दिवाली पे लिखी गयीं कई सारी पोस्ट पढ़ीं. अब के मन कुछ अजीब-सा मायूस रहा. सोसायटी के चौकीदार, सफाई वाली औरतें,महरी तथा अन्य नौकर चाकर इन सब को भेंट देने के लिए चीज़ें खरीदने में चाव ज़रूर था...देने में भी. लेकिन अपने घर के लिए! शून्य! घर में नज़र दौडाती तो लगता था,सामान या कोई भी चीज़ नयी आए,इसके बनिस्बत तो जो है उसी में से कोई ले जाये तो अच्छा हो! आतिशबाजी तो हमारी दिवाली से कबकी हट चुकी थी...! हाँ ! घर की साफ़ सफाई, पौधों की देख भाल ...ये तो नित्य क्रम था...! दिवाली के लिए अलग से कुछ नही!!
इन्हीं दिनों में पाबला जी से एक दिन बातचीत हो रही थी. उन्हों ने कहा," ये हमारी बिटिया के बिना, पहली दिवाली है!"
मेरे मन में वो दिवाली याद आ गयी जो मेरी बिटिया के बिना पहली थी...और उसके बात तो वही सिलसिला जारी रहा. वो लक्ष्मी पूजन तो ख़ास ही याद रह गया जब हम पती-पत्नी के बिना अन्य कोई नही था. खैर!
अबके धनतेरस के दिन मै एक mall के बाहर अपने ड्राइवर का इंतज़ार करते सीढ़ियों पे बैठ गयी. अन्दर जा रही थी,तभी मेरी नज़र, चार, अलग,अलग उम्र के बच्चों पे गयी थी. एक बच्चा था कुछ आठ या दस सालका. रंगीन-सी फिरकियाँ बेचने एक कोने में बैठा था. आने जाने वाली रौनक़ को, फटे पुराने कपडे पहन, बड़ी बड़ी आँखों से देख रहा था. ऐसे ही बारा तेरा साल के अन्य बच्चे भी थे. कुछ ना कुछ बेचने की कोशिश में. पल भर भीड़ को आकर्षित करने के लिए कुछ हरकतें करते और फिर भीड़ को निहारने लगते.मन में आया क्या इन के लिए दिवाली की चमक दमक मायने नही रखती होगी?? इनके कुछ अरमान तो होते होंगे? नए कपडे, चंद पटाखे और एकाध लड्डू?? mall में से मै बिना कुछ खरीदारी किये निकल आयी.
सीढ़ियों पे पहुँच ड्राइवर को फोन लगा के बुलाया. उसे लंबा चक्कर काट के आना था. मै वहीँ बैठ गयी. निगाहें फिर उन्हीं बच्चों पे गयीं. एक ख़याल मन में तेज़ी से कौंधा...! क्यों ना मै इन बच्चों से कुछ ना कुछ खरीद लूँ? मुझे इन चीज़ों की ज़रुरत नही, लेकिन खुशी की ज़रुरत तो है! मैंने चारों बच्चों से जितना खरीद सकती थी,खरीद लिया...शायद ही कभी कोई चीज़ खरीद के मै इतनी ख़ुश हुई थी, जितनी की,उस दिन! उन बच्चों के आँखों में आयी चमक देख, अपनी आँखों से पानी रोकना मुझे मुश्किल लग रहा था!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
28 टिप्पणियां:
वाकई क्षमा जी मैं महसूस कर सकती हूँ कि आपको कितनी खुशी हुई होगी उन बच्चों के लिए कुछ खरीद कर .निस्वार्थ होकर किसी जरुरत मंदों के लिए कुछ करना, उससे बढ़कर कोई खुशी कोई त्यौहार नहीं होता.आपकी सोच और स ह्रदय को सलाम.
वाकई में, पैसे की ही दीवाली है...
यही तो मनाई आपने असली दिवाली.
और मुझसे भी इंतज़ार नहीं हो रहा अब तो :):)
सच्ची, आपने ही मनाई सच्ची दीवाली
aapkee diwalee khareeddaree shresht rahee.............
deevaali kaise manaanaa chaahiye--aapne sikhaa diya....bahut acchhi prastuti.
क्यों नहीं होते उन बच्चों के अरमान ,कपडों की मिठाई की आतिशबाजी की सब की इच्छा होती होगी बेचारों की । और जो बच्चों से आपने चीजें खरीदी जिससे उन बच्चों की आखेां में चमक आई आपको भी खुशी हुई ।बच्चे इस घटना को याद नहीं रखेंगे मगर जब जब भी आपको इस घटना की याद आयेगी एक आत्म संतोष सा होगा एक अनजानी खुशी होगी कुछ एसा लगेगा कि उस दिन आपने अच्छा किया था ं। आपने वो शेर सुना होगा ’’घर से मसजिद है बहुत दूर चलो यूं करलें/ किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये ।
असली दिवाली तो आप ने मनाई है .... दूसरों के जीवन में चमक ला कर ... बहुत बहुत शुभकामनाएं ...
hum najaane kyun khushi har taraf dhoodhte rehte hai ... jabki wo humesha humare ssath hoti hai ... use mehsoos karna bhi humare hi haath mein hai ... jaise aapne kiya
आदरणीय क्षमा जी
नमस्कार !
आपकी सोच और स ह्रदय को सलाम.
बहुत अच्छी दीवाली मनायी दीदी आपने. सुन्दर संस्मरण.
किसी के लिए कुछ कर सकने में ही सच्चा सुकून है , बचपन में हर चीज का आकर्षण भी ज्यादा होता है और जहाँ उपलब्धता आसान न हो ,वहां तो वो कसक बन जाती है , सामर्थ्य-विहीन के लिए साधनों की और सामर्थ्य-वान के लिए ख़ुशी के मौकों की ...अच्छा लिखा है शमा जी
..अच्छी खरीददारी की आपने।
ye ankaha sa santosh hai!
isse jyada raushan diwali kya hogi...
auron ko muskurahat dena sabse bada santosh hai!!!
उन बच्चों के जीवन में खुशियों का उजास फ़ैलाकर दीपावली के मर्म को प्रकट करने के लिए बहुत बहुत बधाई और इसे साझा करने के लिए धन्यवाद. आभार.
सादर,
डोरोथी.
सच्चे अर्थों में दीवाली कैसे मनाई जा सकती है आपने कितनी सहजता से सिखा दिया ! अपने घर में रौशनी तो सब करते हैं, सार्थकता वहीं है जब आप दूसरों के जीवन में और उनके घरों में भी उजाला फैला सकें ! बहुत ही प्रेरक आलेख ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
बचपन को मुस्कराहट देने से बड़ा क्या तोहफा होगा और क्या त्यौहार होगा . अभिनन्दन !
किसी के जीवन में खुशियां लाना ही दीवाली है. मेरे अनुसार यह आपकी सबसे अच्छी दीवाली रही होगी.
शुभकामनाएं
इस से अच्छा काम और हम क्या कर सकते हैं किसी के होंठों को मुस्कान देना आज के युग मे बहुत बडी बात है। बधाई।
बिना खरीददारी किये भी आपने मन की तसल्ली और उन बच्चो के लिए ढेर सी ख़ुशी खरीद ली....
to aapne apni diwali sarthak kar hi li. bahut khub.
असली दीपावली तो आपने मनाई थी । बधाई ।
शब्द शब्द आपका लिखा मैं महसूस कर सकता हूँ....
कुछ महीने पहले की बात है, शायद आपने पढ़ा भी हो मेरे ब्लॉग में...मुझे भी एक छोटी बच्ची से कुछ चीज़ें खरीदने में बहुत खुशी महसूस हुई थी...
इस बार दिवाली के दिन की ही बात है, शाम में कुछ ऐसे ही स्ट्रीट बच्चों को देख मेरे मन में भी यही विचार कौंधा था...और सच मानिए, बहुत बुरा लगा था..
आज छुट्टी में पुरानी पोस्ट देख रहा था जो मुझसे छूट गई थीं.. ये दीवाली तो वास्तव में बहुत अच्छी दीवाली मनाई आपने..क्षमा जी! एक लिंक दे रहा हूँ, मेरी एक कविता का जो बिल्कुल आपके जज़्बात की तर्जुमानी करता हैः
http://chalaabihari.blogspot.com/2010/07/blog-post_20.html
... yaadon ke deep jalte rahen ... aur deepavali mante rahe ... !!!
Hello ji,
Sorry thoda busy hoti hu issliye padd nahi paayi aapka post...
Belated happy diwali nahi kahungi kyunki aapne achhe se feel kar ke likha hai :) shubh deepawali :) toh kya hua thoda late wish kia toh :)
apni khushiyon ko baant ke sabke sath share kar ke manaana hi tyohaar ka sahi matlab hai :)
prem sahit...
Dimple
अपनी ख़ुशी से बढ़कर समझा किसी दुरे की ख़ुशी को तो हर दिन दीवाली है ...काश ऐसे भाव हर ह्रदय में होते तो हर घर में हमेशा दीवाली होती ...शुभकामनायें
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
सही में दिवाली का असली आनंद तो आपको मिला ... वरना पटाखों में क्या रखा है ...
एक टिप्पणी भेजें