रविवार, 21 जुलाई 2013

चश्मे नम मेरे

परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,

कि इन्हें, लमहा, लमहा,

रुला रहा है कोई.....



चाहूँ थमना चलते, चलते,

क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,

सदाएँ दे रहा है कोई.....




अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,

तेरीही चाँदनी बरसाके,

बरसों, जला रहा कोई......

शनिवार, 13 जुलाई 2013

अरसा बीता ...




लम्हा,लम्हा जोड़ इक दिन बना,
दिन से दिन जुडा तो हफ्ता,
और फिर कभी एक माह बना,
माह जोड़,जोड़ साल बना..
समय ऐसेही बरसों बीता,
तब जाके उसे जीवन नाम दिया..
जब हमने  पीछे मुडके देखा,
कुछ ना रहा,कुछ ना दिखा..
किसे पुकारें ,कौन है अपना,
बस एक सूना-सा रास्ता दिखा...
मुझको किसने कब था थामा,
छोड़ के उसे तो अरसा बीता..
इन राहों से जो  गुज़रा,
वो राही कब वापस लौटा?

 

कुछ  कपडे  के  तुकडे ,कुछ  जल  रंग  और  कुछ  कढ़ाई .. इन्हीं के संयोजन से ये भित्ती चित्र बनाया है.


बुधवार, 10 जुलाई 2013

नज़रे इनायत नहीं



पार्श्वभूमी  बनी  है , घरमे पड़े चंद रेशम के टुकड़ों से..किसी का लहंगा,तो किसी का कुर्ता..यहाँ  बने है जीवन साथी..हाथ से काता गया सूत..चंद, धागे, कुछ डोरियाँ और कढ़ाई..इसे देख एक रचना मनमे लहराई..

एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे,
आखरी बार झडे,पत्ते इस पेड़ के,
 बसंत आया नही उस पे,पलट के,
हिल हिल के करतीं हैं, डालें इशारे...
एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे..

बहारों की  नज़रे इनायत नही,
पंछीयों को इस पेड़ की ज़रुरत नही,
कोई राहगीर अब यहाँ रुकता नही,
के दरख़्त अब छाया देता नही...
बहारों की नज़रे इनायत नहीं..

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ओ मेरे रहनुमा

ओ मेरे रहनुमा !
इतना मुझे बता दे,
वो राह कौनसी है,
जो गुज़रे  तेरे दरसे!

हो कंकड़ कीचड या कांटे,
के चारसूं घने अँधेरे,
बस इक बूँद रौशनी मिले
जो तेरे दीदार मुझे करा दे!

न मिले रौशनी मुझसे
किसीको,ग़म नहीं है,
मुझसे अँधेरा न बढे,
इतनी मुझे दुआ दे!

ओ मेरे रहनुमा!
बस इतनी मुझे दुआ दे!

आजकल ऐसे लगता है जैसे मै  किसी गहरी खाई में जा गिरी  हूँ।...मेरा आक्रोश कोई सुनता नहीं....दम घुट रहा है.....आनेवाली साँसों की चाहत नहीं.....जीने का कोई मकसद नहीं....क्यों जिंदा हूँ,पता नहीं.......