ने तुरंत उसे झपटना चाहा. बूढा अनुभवी था और ताक़तवर भी. उसने उतनी ही चपलता से उस थैली को बचाया और वापस अपनी टोकरी में डाल दिया. एक लफ्ज़ भी नही कहा और दूसरी तरफ का रास्ता पार कर चला गया.
इससे पहले की वो चल देता,मैंने उसे बुलाना चाहा,लेकिन इतनी भीड़ और शोर में उसे ना सुनाई दिया ना दिखाई दिया....मुझे बड़ा ही अफ़सोस हुआ. मै उससे फल खरीद उन बच्चों को देना चाह रही थी. अक्सर मेरी कार में मै केले या फिर ग्लूकोज़ के बिस्कुट के छोटे,छोटे packet रखती हूँ. भीखमंगों को पैसे देने से कतराती हूँ. वजह ये की,उनका भी माफिया होता है. वो पैसे बँट जाते हैं. माँगने वाले बच्चे के हाथ में या पास में रहेंगे ऐसा नही होता. खानेकी चीज़ तो कम से कम उनके पेट में जाती है. उस वक़्त मेरे पास कुछ नही था....अपने आप पे बड़ी कोफ़्त हुई. उस लडकी के बर्ताव से दुःख भी हुआ,की, उसे बूढ़े व्यक्ती से छीना झपटी नही करनी चाहिए थी. वो बूढा भी तो गरीब ही था. उस उम्र में भी सर पे टोकरी रख स्वाभीमान से अपनी रोज़ी कमाने की कोशिश कर रहा था. वैसे,भरे पेट नैतिकता की बातें करना और सोचना आसान होता है,ये भी जानती हूँ! मौक़ा मिलते ही मैंने बिस्कुट के packet खरीद के रख लिए!