मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

दूर अकेली चली......

दूर अकेली जाये...

कपडेके चंद टुकड़े, कुछ कढाई, कुछ डोरियाँ, और कुछ water कलर...इनसे यह भित्ति चित्र बनाया था...कुछेक साल पूर्व..


वो राह,वो सहेली...
पीछे छूट चली,
दूर  अकेली  चली  
गुफ्तगू, वो ठिठोली,
पीछे छूट चली...

किसी मोड़ पर  मिली,
रात इक लम्बी अंधेरी,
रिश्तों की भीड़ उमड़ी,
पीछे छूट चली...

धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
जब बनी ज़िंदगी पहेली
वो राह ,वो सहेली...
ये कारवाँ उसका नही,
कोई उसका अपना नही,
अनजान बस्ती,बूटा पत्ती,
बिछड़ गयी कबकी,
वो राह,वो सहेली...


33 टिप्‍पणियां:

nilesh mathur ने कहा…

वाह! क्या बात है! बहुत अच्छा

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

चित्र और कविता दोनों एक दूसरे की पूरक हैं... गंभीर दर्शन छुपा है कविता में..

Tej ने कहा…

aacha likha hai aap ne maja aaya

कुमार राधारमण ने कहा…

हर पुराना कुछ नए के लिए छूटता है। सृष्टि का यह परिवर्तन-चक्र शुभ है।

कुश ने कहा…

ज़िन्दगी एक समय ऐसे ही किसी मोड़ पे ले जाकर छोड़ देती है..

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर! शायद यह हममें से बहुत के मन की बात है।
घुघूती बासूती

BrijmohanShrivastava ने कहा…

वो राह वो सहेली बिछ्ड गई रचना मे दर्द भी और एक कटु सत्य भी ,कटु के वजाय यूनीवर्सल सत्य कहना ठीक होगा शमा का अकेले और धुआं पहन कर जाना एक बहुत अच्छी उपमा ।उसका अपना कोई नही पूर्ण सत्य ।प्रसन्नता का चले जाना और एक लम्बी अन्धेरी रात का आजाना वैसा ही है जैसे ""पहले ही चलना दूभर थी अन्धियारे मे ,तुमने और घुमाव ला दिये गलियारे मे (अन्धेरी रात हो और अपना कोई न हो )सुलगती आग, दहकता ख्याल ,तपता वदन -कहां पे छोड गया कारवां बहारो का ""बहुत ही उम्दा रचना

शारदा अरोरा ने कहा…

आपकी कविता को गा कर पढ़ा , अब बताइये कि इतने उदास क्यों हैं ये जिन्दगी के रास्ते ! इतना उदास लिखने वाले के लिए मुझे बहुत दुःख होता है कि वो ऐसी राहों से गुजरा होगा ....हालांकि ये भी सच है कि लिखने के बाद दर्द भी (channelise ho)बह जाता है | खैर , दर्द भरा गीत जैसे दिल से निकली आवाज़ |

बेनामी ने कहा…

bahut hi darad bahri kavita..
dil mein mein ek aah si uthi...'
bahut he behtareen bhav hain aapki is kavita mein..
hamesha yun hi kihte rahein...
regards
http://i555.blogspot.com/

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

चलते-चलते मिल जाते हैं
खो जाते हैं चलते-चलते
जहाँ न हो चौराहा कोई
ऐसी राह मगर कहाँ है
--आपकी कविता को पढ़कर ये भाव जगे।

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Apanatva ने कहा…

gaharee vedana bhigo gayee.

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत शानदार है। शब्द चयन और जज्बातों का अच्छा घोल..मस्त रचना शरबत ।

बेनामी ने कहा…

कोई शक नहीं कि जिंदगी पहेली है और बिछुड़ना भी जरुरी है नए रिश्ते और नई राह बनाने के लिए क्योंकि फिर जीवन भर उसी पर तो चलना है - सोच और रचना के लिए बधाई

बेनामी ने कहा…

comment moderation क्यूँ?

अंजना ने कहा…

चित्र और कविता दोनों बढिया..

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

आपकी भाषा बहुत ही सशक्त है. आपने शब्दों का चयन भी बहुत अच्छा किया है. रचना बहुत ही सराहनीय है.
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
जब बनी ज़िंदगी पहेली
वो राह ,वो सहेली...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर दर्दभरी कविता है ! ये पढकर मुझे वो गीत याद आ गया " जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते ".

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

Rajeysha ने कहा…

वाकई कपड़ों में प्रकृति‍ के रंगों को चि‍त्रि‍त करना मजेदार लग रहा है

हर्षिता ने कहा…

बहुत शानदार है।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

वक़्त है ये आज साथ है कल नही....
सुन्दर रचना.....

M VERMA ने कहा…

जब बनी ज़िंदगी पहेली
वो राह ,वो सहेली...
सुन्दर और भावपूर्ण
बहुत अच्छा लिखती है आप
सादर

Basanta ने कहा…

Wonderful! I had seen the picture in another blog and I now see the poem too is equally powerful. Very beautiful creation!

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

एक पूरा जीवन वृतांत अंकित कर दिया आपने..लाजवाब!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

Dimple ने कहा…

Hello Kshama ji,

"वो राह,वो सहेली...
पीछे छूट चली"

Itni gehraai aur sab kuch itni sanjeedgi se likha hai...
aapka likhne ka andaaz mujhe pasand aaya kyunki ussmein harr jagaah mujhe ek sachh nazarr aaya!

mere blog pe aapne comments diye, uske liye shukriya!

Prem Sahit,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

kavita aur image dono kamaal hai aapke....aur han ..

"simte lamhe
mere man ke " ye lines zabaan pakad leti hain ...
blog pe aayeen aur aap ka dil khush hua..mera bhi khush hua... :)

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

kavita ke bhav saath me diye chitra bahut hi sudar.aapki yeh kavita shabdo ki gaharai liye bahut kuchh gambhirata ke saath kah gai.
poonam

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aapki kavita behad sashkt avam prabhavshali lagi,saathhichitr bhikhoobsurat hai.

vandana gupta ने कहा…

sach gaya waqt kabhi laut kar nahi aata ........dard ko bahut hi sundarta se baandha hai aur sath hi painting to lajawab hai.

निर्झर'नीर ने कहा…

कपडेके चंद टुकड़े, कुछ कढाई, कुछ डोरियाँ, और कुछ water कलर...इनसे यह भित्ति चित्र बनाया था...कुछेक साल पूर्व..


awaysome

samajh se pare hai ki tariif is भित्ति चित्र ki jyada ki jaye ya is kavita kii ..

........................
mera aajkal kuch likhne ka man nahi karta ..
bas aap jaise log kabhi kabhi bhavo ko shabd de dete hai ..aapki sarahna majboor karti hai kuch likhne ke liye

aabhar

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.