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ये मौसम सुहाने .
सिल्क की पार्श्वभूमी है इस भित्ती चित्र में.झरना बना है एक सिल्क की चोटी से जिसे मैंने कंघी से खोल दिया! रंगीन सिल्क के टुकड़ों में से छोटे छोटे पत्ते काट के टांक दिए हैं.दो तीन क्रोशिये की चेन भी टांक दीं हैं,बेलों की तौर पे. उर्वरित कपडे पे कढ़ाई की है.
सावन के झरने ,
बहारों के साए,
पतझड़ के पत्ते
मिले हैं आके यहाँ पे..
हम रहे न रहें,
किया है क़ैद इन्हें
तुम्हारे लिए,
ये अब जा न पायें..
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने..
35 टिप्पणियां:
वाह,बहुत सुन्दर !
आभार !
बहुत खूब !
सुन्दर कलाकारी, काग़ज़ पर भी, कपड़े पर भी।
बढि़या। मेरा सुझाव है कि आप जो कलाकृतियां बनाती हैं, उसे बनाने की विधि के बार में थोडा विस्तार से लिखें तो और महिलायें प्रेरित होंगी। हस्तशिल्प को समर्पित कोई हिन्दी ब्लॉग है भी नहीं शायद अभी तक। वैसे बहुत ही बढि़या कलाकृति बनायी है आपने।
kavita to sundar hai hi aapki kadhaai kalakari kabile taareef hai.
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने..
बहुत खूब कहा है आपने ।
बढि़या। सुन्दर कलाकारी|
हम रहे न रहें,
किया है क़ैद इन्हें
तुम्हारे लिए,
ये अब जा न पायें..
badhiya ..jaise chitr aur kavita ke roop me kaid kar diya ho ....
भावों की कलात्मक प्रस्तुति!हम तो कायल ही रहे हैं इस अनूठी विधा के
bahut sunder kadhayi ka kaam aur us par ye shabd vyanjana...sone pe suhaga.
kabhi aapse milna hua to apse koi ek apki kriti to maang hi lungi.
सुंदर रचना।
dono cheejen hi bahut uttam..
वाह एक सुंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति
स्वागत योग्य भावनाएं ....शुभकामनायें !
bahut sunder......
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने...
काश की ऐसा हो पाता इस जहां में ... लोग तो बार जख्मों को ही याद रखना चाहते हैं ... जबरदस्त दस्तकारी की साथ लाजवाब रचना है ...
कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
खुबसूरत चित्रावली के साथ सुन्दर रचना...
सादर बधाइयां..
सुन्दर रचना...
सादर बधाई...
कागज़ पर भी कपडे पर भी मोती ही मोती और अपनों के लिए खाब ही खाब बिखेर दिए आपने .
बढ़िया कृति.... दोनों ही
जितना सुन्दर बीतती चित्र उतना ही सुन्दर इस रचना का भाव ... बहुत खूब
kavita ki kadhaii aur kadhaii ki kavita,
sundarta aapko jeeti hai ya aap sundarta ko jeeti hain...
sundar hain teenon kasseda, kavita aur aapka sondaryabodh...
सावन के झरने ,
बहारों के साए,
पतझड़ के पत्ते
मिले हैं आके यहाँ पे..
और सब यहाँ कैनवास पर उतर गए...
बेहतरीन।
सादर
bahut khub....bahut khub
वाह क्या बात है.
bahut sundar
बहुत खूबसूरती से सम्भाला सहेजा है मौसम के ज़रिये यादों को.. ऐसे में यादें कभी धुंधली नहीं पड़ सकतीं!!
Kshama ji..
kabhi baharen, meethe sapne...
dil par thi haryali si...
bhitti chitr main sahaj nipunta...
main dikhti khushhali si...
aaj magar wo baat nahin hai...
jaane kyon humko lagta...
dard chhupaye kuch ho baithe..
nahi aaj tak kabhi kaha...
khud se bhi chhupkar baithe tum..
antarman main jalte se...
kavita aur aalekh se tere...
bhav hamesha dikhte se...
Chitr batata bhav "wo" dil ke...
par kavita main dard chhupa...
"Jaan jayenge dheere dheere.."...
akhir kab?? main poochh raha..
.......
.......
Deepak Shukla..
agar aap mere comment ko prakashit na karna chahen to krupya mujhe mail kar deejiyega..kyonki maine ise copy nahin kiya hai...
deepakshukla8@gmail.com
Kshama ji...
Meri pratikriya aap tak pahunchi na.....?? Ya aapne abhi dekhi hi nahi ab tak...??
कविता के भाव चित्र में स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।
कविता और चित्र दोनों में ही आपका निश्छल मन दिख रहा है मुझे....
बहुत ख़ूबसूरत कलाकारी और साथ ही उम्दा रचना के लिए बधाई!
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