सावन के झरने ,
बहारों के साए,
पतझड़ के पत्ते
मिले हैं आके यहाँ पे..
हम रहे न रहें,
किया है क़ैद इन्हें
तुम्हारे लिए,
ये अब जा न पायें..
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने..
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17 टिप्पणियां:
वाह!! वाह!!क्या तोहफा दिया है, दर्द को भूलने का... बहुत सुंदर.
सुहाने मौसम? आज के जमाने में?
खैर, दिल के बहलाने को ख्याल अच्छे हैं, पर आमीन तो कहना ही चाहिये।
आमीन।
बहुत खूब।
ये भी क्या खूब तोहफा है!
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने..
वाह! क्या बात है !
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
बहुत सुन्दर रचना है और चित्रकारी भी !
दर्द भूलने को ये तोहफा काफी है
आपने दिया यह दवा काफी है !
बहुत खूबसूरत रचना और चित्र...
वाह बहुत सुन्दर भाव भर दिये हैं।
ati sunder........
सुन्दर और मनमोहक ...प्रस्तुति ....बहुत खूब
http://athaah.blogspot.com/
ये मौसम का जादू है मितवा...बरबस याद गए.
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने...
जी कोशिश करेंगे.
अनुभूति के धरातल पर आपको
सुन्दर काव्य रचना के लिए बधाई!
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व्यवहार और यथार्थ के धरातल पर
मनोविज्ञान कुछ और कहता है-
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हमें जिंदा रखती हमारी हरारत ।
मोहब्बत है पूजा, नहीं ये तिजारत ।।
भली हैं बुरी है हुईं दर्ज जो भी-
भुलाए न भूलें दिलों की इबारत ।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने..
aachi sonch
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने.
-------- बाद में ये मौसम सौत - सा व्यवहार करते हैं
और व्याज सहित वसूलते हैं !
भूल जाना दर्द सारे,
जो गर मैंने दिए,
साथ रखना अपने,
ये मौसम सुहाने..
bahut hi sundar panktiyaan .
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