रविवार, 8 मई 2011

एक माँ की मौत...आज ही के रोज़!- 1

आज मदर'स डे....इस दिन उसे कुछ साल पूर्व का मदर'स डे बेसाख्ता याद आ जाता...कितनी ही कोशिशें कीं,पर वो भुला नहीं पाती...

उन दिनों उसके परिवार में एक अजीबो गरीब वाक़या घटा था...एक परिचित ने ना जाने किस जनम का बदला निकालना  चाहा  था.... उसपे बेहद घटिया क़िस्म के आरोप  लगा,वो मेल्स उसके पती तथा बेटी को भेजे थे..बेटी ब्याहता थी....अपने मायके आयी हुई थी..परिचित ने केवल मेल भेज के तसल्ली नही की थी. नेट पर भी मनगढ़ंत इल्ज़ामात की बरसात कर दी थी.

कैसी विडम्बना थी की,उसके अपने परिवार को,जिसने उसे बरसों जाना परखा था,एक  'अ'परिचित व्यक्ती बिखरा रहा था! ऐसी घड़ी में उसे संबल देनेके बदले उसे शक के कटघरे में घेर लिया था....उसे खुद नही पता की,वो दिन रात कैसे काट रही थी...अपने हाथों को फानूस बना,उसने परिवार की ज्योत से टकराई हर आँधी से सामना किया था...लेकिन परिवार को आँच न लगने दी थी.

उस दिन उठी तो उसे मदर'स डे होने का एहसास हुआ. अपनी लाडली को शुभ कामनाएँ देने वो उसके कमरे में गयी....उसने बिटिया को गले लगाना चाहा ....पर ये क्या..? बिटिया ने एक झटके से उसे धकेल दिया और कहा, "माँ ! तुमने मुझे पैदा होते ही मार क्यों न दिया? मेरा गला क्यों घोंट न दिया? मत छुओ मुझे...!."
उसपे मानो बिजली गिरी!

उसे अनायास अपनी दादी और दादा की बातें याद आ गयीं! वो बताया करते थे,की,जब उनकी इस पहली पोती का जन्म हुआ तो परिवार में कितनी खुशियाँ मनी थीं! उन सभी को लडकी की चाह थी और वो पूरी हो गयी थी! परिवार ने क्या,पूरे गाँव ने खुशियाँ मनाईं थीं!

उस लाडली पोती का यथावकाश प्रेम विवाह हुआ....और उसे भी पहली औलाद एक बिटिया ही हुई...लेकिन उसकी बिटिया का कोई स्वागत नही हुआ...कोई खुशियाँ नही मनी...बल्कि उसे एक बोझ ही माना गया...वो अपनी बिटिया के लिए ढाल और कवच बन गयी...उसके परवरिश  की पूरी ज़िम्मेदारी उसी पे थी...अपनी बिटिया के लिए एक पैसे की वस्तू भी ख़रीदनी हो तो उसपे ऐतराज़ किया जाता...कैसे कैसे दिन काटे उसने....किस तरह पढ़ाया लिखाया...वही जाने...

उसकी बिटिया जब पैदा हुई तो वो उसे रेशम की डोर से भी खरोच पहुँचे,बर्दाश्त नही कर पाती.....उसका वो गला घोंट देती??उस के दादा दादी गर जान जाएँ की उनकी सब से अधिक लाडली पोती को उसी की बेटी ने आज के दिन कैसे अलफ़ाज़ सुना दिए थे?

जिस दिन उसकी बेटी जन्मी थी,एक माँ जन्मी थी...बल्कि उसकी बिटिया का जनम मदर'स डे के दिन ही हुआ था! आज जब दुनिया माँ को सलाम कर रही थी,उसकी बेटी ने उसे बेमौत मार डाला था! हाँ! उस एक अनजान दुश्मन के बदौलत एक बेटी ने अपनी माँ की मानो ह्त्या कर दी थी....!

उस के बाद कई मदर'स डे  आये गए....लेकिन वो अपनी बेटी के कठोर अलफ़ाज़ भूल नही पायी...

'वो' और कोई नही,मैही हूँ....नही पता की,इतनी व्यक्तिगत बात ब्लॉग पे लिखना सही है या नही....लेकिन आज न जाने क्यों,मुझ से ये बात साझा किये बिना रहा नही गया....कोई बताएगा मुझे,की,मुझ से ऐसी क्या गलती हुई होगी,बिटिया की परवरिश  में, जो मुझे ये अलफ़ाज़ सुनने पड़े?

लग  रहा  है  की ,हालिया  घटी  कुछ  घटनाओं  का  ब्यौरा  देना  भी  आवश्यक  है ....इसलिए :
क्रमश:


बुधवार, 4 मई 2011

दुनियादारी और पगली....




हमने छोड़ दी सारी
दुनिया और दुनियादारी,
सिर्फ किसी एकके लिए,
जिनके लिए छोडी,
वो थे  दुनियादार बड़े!
पलटके हँसी उडाई,
बोले, वो सकते नही,
छोड़, दुनिया उनकी,
एक पगलीके लिए.....

सबक सीख सको तो सीखना.
 मत लगाना ,अपनी दुनिया,
दाँव पे किसी एक के लिए,
दुनियामे  नही पागल ऐसा ,
जो छोड़ दे अपनी   दुनिया ,
किसी एक पागल के लिए....