मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

फिर एक बार उफ़!!

दिल्ली में हुए बलात्कार के बारेमे बहुतसे दोस्तों ने बहुत कुछ लिख दिया।टीवी पे देखा।जनता लड़ झगड़ रही थी आपस में ...अक्सर लोग ऐसे में पुलिस को दोषी मानते हैं.

ब्लू लाइन  बस सेवा बंद कर दी तो वाईट  लाइन  बिना परवाना शुरू हो गयी। इन्हें किसने परवाना जारी किया? या विना  परवाना चला रहे हैं तो क्या परिवहन विभाग दोषी नहीं? मिया बीबी राज़ी  तो क्या करेगा काज़ी ? जनता भी चुप, प्रादेशिक  परिवहन विभाग भी चुप,और मीडिया घटना घट जाने के बाद ही आवाज़ उठाती है।बली का बकरा पुलिस है ही। अव्वल तो पुलिस हर बस में सवार हो नहीं सकती। क्या ज़िम्मेदार नागरिक की हैसियत से हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं?   जब हमारे  राष्ट्रपती 35 मुजरिमों को ,जिन्हें फांसी की सज़ा हुई थी,माफी की याचिका पे हस्ताक्षर कर देते हैं,तो क्या जनता आवाज़ नहीं उठा सकती? हमारी नपुंसक क़ानून  व्यवस्था इस बात की इजाज़त क्यों देती है? एक बार न्यायलय फांसी सुना दे तो उसे ख़ारिज किया ही क्यों जाता है? इन दरिंदों को गर फांसी हुई भी तो क्या राष्ट्रपती  महोदय या मानवाधिकार के माननीय सदस्य उसे मान लेंगे? आज लोग आवाज़ उठा रहे हैं।कितने दिन यही लोग इस घटना को याद रखेंगे?ये वारदात भी एक आंकडा बन के रह जायेगी। फिर एकबार हमारे घिस पिटे  कानूनों की जयजयकार बोलिए। देखें फास्ट ट्रैक  न्यायलय कौनसे गुल खिलाता है!टीवी के टॉक  शो से भी अब मुझे नफरत हो गयी है। सभी जोश में आके बतियाते हैं।कोई मुद्दे  की जड़ तक  नहीं जाता।क्यों जनता एक जुट होके  कानून में बदलाव लाने  की मांग नहीं करती?एक अकेले प्रकाश सिंग( BSF के अवकाश प्राप्त DGP ) बरसों से कानूनी लडाई लड़ रहे है,IPC की धाराओं में बदलाव के लिए। कितनों की इसकी भनक भी है?
आप सभी का क्या कहना है? मै  इन धाराओं के बारे में अपने ब्लॉग पे कई बार लिख चुकी हूँ। आतंकवाद  और इन धाराओं का गहरा सम्बन्ध है। मेरे आलेखों पे मुझे एक  या दो कमेन्ट मिले थे!




बुधवार, 12 दिसंबर 2012

एक येभी दिवाली थी


'वो ' तो  चले  गए ...जाने  से  पूर्व  एकबार  पूजा  को  अपनी  बाँहों  में  भरते  हुए  कहा ,"गर मेरी माँ ने कहा तो , क्या तुम 'convert' हो  जाओगी?"
पूजा:" हाँ!
पूजा को इसका मतलब समझ में ही नही आया. उसने ,इस का अर्थ 'धर्म परिवर्तन' से है ,ये ना समझा, ना जाना...उसपे केवल  एक हिन्दुस्तानी होने के संस्कार हुए थे...उसे लगा, तमन्ना नाम हटा के वो किसी अन्य नाम से पुकारी जायेगी...या घर में होने वाले पूजा पाठ आदि में शामिल होना होगा..

उसे इन सब से क़तई ऐतराज़ नही था...मन में इतना सवाल   आया, के , पूजा नाम रहेगा...जिसे उस के दादा ने इतने प्यार से रखा था...घर में तो सब 'तमन्ना ' कह बुलाते थे...लेकिन अन्य कई दोस्त/परिवार उसे 'पूजा' ,इस नाम से ही  संबोधित करते थे...शायद इनकी माँ को जब ये बात पता चलेगी,की, लडकी का नाम पूजा है...वो घर के हर तौर तरीके अपना लेगी,तो उन्हें क्या फ़र्क़ पडेगा??

पूजा ने अपने घर में ये बात बतानी चाहिए, ऐसा सोचा ही नही. लड़का पूजा से तकरीबन १० साल बड़ा था...पूजा इस कारण भी उसकी अधिक इज्ज़त करती..बड़े होने के नाते,'वो' कोई गलत बात तो नही कह सकते ये विश्वास उस के मन में था..इसीलिये चुम्बन को लेके वो परेशान हो उठी थी...

' उन्हें' दो माह बाद किसी सरकारी काम से बेलगाम आना पडा...'वो' रुके तो पूजा के घर पे ही..और वहाँ काम ख़त्म होते, होते मलेरिया से बीमार हो गए...उन्हें अस्पताल में भरती   कराया गया...पूजा काफ़ी समय अस्पताल में गुज़ार देती..एक दिन उस के साथ बतियाते हुए वो बोले:" तुम्हें पता है, मै तुम्हें कब से प्यार करने लगा?"
पूजा ने लजाते हुए कहा:" नही तो?"
वो:" तुम्हारे बारे में केवल सुना था तुम्हारे दादा से...तब से...तसवीर तो उन्हों ने बाद में दिखाई...और साथ में यह भी कह दिया की, 'तमन्ना की मंगनी हो चुकी है'....मै बेहद निराश हो गया इस बात को सुन के.."
पूजा लजा के लाल हुए जा रही थी..उसके मन में एक बार आया की, वह भी कुछ कहे...जो उसे लगा था,जब उसे 'इनके' बारे में बताया गया...की, उसे भी 'उन्हें' देखने से पहले ही प्यार हो गया था....वो खामोश ही रही...

तबियत ठीक होने के पश्च्यात' वो 'चले गए...उनका नाम था , किशोर...और उन के जाने के बाद फिर वही बिरह की शामे...और मदहोशी भरी तनहा रातें...पहले पहले प्यार ने ये क्या जादू कर दिया ??

एक माह बाद पूजा तथा उसकी माँ, मासूमा दिल्ली गए...लड़के के अन्य परिवार वालों से मिलने...माँ को शादी की बात भी करनी थी...घरवालों के खयालात से रु-b -रु भी होना था..

वहाँ  जब 'धरम परिवर्तन' की बात चली तो माँ को ये पता चला,के, पूजा ने पहले ही हामी भर दी है...! उन्हों ने एकांत में पूजा को  कोसते हुए कहा:" ये तुम ने क्या कह दिया किशोर से ?"
पूजा:" क्या कहा मैंने?"
उसने अचंभित होके माँ से पूछा...
माँ:" तुम धर्म परिवर्तन के लिए राज़ी  हो, ये बात तुमने कैसे कह दी? बिना बड़ों का सलाह मशवरा लिए? मै तो हैरान रह गयी...!"
पूजा:" मैंने धरम परिवर्तन के बारे में तो नही कुछ कहा...मुझे तो 'उन्हों' ने 'convert' होने  के  बारे  में  कहा  था ...मैंने तो उस बात के लिए हामी भरी थी...पूजा  पाठ तो करना होगा,गर उनकी माँ की इसी में खुशी है..."

माँ:" पागल लडकी...ये काम इतना आसान नही...तुमसे कानूनन मज़हब बदलने के लिए कहा गया है...प्यार में ये कैसी शर्त ? जैसे हम लोगों ने कोई शर्त नही रखी, वैसे उन्हों ने भी तुम्हें , तुम जैसी हो स्वीकार कर लेना चाहिए..तुम शादी के बाद जो चाहे करो...शादी से पूर्व नही..और शादी के बाद भी, मै नही सलाह दूँगी...एक हिन्दुस्तानी हो, वही रहो...इस माहौल में क्या तुम खुद को ढाल पाओगी ? जब तक प्यार का नशा है तब तक ठीक...जब ज़मीनी हकीकत सामने आयेगी, तब क्या करोगी?"

माँ बोले चली जा रही थी और पूजा दंग रह गयी...! अब वो क्या करे? उसे वो पल भी याद आए, जब किशोर ने कुछ 'गलत' जगहों पे उसे छुआ था... माँ को तो हरगिज़ नही बता सकती...

कुछ देर बाद  किशोर ने उससे मुखातिब हो कहा:" तुमने तो धर्म परिवर्तन के लिए हाँ कर दी थी...और तुम्हारे घरवालों को ये बात ही नही पता? मेरी माँ तो इस के बिना शादी के लिए राज़ी हो नही सकती...मै माँ की इच्छा के विरुद्ध जा नही सकता...और वो तुम्हारे दादा...और भाई...उन्हें लगता है,की, इस रिश्ते को नकारते हुए उनका काम हो जायेगा?"

पूजा:" लेकिन जैसे तुम्हारी माँ को तुम दर्द नही पहुँचा सकते, मै भी नही पहुँचा सकती.."
किशोर:" लेकिन तुमने तो हामी भर दी थी..अब क्या मुकर जाओगी?"

पूजा निशब्द हो गयी..माँ ने कहा था,  कि , वो पूजाके दादा दादी की सलाह के बिना कुछ नही करेंगी..किशोरकी माँ का रवैय्या पूजा के साथ बेहद सख्त रहा था...वो उसे अपमानित करने का एकभी मौक़ा नही छोड़ती.."वैसे अच्छा ही हुआ, आँचल जल गया.. हमारे घरमे आना मतलब  आग से खेलना है..",उन्हों ने पूजा से कह दिया, जब पूजा के आँचल ने खिड़की में रखी अगरबत्ती  से आग पकड़ ली...

उसके दादा को क्या कहेगी ?? और छोटे भाई बहन जो अपनी आपा को इतना मान देते हैं...??बहन अफशां और भाई आफताब..अब उसने कौनसा क़दम उठाना  चाहिए...??? पूजा बेहद संभ्रम में पड़ गयी, और पहली बार उसे ज़बरदस्त सर दर्द ने घेर लिया...बेहद उदास और सहमी-सी हो गयी...उसके प्यार का अब क्या हश्र होगा?

आने वाली दिवाली तक तो उसके परिवार ने उसके ब्याह के बारेमे सोचा था,कि , करही देंगे  ...दिवाली बस आनेवाली थी...और उसके लिए क्या तोहफा था????..कभी वो किसी की  तमन्ना बन, किसी की आँखों का तारा बन इस दुनिया में आयी थी...उस सितारे का क्या भविष्य था? क्या वो बिखरने वाला था...दादा-दादी के आँखों के सामने टूटने वाला था..

( एक वो भी दिवाली थी,इस पोस्ट के बाद ये पोस्ट दे रही हूँ। ये दिवाली उस दिवाली के 21 साल बाद आयी थी)
वैसे सवाल करना चाहती हूँ,कि क्या किसी लडकी ने धरम परिवर्तन करना चाहिए?

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

पहलेसे उजाले

छोड़ दिया देखना कबसे
अपना आईना हमने!
बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,हो कौन तुम?
पहचाना नही तुम्हे!
जो खो चुकी हूँ मैं
वही ढूंढता है मुझमे !
कहाँसे लाऊँ पहलेसे उजाले
बुझे हुए चेहरेपे अपने?
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने!

फिर एकबार पुरानी रचना पेश कर रही हूँ,माफी के साथ।