नयी पोस्ट नही लिख पा रही हूँ...एक पुरानी पोस्ट दोबारा पेश है!
उस हवेली का प्रवेश द्वार खूब नक्काशी दार लकड़ी और पीतल का बना हुआ था. वहाँ से अन्दर प्रवेश करतेही ,ईंट की दीवारों से घिरा हुआ एक बड़ा-सा बगीचा था. उन दीवारों में जगह,जगह गोल झरोखे बने हुए थे, जहाँ से बाहर का मंज़र दिखाई देता.
बगीचे की आखरी छोर पे बना दरवाज़ा , एक बड़े-से सहन में खुलता. यहाँ पे नीचे फर्श लगाया हुआ था. बीछ में तीन बड़े गद्दे डाले हुए झूले थे. इस सहन के तीनों ओर दो मंजिला मकान था. आगे और पीछे चौड़े बरामदेसे घिरा हुआ.
सहन के ठीक मध्य में, हवेली में प्रवेश करतेही, बहुत बड़ा दालान था. यहाँ भारतीय तरीके की बैठक सजी हुई रहती. अन्य साजों सामाँ नक्काशीदार लकड़ी और पीतल से बना हुआ था. दीवारों पे कहीं कहीं बड़े,बड़े आईने लगे थे. इस दालान के बाद और दो दालान थे. दूसरे दालान में अक्सर जो मेहमान घरमे रुकते थे, उनके साथ परिवार के लोग बाग बैठा करते.पहला दालान दिनमे आने जाने वाले मेहमानों के लिए था. तीसरे दालान में केवल परिवार के सदस्य मिल बैठते. महिलाओं के हाथ में अक्सर कुछ हुनर का काम जारी रहता.
इस हवेली से समंदर का किनारा काफ़ी पास में था. सुबह शाम मुझे वहाँ घुमाने ले जाया जाता था. उन्हीं दिनों ,वहाँ मौजूद ,पूरे परिवार की एक तसवीर खींची गयी थी.
इस बात को अरसा हो गया. वहाँ दोबारा जाने का मौक़ा मुझे नही मिला. एक दिन दादीमाँ के साथ पुरानी तस्वीरें देख रही थी,तो वह तस्वीरभी दिखी. सहसा मैंने दादीमाँ से अपने ज़ेहन में बसे उस मकान का वर्णन किया और पूछा, की, क्या वह मकान वाकई ऐसा था, जैसाकी मुझे याद था?
दादीमाँ हैरत से बोलीं:" हाँ ! बिलकुल ऐसा ही था...! मै दंग हूँ,की,इतनी बारीकियाँ तुझे याद हैं...!"
फिर बरसों गुज़रे. मेरा ब्याह हो गया...मेरे दादा जी के मृत्यु पश्च्यात दादीमाँ एकबार मेरे घर आयीं. मेरी छोटी बहन भी उसी शहर में थी. वह भी उन्हें मिलने आयी हुई थी. तब सपनों को लेके कुछ बात छिड़ी.
मैंने कहा :" पता नही, क्या बात है,लेकिन आज तलक सपनों में मै गर कोई घर देखती हूँ तो वह मेरे नैहर का ही होता है..और रसोई भी वही पुरानी लकड़ी के चूल्हे वाली...मेरे ससुरालवाले भी मुझे उसी घर में नज़र आते हैं..!"
बहन बोल पडी:" कमाल है ! यही मेरे साथ होता है..मुझे वही अपना बचपन का घर दिखता है...!"
इसपर दादीमाँ बोल उठीं:" मुझे शादी के बाद इस मकान में रहते ७२ साल गुज़र गए, पर मुझे आज भी वही खम्बात का मकान, मेरे घर की तौरसे सपनों में नज़र आता है..!"
सहज मेरे मन में ख़याल आया...लड़कियों को कहा जाता है,की, ब्याह के बाद ससुराल का घर ही तुम्हारा घर है...पर जिस मकान में पले बढ़ें, वहाँ की जड़े कितनी गहरी होती हैं, वही मकान अपना घर लगता है,सपनों में सही...!
ऊपर बना भित्ती चित्र उस खम्बात के घर का बगीचा है,जो मुझे याद रह गया..कुछ पेंटिंग, कुछ कढाई और कुछ क्रोशिया..इन सबके ताल मेल से कुछ दिनों पूर्व मैंने बनाया..काश! दादीमाँ के रहते बनाया होता!
31 टिप्पणियां:
कुछ यादे जेहन में हमेशा जिन्दा रहती है..
नॉस्टैल्जिक!!!!
स्मृतियाँ सदा ही उकेरती हैं, रोचक संस्मरण।
गज़ब की प्रतिभावान हैं आप..क्या चित्र उकेरा है यादों के सहारे.
aapki post padhkar apni dadi ki yaad aa gayi !
ये संस्मरण हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जिसे हम बहुत-बहुत मिस करते हैं।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
यादें कभी नहीं मिटती जेहन से.... हमेशा जिंदा रहती हैं.....
बेहतरीन पोस्ट।
स्मृतियां यूं ही जाती नहीं
बहुत सुन्दर...
मायके का घर कभी भूलता नहीं...
बड़ी भावुक सी प्रस्तुति..
सादर.
क्षमा जी यह एक सच्चाई है। लोग चाहे जो कहें पर बचपन का घर अपना होता है और वह गली, वह रास्ता सबकुछ याद आते रहते है, बहुत अच्छी प्रस्तुति।
यादें जीवन भर रहती हैं ....
शुभकामनायें आपको !
अति रोचक संस्मरण
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ...अक्सर ऐसे पल ज़ेहन में आ ही जाते हैं ...आभार ।
लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
behtarin yaaden...!
यादें तो यादें हैं बस. बचपन जीवन भर साथ चलता है.
मुझे मेरी दादी याद आई और घर की रसोई मिटटी के चूल्हे वाली.
आपकी संस्मरण बहुत कीमती लगा.
लड़कियां ससुराल चली जाती है पर यादें भी तो साथ ले कर जाती है
सागर किनारे एकांत में
अकेले बैठकर कभी सोचा है
मन रूपी समंदर के तट पर आती
हुई यादों की हर लहर
छूकर गुज़र जाती है
मन को,
जैसे साहिल को छूकर गुज़र जाती हैं लहरें
और लौटते हुए
दे जाती है, एक नम एहसास,
जिसकी नमी अंतस में उतर कर
न सिर्फ मन को, बल्कि आँखों
को भी कर जाती है गीला
फेर्क सिर्फ इतना होता है कि,
यादों की लहर का पानी
कभी पानी मीठा होता है, तो कभी खारा.... पल्लवी ....
यही जवाब है आपकी इस पोस्ट का समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://aapki-pasand.blogspot.com/
अत्यंत ही भावपूर्ण सस्मरण .....
jis ghar se yaadein judi ho sapne mein bhi wahi ghar dikhta hai. aur shayad aisa hum sabhi ke saath hota hai. daadi ke ghar ka sundar chitran.
यादें कहाँ साथ छोडती हैं...
सोंधी खुशबुयें सब जगह एक सी ही होती हैं न :)
बहुत बारीकी से पिरोया है यादों को इन भित्ति चित्र पे ... अच्छा लगा बहुत ही ...
यादें ..... हमेशा जिंदा रहती हैं !
बहुत सुन्दर एवं रोचक संस्मरण ! बढ़िया लगा!
सुन्दर संस्मरण |
yadon ka sundar silsila
बहुत संदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट " डॉ.ध्रमवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
AK BEHTAREEN PRASTUTI ....PADHKAR DADI MAN KA NAIHAR HAME BHI YAD AA GAYA ...ABHAR.
aapka lekhan to hamesha hi chalchitra ki tarah dimag mein bas jata hai ..or aapki karigari to bejod or nayyaab hai .yakinan ye hamare shivaa bahut logo ne aapse kaha hoga ..shubhkamnayen
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