इन पहाड़ों से ,श्यामली घटाएँ,
जब,जब गुफ्तगू करती हैं,
धरती पे हरियाली छाती है,
हम आँखें मूँद लेते हैं..
हम आँखें मूँद लेते हैं...
उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,
ज़हन में छाते जाते हैं...
जब बदरी के तुकडे मंडरा के,
ऊपर के कमरे में आते हैं,
हम सीढ़ियों पे दौड़ जाते है,
और झरोखे बंद करते हैं,
झरोखे बंद करते हैं,
आप जब सपनों में आते हैं,
भर के बाहों में,माथा चूम लेते हैं,
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं,
हम जाग जाते हैं,
बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं..
26 टिप्पणियां:
वाह क्या काम किया गया है कपडे पर.. रचना भी सुन्दर है
bahut sunder kadaee aur utanee hee sunder bhavo se guthee rachana........
bahut sunder kadaee aur utanee hee sunder bhavo se guthee rachana........
aap to pahadon ki vaadion me le gayin.
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं,
हम जाग जाते हैं,
good lines
Very beautiful art and very lovely words! A double masterpiece!
shama ji
aapki painting to moonh se bol rahi hai..............bahut hi sundar banayi hai.
sundar poem...
पहाडी से काली घटा का टकराना (श्यामल, गुफ्तगू )हरियाली के लिए जलब्रष्टि होते वक्त यादों में खो जाना (विरह श्रृंगार ) बदरी को आते देख झरोखे बंद करना कितनी स्वाभाविक बात कही है कभी राम ने कहा था ""घन घमंड नभ गरजत घोरा ,प्रिया हीन डरपत मन मोरा ""इसके बाद के दौनो पद मिलन श्रंगार के "बहुत श्रेष्ठ रचना ।
मेरे ब्लोग पर आपकी टिप्पणी देखी आपने आश्रित के भरणपोषण नकारने की बात कही यह असल मे विधान के इन्टरप्रिटेशन, की भूल थी शब्द His की वजह से| जिसे बाद मे सर्वोच्च न्यायायल ने स्पष्ट किया कि This provision for maintainance of father or mother ..............the word 'his' in clause (d) includes both male and female children .Therefore a married daughter is liable to maintian her parents(AIR1989.1100)
हमेशा की तरह एक और सुन्दर रचना !
और हाँ ... आपकी painting भी लाजवाब है ...
वाह क्षमा जी ! सुन्दर कविता है ... एक अलग रिम झिम सा लय और गति लिए हुए ... बढ़िया लगा ...
PAINTING AUR RACHNA DONO HI DIL ME BAITH GAYI . BAHUT SUNDER DONO HI. BADHAYI.
Chitr bana, Aawaaz sunaayee dee!
Aur kya kahoon?
Umda, utkrisht!
आप जब सपनों में आते हैं,
भर के बाहों में,माथा चूम लेते हैं,
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं...
....दिल में उतर जाती है शब्दों की ये जादूगरी.
आपने तो झगड़ा डाल दिया ..कविता की तारीफ करूँ तो कढ़ाई नाराज़ और कढ़ाई की तारीफ करूँ तो कविता नाराज़ ..वैसे दोनों में एक बात समान हैं... दोनों में प्रकृति उतर आई है..सचमुच!!
Hello Kshama ji,
"उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं"
Bahut khoobsurati se likha hai... Dil ko chooh gaya har lafz :)
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
bahut hi achhi kavita....
padhkar achha laga....
yun hi likhte rahein....
regards
http://i555.blogspot.com/
idhar ka bhi rukh karein.....
मंत्रा ऑफ़ दा डे : "जब अनेक प्रयासों के बाद भी आपके विचार न मिलें तब एक ही उपाय बचता है ...पूर्ण विराम का !" sabse sundar linen hai....ek dum dil tak pahuchti hain....!!
Jai HO Mangalmay HO
कपडे पर की कलाकारी देख दंग हैं...
कविता में नया स्वाद मिला.
waah mujhe to har ek lafj hi khoobsurat laga.... behtareen...
वाह बहुत सुन्दर -स्नेहिल भावों का ये निर्झर -और चित्र भी कितना रूमानी !
दोनों ही मिलकर एक अनुपंम और मोहक भाव लहरी का सृजन कर रहे हैं !
कमाल है !!!!!!!!!!!!!!इतना कुछ कैसे कर लेती हैं आप और हाँ मेरे ब्लॉग पर प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए आभार
पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ....जितनी सुन्दर आपने कढाई कि है उतने ही सुन्दर शब्दों से भाव पूर्ण रचना लिखी है...सुन्दर प्राकृतिक सौंदर्य को बताती सुन्दर रचना
.सुन्दर प्राकृतिक सौंदर्य को बताती सुन्दर रचना
ये चित्र मुझे बहुत पसंद आया. (क्या मै इसे खरीदने की हिमाकत कर सकता हूँ?)
सोचा था इमेल में पूछूँगा.. पर वहां आपका आई.डी मिला नहीं.
sulabh.jaiswal@gmail com
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