रविवार, 26 जून 2011

दूर अकेली चली......



कपडेके चंद टुकड़े, कुछ कढाई, कुछ डोरियाँ, और कुछ water कलर...इनसे यह भित्ति चित्र बनाया था...कुछेक साल पूर्व..


वो राह,वो सहेली...
पीछे छूट चली,
दूर  अकेली  चली  
गुफ्तगू, वो ठिठोली,
पीछे छूट चली...

किसी मोड़ पर  मिली,
रात इक लम्बी अंधेरी,
रिश्तों की भीड़ उमड़ी,
पीछे छूट चली...

धुआँ पहन  चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
जब बनी ज़िंदगी पहेली
वो राह ,वो सहेली...

ये कारवाँ उसका नही,
कोई उसका अपना नही,
अनजान बस्ती,बूटा पत्ती,
बिछड़ गयी कबकी,
वो राह,वो सहेली...


मंगलवार, 14 जून 2011

ख़्वाबों का एक आशियाना....

बचपनसे एक ऐसे ही मकान का ख्व़ाब देखा करती थी....ख़्वाब तो आज भी आता है....फूलों भरी क्यारियों से घिरा एक आशियाना दिखता है,जो मेरा होता है....नीला,नीला आसमान....छितरे,छितरे अब्र, और ठंडी खुशनुमा हवाएँ!!उन क्यारियों में मै उन्मुक्त दौडती रहती हूँ....और फिर अचानक सपना टूट जाता है!


क्यों  दिखता  है   मुझको , वो सपना?
जब न कहीं वो ख़्वाबों-सा आशियाना,
ना फूलों भरी खिलखिलाती क्यारियाँ,
ना वो रूमानी बादे सबा,ना नीला आसमाँ!
था वो सब बचपन औ'यौवन का खज़ाना,
अब कहाँ से लाऊं वो नज़ारे औ' नजराना?



सिल्क के कपडे पे पहले जल रंगों से आसमाँ और क्यारियाँ रंग लीं. मकान,पेड़ क्यारियों के फूल....ये सब कढ़ाई से बनाये हैं.





 

बुधवार, 1 जून 2011

करूँ तो क्या करूँ?

मैंने पिछले   आलेख में सोचा था,की,माँ बेटी के रिश्ते पे अधिक प्रकाश डालूँगी...लेकिन नही डाल पायी..
अजीब-सी मनस्थिती बनी हुई है. जानती हूँ,की,ये गहरा डिप्रेशन है...उभरना चाहती,हूँ,पर और अधिक डूबती जा रही हूँ...कारण केवल माँ-बेटी के दरमियान का मन मुटाव नही है. बेटी को तो मैंने कबका माफ़ कर दिया...बल्कि उसे दोषी पाया ही नही...मै तो स्वयं को ही दोषी मान के चली हूँ.

इधर मेरी ये हालत है,की,ना लेखन में मन लगता है,ना बागवानी में,ना सिलाई कढ़ाई में. अवस्था बहुत भयावह है...मै खुद इसका बयान नही कर पा रही हूँ...इसी कारण ब्लॉग पे कुछ लिखा भी नही. ब्लॉग पे कुछ पढने में भी मन नही  लगता...हालाँकि कोशिश करती रहती हूँ...नही मालूम की,इस अवस्था से कब और किस तरह बाहर निकल पाऊँगी..दवाई भी ले रही हूँ,लेकिन सब कुछ जैसे बेअसर है...

बस....फिलहाल इतना ही...फिर एक बार अपने ब्लॉगर दोस्तों के आगे  एक सवाल पेश कर रही हूँ...करूँ तो क्या करूँ?