उन दिनों हम लोग विदर्भ में थे. मैंने सुन रखा था,की, गढ़चिरौली के आदिवासी चटाई बुनते हैं.एक गैर सरकारी संस्था को मै इस बारेमे वाकिफ़ कराना चाह रही थी.मनमे था की, गर उन्हें lamp शेड, पेन होल्डर, टेबल mats तथा अन्य बहुत-सी चीज़ों के डिजाईन दी जाये तो उन्हें बड़े शहरों में होनेवाली प्रदर्शनियों में रखा जा सके. शायद वो लोग अपने हुनर से कुछ कमा सकें. मैंने गढ़चिरौली जानेका इरादा कर लिया. कुछ लोगों ने मुझे उन रास्तों पे होने वाले नक्सल वादी हमलों के बारेमे आगाह किया. लेकिन मैंने ठान लिया था,तो एक जिप्सी में निकल पडी. साथ एक बन्दूक धारी रक्षक था.
रास्तेमे हमें जंगली भैंसों का एक झुण्ड दिखा. ज़रा-सा रुक वहाँ की २/३ तस्वीरें खींच ली.बस उसी समय एक धमाका सुनाई दिया. हम रुके थे वहाँ से बस्ती ज़्यादा दूर नहीं थी...दिवाली करीब थी...कान पटाखों के आदि हो गए थे...धमाके की ओर गौर कियाही नहीं..
नीचे बने छोटे -से भित्ती चित्र की वही तसवीर प्रेरणा थी. तसवीर में कोई रंग नहीं थे...बस पेड़ों के पतले पतले तने,और इत्तेफ़ाक़न देखा गया भैंसों का झुण्ड. जब उसे कपडे पे उतारने लगी तो मेरे हाथ कुछ रंग बिरंगी नेट के तुकडे लग गए. आसमाँ रंगीन हो उठा! खैर!
फिर से उस रास्ते पे चलते हैं..तसवीर खींच के हम जिप्सी में बैठे ही थे,की, उसमे लगे wireless सेट पे मेसेज आया....हमलोग तुरत लौट जाएँ..उसी रास्ते को आगे रोड mine से उडा दिया गया था. बाद में पता चला की, निशाना तो हमारी जिप्सी थी..तसवीर लेने में कुछ समय निकल गया और धमाका जिप्सी पहुँचने के पहले हो गया..कुछ दिनों बाद अलग रास्ता ,अलग वाहन और बिना बन्दूक धारी रक्षक के मैं उस बस्ती पे पहुँची ज़रूर. मेरा मक़सद भी पूरा हुआ..उसकी मुझे खुशी है....बाद में हम लोग तबादले पे वहाँ से निकल पड़े. वो काम आगे चलाया गया या नही, इस बातकी ख़बर मुझे मिल न सकी. घरमे, मेरे कमरे में लगी यह तसवीर, वैसे शायद कुछ ख़ास नही, लेकिन फिरभी उस घटना के कारण एक यादगार बन गयी.
इस घटना को मैंने बहुत काम लोगों से साझा किया..वजह, जिन २/४ बार इसका उल्लेख हुआ, मुझे बेवक़ूफ़ करार दिया गया!
'भारतीय नागरिक ' द्वारा पिछली रचना पे टिप्पणी के तौरपे, की गयी बिनती,की,इस बार मै कुछ जोश भरा लिखूँ, मैंने यह पोस्ट लिख दी...! इस घटना को कविता में लिखना मेरे बस की बात नही..! इसलिए क्षमा को क्षमा करें!
गुरुवार, 6 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
17 टिप्पणियां:
कभी कभी अपनी बाते कविता में पूरी तौर
पर नहीं समाती इस कारण उसे इस तरह लिखना
ठीक रहता .जिससे हम भी बेहतर समझ पाए
और पढ़कर अच्छा भी लगा .
aapkee lagan saahas ko daad detee hoo......bhavo se judna accha lagta hai madhyam kuch bhee ho......
हूं.... एन्ग्री यंग लेडी....साबित कर दिया आपने कि हम जो ठान लेते हैं, वो कर दिखाते हैं. रोमंचक घटना है. और तस्वीर? आप कहतीं है कि खास नहीं, लेकिन मुझे तो बहुत खास लग रही है. इस कला में तो आपको महारथ हासिल है ही.
जीवन में संयोग का स्थान होता है. आप इसी संदर्भ में देख लीजिये.
आप हमेशा सलामत रहें....हां तस्वीर अच्छी लगी.
bahut himmati ho shama............shukra hai bach gayin aur koi hota to dobara jane ki himmat hi nahi karta..........tasveer waki bahut hi khoobsorat hai.
marne wale se bachane wala bada ye baat charitarth hoti hai aapki is ghatna se...aapka prayatn kaamyaab raha...ye khushi he..aur chitr bahut khoobsurat.
mere blog par aane ke liye dhanyewad.
तस्वीर बहुत सुन्दर है ... और वाकया वाकई रोचक है, केवल रोचक ही नही अपितु रोंगटे खड़े कर देने वाला है ...
आप हमेशा सलामत रहे यही कामना है
चलिये एक नये अनुभव से रूबरू हुईं आप..
रोमांचक संस्मरण....बहुत खूब
मान गये आपके साहस और आपके ज़ज्बात को । बहुत रोमांचक वाकया है । तस्वीर बहुत खूबसूरत है। और हाँ, हौसला बढ़ाने के लिये शुक्रिया ।
सबसे पहले तो एक बात जिसका ज़िक्र हम दोनों अक्सर करते हैं कि आपकी पोस्ट में आपकी कला और कविता दोनों का समावेश इस ख़ूबसूरती से किया होता है कि बस ‘वाह’ के सिवा कुछ भी कहने में हम असमर्थ पाते हैं स्वयम को. आज की पोस्ट पर तो बस आपके जज़्बे को सलाम!! आपने उस लम्हे को फ्रेम में क़ैद कर लिया है.
अब थोड़ा मज़ाक – ये दो तिहाई (2/3) तस्वीरें खींचना और दो चौथाई, अर्थात आधा (2/4) का बार उल्लेख करना समझ नहीं आया!! हा हा हा!!
(2-3 तस्वीरें और 2-4 बार उल्लेख)
बड़ी लाजवाब घटना है,जो आपकी बहादुरी भी दर्शाती है....एक तस्वीर ने आपको बचा लिया!काश आप वही तस्वीर इस पोस्ट में लगाती,जो आज यादगार बन गयी है...
सच्चाई के लिए ताकत की नहीं हिम्मत की जरुरत होती है.. और वो बहुत कम लोगो में होती है.. इस जज्बे को सलाम!
आदरणीया
विदर्भ के जंगलों में यूँ हिम्मत दिखाना निश्चित ही प्रशंसनीय है.......यह संस्मरण साझा करने का शुक्रिया...! किस सेवा में हैं आप ?
जी आपने इस विषय पर पूरी इमानदारी से लिखा!साहित्य और अनुभव का बढ़िया मेलजोल दिखा यहाँ!
कुंवर जी,
pure prasang ne sihran paida kar di
जज्बे को सलाम!
एक टिप्पणी भेजें