गुरुवार, 12 अगस्त 2010

जिस नैमत को कहते हैं आज़ादी

घर की दरों दीवारें सजतीं..कभी केसरिया रंगों में( जैसे चित्र में दिखाई दे रहा है),तो कभी हरा तो कभी सफ़ेद...या फिर इन तीनों रंगों के समन्वय से.आँगन में रंगोली..वही तीन रंगों में,वंदनवार बनता...गेंदे की पंखुड़ियां ,मोतिया के फूल और हरी पत्तीयाँ... तिरंगा भी इन्हीं से...सुबह से रेडिओ शुरू रहता..."आवाज़ दो हम एक हैं,'(रफ़ी...उनके जैसे कौमी गीत तो किसी ने गए नही),"वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो",इस देश को रखना मेरे बच्चों संभालके","चलो झूमते सरसे बांधे कफन,लहू माँगता है ज़मीने वतन"(लता","ए मेरे वतनके लोगों",और न जाने कितने गीत कान और मन तृप्त करते रहते.
सखी सहेलियों को पहले से ताकीद रहती की,वेशभूषा तिरंगे के रंगों से मेल खाती होनी चाहिए.देश्भाक्तिपर गीतों से क्विज़  शुरू होता.तोहफे भी इन्हीं तीन रंगों में होते...किसीको हरा दुपट्टा  तो किसीको सफ़ेद कुरता!कुशन  covers टेबल mats ,आदि सब मै घर में  इन्हीं रंगसंगती  से बनाती.
"झंडा उंचा रहे हमारा",ये प्रार्थना गीत ज़रूर होता.
गांधी,जागृती, जैसी फिल्मों का टीवी पे इंतज़ार रहता.
आज तो वो गाने ना जाने कहाँ गायब हो गए? सुनाई नहीं देते!
पाँच साल पहले जब हम यहाँ रहने आए तो पूरी सोसाइटी में ७५ से अधिक निमंत्रण १० अगस्तको भेजे,१५ अगस्त पे रखे नाश्ते और कुछ खेलके.सोचा १० या १५ लोग तो आही जायेंगे! और एकभी नही आया.बस उस बार से परिवार ,सखी सहेलियाँ कुछ ऐसी बिखरी की,फिर इन दो त्योहारों के दिन,जो मेरे लिए होली ,दिवाली,ईद सबसे अधिक अहमियत रखते थे,मै मनाही नही सकी. हाँ! मिठाई बना अडोस पड़ोस में भेज देती हूँ! एक बार किसी ने पूछा"" आज क्या मौक़ा है?"
मैंने कहा,"१५ अगस्त हैना!"
वो बोली," हाँ,हाँ वो तो पता है,पर मौक़ा क्या है? जनम दिन है किसी का?"
मै:"अपनी आज़ादी का जनम दिन जो है!"
वो थोड़ी सकपका गयी.

जिस नैमत को कहते हैं आज़ादी,
 हम भूल गए उसे इतनी जल्दी?
भूल गए शहादत शहीदों की?
भूल गए क़ुरबानी  बा बापूकी?
बच्चों को कहते नही,
के संभालके रखो आज़ादी,
बड़ी मुश्किलों से ये है पाई,
क्यों करते नही इसकी क़द्रदानी?

आप सभी को आज़ादी का यह पर्व बहुत,बहुत मुबारक हो! 
पार कर दो सरहदें जो दिलों में ला रही दूरियाँ!
इंसान से इंसान तकसीम हो,खुदा ने कब चाहा?




24 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सच है दी, देश भक्ति का वो जज़्बा अब इतना कम दिखाई देता है, कि खत्म होता सा लगता है. सुन्दर संस्मरण.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छी पोस्‍ट .. आप को भी आज़ादी का यह पर्व बहुत बहुत मुबारक हो !!

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

क्षमा जी… आप बहुत सम्वेदनशील हैं, शायद तभी मैं आपको अपनी सम्वेदनाओं के बहुत क़रीब पाता हूँ... आपने मेरे दूसरे ब्लॉग पर आना छोड़ रखा है… वो मेरी व्यक्तिगत सम्वेदानों का लेखा जोखा है.. ख़ैर अपनी बात बंद... जितनी सम्वेदनशीलता के साथ आपने 15 अगस्त का वर्णन किया है वो सब सुनकर बचपन की यादें सामने आ गईं. लेकिन क्या समझाएंगी आज़ादी का मतलब उन बच्चों को जिनकी किताबों में भगत सिंह की जगह आज के किसी भ्रष्ट नेता की जीवनी पढाई जाती है और बताया जाता है कि इन्होंने बहुत त्याग और समाज सेवा की. बच्चे आज़ादी के रियल हीरोज़ से दूर होते जा रहे हैं. आपकी सम्वेदनशीलता को सलाम!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कितनी सटीक बात कही है...लोग आज़ादी का मतलब भी भूल गए हैं ...बहुत अच्छा लिखा है...नमन है इस जज्बे को

شہروز ने कहा…

आज़ादी का मतलब उन बच्चों को जिनकी किताबों में भगत सिंह की जगह आज के किसी भ्रष्ट नेता की जीवनी पढाई जाती है और बताया जाता है कि इन्होंने बहुत त्याग और समाज सेवा की.


..

आज़ादी की वर्षगांठ एक दर्द और गांठ का भी स्मरण कराती है ..आयें अवश्य पढ़ें
विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्षमा जी… आप की आपकी सम्वेदनशीलता को सलाम!

... बेहद प्रभावशाली

abhi ने कहा…

बहुत खुशी होती है, आपसे प्रेरणा लेनी चाहिए बाकी सभी लोगों को आज़ादी का जश्न मानाने के लिए :)
बहुत बहुत अच्छी पोस्ट...सुबह सुबह दिल खुश हो गया

बेनामी ने कहा…

आभार - धन्यवाद् तथा बधाई

शारदा अरोरा ने कहा…

क्षमाजी , आपने बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी , घर और केक सब तिरंगे के रंग में डूबे , बहुत अच्छा लगा । आज तो हम अपने ही दायरों में सिमट गए हैं , अपनी परेशानी के सामने दूसरा कुछ नजर ही नहीं आता , इसीलिए वतन ..वतन वाले सब सेकेंडरी हो गए । आपके इस जज्बे को नमन ।

कडुवासच ने कहा…

... bhaavpoorn abhivyakti!!!

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

बहुत ही सुन्दर.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

काश आजादी का पर्व हर घर में लोग ऐसे मनाएँ जैसे मनाते हैं होली..जैसे मनाते हैं ईद.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

निर्मला कपिला ने कहा…

बच्चों को कहते नही,
के संभालके रखो आज़ादी,
बड़ी मुश्किलों से ये है पाई,
क्यों करते नही इसकी क़द्रदानी?
सही कहा आपने। आपको भी आज़ादी की बहुत बहुत बधाई।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aapki post to behad achhi lagi jo desh -prem ki bhavna se kuut --kuut kar bhri hui hai.

पार कर दो सरहदें जो दिलों में ला रही दूरियाँ!
इंसान से इंसान तकसीम हो,खुदा ने कब चाहा?
bahut hi dil ko chhooo gai.aajadi ka ye parv aapko bhi mubarak ho.
poonam

VIVEK VK JAIN ने कहा…

swatantra divas ki bahut-bahut badhaiyan.

बेनामी ने कहा…

acha laga apki post pad kar.. shukriya share karne k liye.....

Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....

A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...

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शोभना चौरे ने कहा…

शमाजी
आपने तो बिलकुल मेरे मन की बात कह दी |क्यों नहीं हम वो जज्बा आज की पीढ़ी को दे पाए जिससे वो देश प्रेम से ओत प्रोत हो |
गुणगान तो करते है किन्तु देश प्रेम की कसक भी तो हो ?
आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी आपकी इस भावना को नमन |

Dev ने कहा…

बहुत सही बात कहा आपने ..........देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ .

आपको स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनाएं .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज़ादी का पर्व आपको भी मुबारक हो .... ..

ज्योति सिंह ने कहा…

जिस नैमत को कहते हैं आज़ादी,
हम भूल गए उसे इतनी जल्दी?
भूल गए शहादत शहीदों की?
भूल गए क़ुरबानी बा बापूकी?
बच्चों को कहते नही,
के संभालके रखो आज़ादी,
बड़ी मुश्किलों से ये है पाई,
क्यों करते नही इसकी क़द्रदानी?
waah bahut khoob likha hai ,sach ab jashn se jyada kya ?jai hind ,is adhoori aazadi par bas man dukhta hai aur kuchh nahi .vicharo ke gulaam ab bhi hai yahan bahut .....

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

देरी से आने के लिए क्षमा जी से क्षमा.
बहुत अच्छा संस्मरण लिखा..लेकिन अंत की बात पढ़ कर मन कसैला सा हुआ.
और लेकिन सबसे अंत में जो घर का नज़ारा दिखाया बहुत अच्छा लगा...इत्ता सुंदर घर आपका है ?


स्वाधीनता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं.

निर्झर'नीर ने कहा…

इंसान से इंसान तकसीम हो,खुदा ने कब चाहा?

बहुत सही कहा आपने