शामिले ज़िन्दगीके चरागों ने
पेशे खिदमत अँधेरा किया,
मैंने खुदको जला लिया!
रौशने राहोंके ख़ातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला,
सुना, चंद राह्गीरोंको
हौसला ज़रूर मिला....
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
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18 टिप्पणियां:
क्षमा जी,
बहुत अच्छा लगा
रचना भी
और उससे बढकर सक्रिय होने की खुशी हुई
......चंद राहगीरों को
हौसला ज़रूर मिला....
अब सेहर होने को है ,
ये शमा बुझने को है,
जो रात मे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
कितनी गहरी बात कही है आपने
अगर ये 'अदना' है, तो
इसी कद को बरकरार रखियेगा
मुबारकबाद
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
आपके ब्लॉग पर लगी तस्वीर को देख कर बरबस ही निकल गया..............................................................
अपना भी एक नीर हो आसमां हो
अपना भी पंख हो
उड़ने का मन करे तो कभी आसमां न तंग हो
अपनी भी जमीं हो अपना भी जहां हो
अपना भी गीत हो अपनी भी प्रीत हो
संग अपने भी अपना मीत हो
सिमटे न लम्हे कभी मन के उड़न की
गाउं चहक चहक कर नित बसन्त की भोर में
साथी कभी ऐसा भी दुनीया की रीत हों
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
बहुत ही अच्छी कविता लगी आपकी शायद उसका कारण यह भी रहा है मुझे शिवमंगल सिंह जी की रचना ,आपकी कविता पढते पढ़ते याद आगई:-
मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेष //एक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष ।
प्रात जीवन का दिखा दो //फिर मुझे चाहे बुझा दो //यों अंधेरे में न छीनो- हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष ।
Kshama Ji,
Saral aur chhoti si kavita ke bhaav achche hainअब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
Surinder
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
rachnaa mei
bhaavnaaeiN
khud bolti haiN .
... सुन्दर भाव !!!!
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
अच्छी नज़्म......
बहुत सुन्दर लफ़्ज़ों में ढली रचना......
गणतंत्र दिवस की आपको बहुत शुभकामनाएं
Aapko Bhi Ganatantra diwas mubarak .
Bhhawo se sazi, AApki yeh prerak aur sandesh deti rachna bahut achi hai.
बहुत सटीक और मार्मिक चित्रण किया है
दिल को छू गई
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
kitna sateek likha hai ...waah
bahut khob likhti hein aap...
blog par fir se aane ke liye bahut shukriya...aabhaar
मैंने खुदको जला लिया!
रौशने राहोंके ख़ातिर ...
Bahut khub likha hai.Badhai.
आप बहुत अच्छा लिखती हैं ...शुभकामनायें !
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
सेहर देखे या न देखें, रात को तो सेहर कर गये.
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सटीक और मार्मिक चित्रण किया है
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