सोमवार, 12 अप्रैल 2010

वो वक़्त भी कैसा था.....

कुछ  रंगीन  कपडे  के  टुकड़े ,कुछ  धागे , और  कल्पना  के  रंग ...इन के मेलजोल से मैंने  बनाया है यह भित्ति चित्र...जब कभी देखती हूँ,अपना गाँव याद आ जाता है..



वो वक़्त भी कैसा था,
सुबह का सुनहरा आसमाँ,
हमेशा अपना लगता था!

तेरा हाथ हाथों में रहता,
शाम का रेशमी गुलाबी साया,
कितना पास लगता था !

रंगीन रूई से टुकड़ों में चेहरा,
खोजना  एक दूजे का,
बेहद अच्छा लगता था !

आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....

शाम का सुरमई गुलाबी साया,
लगता है कितना सूना,सूना!
रातें गुज़रती हैं,तनहा,तनहा...




32 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कविता के माध्यम से जीवंत हो उठा है भित्ति चित्र.

दिलीप ने कहा…

bahut sundar...hai ye judayi...

umda rachna....

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ! यादें हमारी ज़िन्दगी में अहम् है ! ये हमें जीने के सामान भी देते हैं और जीने भी नहीं देते !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

ये यादें सभी के साथ बांटिये... बहुत सुन्दर हैं...

kunwarji's ने कहा…

"बहुत सुन्दर रचना है ! यादें हमारी ज़िन्दगी में अहम् है ! ये हमें जीने के सामान भी देते हैं और जीने भी नहीं देते !"

sahi hai ji,

kunwar ji,

Dev ने कहा…

अति सुन्दर रचना ....

संजय भास्‍कर ने कहा…

ये यादें सभी के साथ बांटिये... बहुत सुन्दर हैं...

बेनामी ने कहा…

bahut hi behtareen rachan,....
mann waah waah kar utha padhte hi....
hamesh aise hi likhte rahein...
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...

सर्वत एम० ने कहा…

करिश्मा, जादू, सम्मोहन--- क्या कहूं? आपने कविता ही ऐसी बुनी है कि दिल धक्क से हो गया. आपबीतियाँ लिखने की महारत इस कविता में भी नजर आई. लेकिन जिस कैनवस पर यह रचना उकेरी गयी है, वह बहुत व्यापक है. ज़िन्दगी की सबसे ख़ास महरूमी को जिस अंदाज़ से आपने पेश किया है, उसके लिए तारीफ किन अल्फाज़ में जाए..... लफ्ज़ नहीं मिल रहे है. फिलहाल, बेमिसाल.

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

sach me jab bhi ham apni yaado me khaas kar apne gaanv ko laate he to man me azeeb si sukoon bhari lahar doudti he fir ek chhota saa afsos ka tukadaa bhi aa khadaa hotaa he...aour yahi bhaav jab dilo dimaag me uthate he to aapki kalam se shabd bankar nikharte jaate he...

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

अपने गाँव से बिछ्ड़ना भी किसी प्रियजन से बिछड़ने जैसा होता है...जीवंत शब्दचित्र …

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आपकी रचना श्रृंगार रस पर आधारित है |श्रृंगार रस को दो भागों में बिभक्त किया जाता है संयोग श्रृंगार और वियोंग श्रृंगार |या तो रचना संयोग श्रृंगार पर या वियोग पर आधारित हुआ करती है मगर आपकी उक्त रचना में शृंगार रस के दोनो पक्ष बखूबी वर्णित है |

निर्झर'नीर ने कहा…

पता ही नहीं चला की गाँव है या प्रीतम
...प्रकृति प्रेम को समेटे हुए सुन्दर अभिव्यक्ति .

आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

कितना सुन्दर है यह भित्ति चित्र.
यादों के रंग.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आज भी सुबह आसमाँ सुनहरा,
कुछ,कुछ रंगीन होता होगा,
जिसे अकेले देखा नही जाता....

...सतरंगी जीवन के सतरंगी स्वर हैं जिसे देखना सुनना तो पड़ता ही है।

बेनामी ने कहा…

गाँव से मुंह अँधेरे जाने वालों को गाँव आज भी बुलाता है !उसकी यादें आज भी दिल को बहलाती हैं ! बहुत अच्छा लिखा आपने ! बधाई !

अंजना ने कहा…

सुन्दर रचना ....

ज्योति सिंह ने कहा…

शाम का सुरमई गुलाबी साया,
लगता है कितना सूना,सूना!
रातें गुज़रती हैं,तनहा,तनहा...
antah man ki baat shabdo me ubhar aai .bahut hi sundar .

बेनामी ने कहा…

"रंगीन रूई से टुकड़ों में चेहरा,
खोजना एक दूजे का,
बेहद अच्छा लगता था!"
जो भी है - अच्छा लगा

abhi ने कहा…

aapne kuch yaadein yaad dila di humein...behad khoobsurati se likhi gayi hai ye kavita

बेनामी ने कहा…

rachna pasand aayi to dobaara chala aaya....
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....

daanish ने कहा…

रचना की संजीदगी
और तस्वीर की खूबसूरती
दोनों में अजब-सा ताल-मेल बन गया है
भाव, अगर शब्दों में हैं ,,
तो चित्र में भी मुखर हो उठे हैं
वाह !!

Tej ने कहा…

bahut khub...

dipayan ने कहा…

पहले हौसला अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया ।

आपकी रचना और चित्र दोनो बेहद सुन्दर है ।
चित्र वाकई मे गावँ का शान्त वातावरण दर्शाता है । बधाई स्वीकारे ।

Rohit Singh ने कहा…

आप ऐसी कविताएं लिखेंगी तो आपका पता नहीं हम जैसे कई लोग गांव की तलाश में भटकने लगेंगे औऱ निराश होंने लगेंगे..क्योंकी सुनता हूं की आज गांव भी गांव नहीं रहा..वहां अब चाचा, ताया, मामा, मामी, नहीं पड़ोसी रहते हैं अपने में मगन..गांव का बच्चा डॉक्टर बनकर शहर का हो जाता है..पहले से गांव का कोई शहर में रहता है तो उसे अपना नया एशवर्य दिखाता है. लगता है जैसे कोई बदला चुका रहा होता है....क्या अब भी गांव है....??????

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

आपका मेरे ब्लॉग में हमेशा स्वागत है ! टिपण्णी के लिए शुक्रिया !

Pramod Kumar Kush 'tanha' ने कहा…

Hamesha ki tarah behad khoobsurat abhivyakti...Wah wah !!!
Meray blog par aane aur apni shikayat rakhne ke liye shukriya...
Pichhle doh mahino se mein apni audio album ki recording mein vyast raha.Writing ke alawa ismein music composition aur singing bhi maine ki hai.
isliye koi nayee posting nahi kar paya.Ab meray album ki recording poori ho chuki hai...bahut jald naye ghazal post karne ki koshish karunga.Ek baar fir shukriya.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय , क्षणिकाएँ भी ।

Arvind Mishra ने कहा…

जीवन के गुजरते पल कभी ऐसे अहसास देते है तो सृजन उमड़ पड़ता है -कुछ ऐसे ही !

शारदा अरोरा ने कहा…

बचपन की यादों की समृद्धि और ये तन्हाई ....चित्र सुन्दर उकेरा है |

Himanshu Mohan ने कहा…

मैं कविता की तारीफ़ करूँ या आपकी दस्तकारी की!
आपकी रचनाएँ कई पढ़ गया, मगर टिप्पणी एक ही दे रहा हूँ, इसके लिए माफ़ कीजिएगा।
दोनों ही बेहतरीन हैं, मगर दस्तकारी में बेहद विविधता है, प्रोफ़ेशनल टच है और कविता शौक़ है आपका अगर मैं सही समझा हूँ तो।
बहरहाल, दोनों ही स्तरीय हैं। इस रचना के लिए बधाई!