बचपनसे एक ऐसे ही मकान का ख्व़ाब देखा करती थी....ख़्वाब तो आज भी आता है....फूलों भरी क्यारियों से घिरा एक आशियाना दिखता है,जो मेरा होता है....नीला,नीला आसमान....छितरे,छितरे अब्र, और ठंडी खुशनुमा हवाएँ!!उन क्यारियों में मै उन्मुक्त दौडती रहती हूँ....और फिर अचानक सपना टूट जाता है!
क्यों दिखता है मुझको , वो सपना?
जब न कहीं वो ख़्वाबों-सा आशियाना,ना फूलों भरी खिलखिलाती क्यारियाँ,
ना वो रूमानी बादे सबा,ना नीला आसमाँ!
था वो सब बचपन औ'यौवन का खज़ाना,
अब कहाँ से लाऊं वो नज़ारे औ' नजराना?
सिल्क के कपडे पे पहले जल रंगों से आसमाँ और क्यारियाँ रंग लीं. मकान,पेड़ क्यारियों के फूल....ये सब कढ़ाई से बनाये हैं.
22 टिप्पणियां:
वेलकम बैक!
शिल्प चित्र खूबसूरत है !
लाजबाब कविता और कढ़ाई, हमेशा की तरह एक बार फिर से आपकी प्रतिभा का प्रमाण, आभार
सुन्दर पेंटिंगों की शृंखला में एक और.
कविता और चित्र दोनों सुन्दर हैं , कस्तूरी तो अपने अन्दर है फिर भी मन हिरनी सा भटकता फिरता है ...
बहुत खूबसूरत ख्वाब और उससे भी खुबसूरत तस्वीर|
खूबसूरत ख्वाब को इस तरह साकार करना कोई आप से सीखे…………अति सु्न्दर्।
वाह .. बहुत ही खूबसूरत चित्र के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
आपका खूबसूरत मन इस कला-कृति में झलक रहा है।
कढ़ाई किया हुआ कपड़े पर बना कलाचित्र का घर सम्भालना अधिक आसान है, सचमुच के बाग की क्यारियों की देखभाल में बहुत मेहनत लगती है! भारत में रहो और काम करने वाले हों तो ही इस तरह के घरों के ख्वाब देखने चाहिये, विदेश में जहाँ सब काम अपने आप करना पड़ता है, ख्वाब देखिये पर यह नहीं चाहिये कि वे हकीकत बनें. :)
सपने देखते रहना चाहिए ... कभी न कभी ज़रूर पूरे होते हैं ... उम्दा रचना है ...
बहुत बढ़िया चित्र बनाया है आपने.यही चित्र आपके सपने भी साकार करेगा एकदिन.
शमा जी,
एक ख्वाब को शब्दों में ढालना और फिर उसे बुन लेना(साकार कर पाना) आप जैसी ही किसी शख्सियत के बस की बात है।
बहुत ही सुन्दर शब्द शिल्प।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सुन्दर चित्र उत्तम कविता। एसे ख्वाब देखना तो भाग्यवानों को नसीब होते है। बस नीद नही टूटना चाहिये यहीं सब गडबड हो जाता है।
""उस प्यासे की नींद न टूटे खुदा करे
जिस प्यासे को ख्वाब में दरिया दिखाई दे""
आदरणीय क्षमा जी बहुत सुंदर कविता बधाई |
अपनी कल्पना को अच्छे रंग दिये हैं आपने। सून्दर प्रस्तुति।
सपने में कभी दुनिया कितनी खूबसूरत लगती है...
बहुत ही खूबसूरत बेहतरीन प्रस्तुति ।
ख्वाब देखते रहने से
ख्वाहिशों का सिलसिला बना रहता है
और उन्हें पा लेने की शिद्दत भी ....
आपकी हस्त कला प्रशंसनीय है !!
बहुत सुन्दर रचना और खूबसोरत पेंटिंग..
वाह बहुत सुंदर
ati sunder.
क्यों दिखता है मुझको , वो सपना?
जब न कहीं वो ख़्वाबों-सा आशियाना,
ना फूलों भरी खिलखिलाती क्यारियाँ,
ना वो रूमानी बादे सबा,ना नीला आसमाँ!
था वो सब बचपन औ'यौवन का खज़ाना,
अब कहाँ से लाऊं वो नज़ारे औ' नजराना?
उफ़ क्षमा जी ह्रदय निकाल कर और उसकी ही स्याही बना कर लिखा है आपने तो.....अद्भुत !
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