
बचपनकी एक यादगार जगह! हमारे खेत में तीन कुदरती तालाब थे. अब तो खैर सभी सूख गए हैं. उनमे से एक तालाब से मुझे कुछ ख़ास ही लगाव था. दादीमाँ और माँ बगीचे में तरह तरह के फूल पौधे लगाती रहती और मै उन्हें लगाते हुए देखा करती. जब मुझे कोई नही देख रहा होता तो उन्हें उखाड़ के मै मेरे पसंदीदा तालाब के किनारे ले जाती. अपने खिलौनों के औज़ारों से वहाँ गड्ढे बनाके रोप देती.मेरी तब उम्र होगी कुछ पाँच साल की.. तालाब में से पानी निकाल नियम से उन्हें डालती रहती और ये पौधे वहाँ खूब फूलते .
लेकिन क्यारियों में से पौधे जब गायब दिखते तो माँ और दादी दोनों हैरान हो जातीं! एक बार दादीमाँ को कहते सुना," पता नही इन पौधों को चूहे उखाड़ ले जाते हैं?"( उन्हें क्या पता था की,उनके घर में एक चुहिया है जो उखाड़ ले जाती है!!)
एक बार दादी माँ दादा से कह रही थीं ," वो जो शीशम के पेडवाला तालाब है वहाँ girenium और hollyhocks खूब उग रहे हैं! आपने भी देखा ना! समझ नही आता वहाँ उनकी पौध कैसे पहुँच जाती है?"
और इसी तरह बरसों बीते. उस एक शाम के बाद मै उस तालाब के किनारे बरसों तक नही गयी और बाद में वो सूख ही गया. सूख जाने से पहले वो कुछ ऐसा-सा दिखता था,जैसा की,चित्र में दिख रहा है.
सफ़ेद सिल्क पे तालाब और आसमान जल रंगों से बना लिए. फूल पौधे कढाई कर के बनाये हैं.
आईना देख,देख,
हाय रोया मेरा मन,
शीशे ने कहा पलट के,
खो गया तेरा बचपन.
पहन के बड़ी बड़ी चप्पल,
चलते थे नन्हें,नन्हें क़दम,
जब तन पे ओढ़ा करती,
माँ दादी की पैरहन..
छूटेंगी तेरी सखियाँ,
छूटेंगी नैहर की गलियाँ,
छूटेंगी दादी,माँ और बहन,
छूटेगा अब ये आँगन,
न लौटेगा मस्तीभरा सावन,
छूटेंगी ये गुड़ियाँ,
जिन्हें ढूँढेंगे तेरे दो नयन,
यादोंकी गली में रह जाएगा
नीले तालाब का खामोश दर्पण,
खोयेगी बहुत कुछ,
तब मिलेंगे तुझको साजन...