सिल्क पे water colour ,कढाई और कुछ सूखी,किताबों में मिली घांस.इन से बना यह रेगिस्तान का भित्ती चित्र...
एक अजीब-सा सपना आता मुझे कभी कबार..माथे पे तपता सूरज, जो दिशा भ्रम कराता...पैरों तले तपती रेत ,तलवे जलाती रहती..कुछ दूरी पे,टीलों के पीछे,हरे,घनेरे पेड़ नज़र आते..नीली पहाडी,और उसके ऊपर मंडराते मेघ..साथ ही मृगजल..मै जितना उनके करीब जाती वो उतना ही दूर जाते..मुड़ के देखती तो पीछे नज़र आते..जब तलिए बेहद जलने लगते,सरपे धूप असह्य हो जाती तो मेरी आँख खुल जाती...पसीने से लथपथ,और ज़बरदस्त सर दर्द लिए...
एक दिन मैंने कपडे पे, उस रेगिस्तान को स्मरण करते हुए, जल रंगों से पार्श्वभूमी रंग डाली..और फिर महीनों वो कपड़ा पड़ा रहा..फिर किसी दिन उसपे थोड़ी कढाई कर दी..घांस की पातें सिल दीं..
मुझे हमेशा, रंगीन,फूलों पौधों से भरे हुए चित्र बनाना अच्छा लगता...इस पे दृष्टी डाली और सोचा,पड़ा रहने दो इसे..फ्रेम नही करूँगी...
एक दिन मेरी कुछ सहेलियाँ आई हुई थीं..मेरा काम देख रहीं थीं. मेरी बेटी भी वहीँ थी. अलमारी में से जाने क्या निकाल ने गयी और यह कपड़ा फर्श पे गिर,फैल गया. मै उसे उठा लूँ,उसके पहले सब की नज़र उसपे पडी.
किसीने कहा:" इसे क्यों यहाँ दबा रखा है? यह तो सब से बेहतरीन है...इसे तो मै ले जाउँगी! "( और वाकई वो एक दिन मुझ से बचा के इस चित्र को अपने घर ले गयी..और मै बाद में उसे वापस ले आयी..)
बिटिया: "नही,नही..मासी...यह तो मै रखूँगी..आप कुछ और ले जाइये..मैंने तो इसे देखाही नही था..! "
खैर,बिटिया दुनिया घूमती रही... और बहुत कुछ ले गयी( बाद में सब पीछे छोड़ भी गयी।।।।!),लेकिन इसे कभी नहीं ले गयी.जब कभी इसे देखती हूँ,तो वो कुछ पल ज़हन में छा जाते हैं..और शोर मचाती हैं,कुछ पंक्तियाँ...
नीली पहाड़ियाँ,मेघ काले,
सब थे धोखे निगाहों के,
टीलों के पीछे से झांकते,
हरे,हरे,पेड़ घनेरे,
छलावे थे रेगिस्तान के ...
तपता सूरज माथेपे,
पैरों के जलते तलवे,
सच थे इन राहों के...
10 टिप्पणियां:
चित्र बहुत सुंदर है ...और प्रस्तुतीकरण मार्मिक
तपता सूरज माथेपे,
पैरों के जलते तलवे,
सच थे इन राहों के...
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...रचना के भाव अंतस को गहराई तक छू गये...!!!!
badhiya ...chahta to har koi hariyali hi hai ..registan se kinara karna chahta hai...magar ye hakikat hai...
मन को छूती प्रस्तुति ...आभार
बहुत खूब एक बार फिर
स्वप्नों का चित्र है, मन की स्थिति बताता हुआ..
मर्म को छू के गुज़र जाते हैं शंड ... कितनी यादें सिमित आती हैं किसी एक चीज़ में कभी कभी ... बेजोड चित्र ...
सपनों को चित्रों में ढालना! वाह, क्या बात है! बहुत सुन्दर!
घुघूतीबासूती
चित्र मनभावन है।
बहुत सुन्दर...मन को भावनाओं में डुबो गयी..
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