छोड़ दिया देखना कबसे
अपना आईना हमने!
बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,हो कौन तुम?
पहचाना नही तुम्हे!
जो खो चुकी हूँ मैं
वही ढूंढता है मुझमे !
कहाँसे लाऊँ पहलेसे उजाले
बुझे हुए चेहरेपे अपने?
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने!
फिर एकबार पुरानी रचना पेश कर रही हूँ,माफी के साथ।
अपना आईना हमने!
बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,हो कौन तुम?
पहचाना नही तुम्हे!
जो खो चुकी हूँ मैं
वही ढूंढता है मुझमे !
कहाँसे लाऊँ पहलेसे उजाले
बुझे हुए चेहरेपे अपने?
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने!
फिर एकबार पुरानी रचना पेश कर रही हूँ,माफी के साथ।
24 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भाव........
सूरज साथ ले गया तो अब चाँद भला कैसे चमके...
:-(
अनु
बहुत बहुत बहुत सुन्दर ...गज़ब के भाव और शब्द भी.
अच्छी रचना
आप मेरे ब्लॉग पर आइए..एक योजना है आप पढ़िए और अवगत कराइए.....
अच्छी रचना.
बड़ी सुन्दर रचना..
बड़ी प्यारी सी कविता ,बड़ी सहजता से कही गई बात ....
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने!
बहुत ही गहन भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
सादर
खूबसूरती से उकेरे मन के भाव ....
गहरे भाव लिए रचना....
अच्छी कविता.
बहुत ही सुन्दर कविता |
गहन भाव की प्यारी सी कविता -आईना झूठ नहीं बोलता :-(
भावपूर्ण ... सच है बदलाव के इस युग में पुराना सुलभ सहजता कहाँ से आए ... गहरा अर्थ लिए ...
बहुत सुंदर भाव लिए हुए रचना
पुरानी भले ही हो पर ताज़ा की सी ही महक है
बहुत मर्मस्पर्शी भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर
Marmsparshee !
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
sunder rachana.
sunder prastuti.
सुन्दर रचना
आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे...
बहुत सुन्दर ...फिर वही शब्दों का जादू
आपकी इस रचना को कविता मंच व म्हारा हरियाणा ब्लॉग पर साँझा किया गया है !
http://bloggersofharyana.blogspot.in/
http://kavita-manch.blogspot.in/
संजय भास्कर
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