सोमवार, 14 जून 2010

रेत के टीले...

सिल्क पे  वाटर colour ,कढाई और कुछ सूखी,किताबों में मिली घांस.इन   से बना यह रेगिस्तान का भित्ती चित्र...



एक अजीब-सा सपना आता मुझे कभी कबार..माथे पे तपता सूरज, जो दिशा  भ्रम कराता...पैरों तले तपती रेत ,तलवे जलाती रहती..कुछ दूरी पे,टीलों  के पीछे,हरे,घनेरे पेड़ नज़र आते..नीली पहाडी,और उसके ऊपर मंडराते मेघ..साथ ही मृगजल..मै जितना उनके करीब जाती वो उतना ही दूर जाते..मुड़ के देखती तो पीछे नज़र आते..जब तलिए बेहद जलने लगते,सरपे धूप असह्य हो जाती तो मेरी आँख खुल जाती...पसीने से लथपथ,और ज़बरदस्त सर दर्द लिए...

एक दिन मैंने कपडे पे, उस रेगिस्तान को स्मरण करते हुए, जल रंगों से पार्श्वभूमी रंग डाली..और फिर महीनों वो कपड़ा पड़ा रहा..फिर किसी दिन उसपे थोड़ी कढाई कर दी..घांस की पातें सिल दीं..
मुझे हमेशा, रंगीन,फूलों पौधों से भरे हुए चित्र बनाना अच्छा लगता...इस पे दृष्टी डाली और सोचा,पड़ा रहने दो इसे..फ्रेम नही करूँगी...

एक दिन मेरी कुछ सहेलियाँ आई हुई थीं..मेरा काम देख रहीं थीं. मेरी बेटी भी वहीँ थी. अलमारी में से जाने क्या निकाल ने गयी और यह कपड़ा फर्श पे गिर,फैल गया. मै उसे उठा लूँ,उसके पहले सब की नज़र उसपे पडी. 
किसीने कहा:" इसे क्यों यहाँ दबा रखा है? यह तो सब से बेहतरीन है...इसे तो मै ले जाउँगी! "( और वाकई वो एक दिन मुझ से बचा के इस चित्र को अपने घर ले गयी..और मै बाद में उसे वापस ले आयी..)

बिटिया: "नही,नही..मासी...यह तो मै रखूँगी..आप कुछ और ले जाइये..मैंने तो इसे देखाही नही था..! "

खैर,बिटिया दुनिया घूमती रही... और बहुत कुछ ले गयी,लेकिन इसे यहीं छोड़ गयी.जब कभी इसे देखती हूँ,तो वो कुछ पल ज़हन में छा जाते हैं..और शोर मचाती हैं,कुछ पंक्तियाँ...

नीली पहाड़ियाँ,मेघ काले,
सब थे धोखे निगाहों के,
टीलों के पीछे से झांकते,
हरे,हरे,पेड़ घनेरे,
छलावे थे रेगिस्तान के ...
तपता सूरज माथेपे,
पैरों के जलते तलवे,
सच थे इन राहों के...

28 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर है.

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर और संवेदनशील!

Apanatva ने कहा…

aapkee kala kee creativity kee jitnee tareef kee jae kum hai...........
milne kee icchaa ho aaee hai..............

Aabhar......

Unknown ने कहा…

मायावी रेगिस्तान में मृगतृष्णा में सच की राहे तलाशती सुन्दर,सशक्त व सार्थक अभिव्यक्ति...शुभकामनाएं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अद्भुत...

abhi ने कहा…

हमने अपनी डायरी में ये पंक्तियाँ नोट कर ली है

:)

vandana gupta ने कहा…

bahut hi sundar..............gazab.

arvind ने कहा…

नीली पहाड़ियाँ,मेघ काले,
सब थे धोखे निगाहों के,
टीलों के पीछे से झांकते,
हरे,हरे,पेड़ घनेरे,
छलावे थे रेगिस्तान के ...
....vaah...aapke kalam me jaadu hai......kamaal ki lekhani.

Vinashaay sharma ने कहा…

बहुत अच्छा लगा यह पड़ कर,इस प्रकार भूली,बिसरी यादें ताजा हो जातीं हैं,कला की तो आप धनी हैं,आपकी कला खूब निखरे ।

Unknown ने कहा…

sabse pahle mafi chahta itne dino se blogging par regular nhi tha...thoda busy tha !abhi bhi thoda sa busy hu!! bt aaj sabse pahle aapke comment dekhe to achha laga...!aapki rachna achhi lagi....asal m bahut achhi lagi! its so real.....!!!

Jai Ho Mangalmay ho

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी कलाकारी बहुत खूबसूरत है....और उसके लिए लिखे शब्द भी

कडुवासच ने कहा…

... बेहतरीन !!!

शोभना चौरे ने कहा…

ati sundar .apki kala bahut khubsurat hai aur udgar bhi

Basanta ने कहा…

सुन्दर कला! सशक्त शब्द!

मनोज कुमार ने कहा…

विषय को कलात्‍मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

बहुत संवेदनशील और भावनात्मक---चित्र भी बहुत अद्भुत।

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

आज अपकी रचना की बात नहीं करुँगा मैं... बस आपकी बात!! अब तक जो भी जाना है आपको, आप आपदमस्तक सम्वेदना की सरिता प्रतीत होती हैं... और उसका कण कण दृष्टिगोचर होता है आपकी रचनाओं में...मेरा यह कमेंट अपने आप में सम्पूर्ण है आपकी समस्त क्रिएटिविटी के लिए!!!

ज्योति सिंह ने कहा…

नीली पहाड़ियाँ,मेघ काले,
सब थे धोखे निगाहों के,
टीलों के पीछे से झांकते,
हरे,हरे,पेड़ घनेरे,
छलावे थे रेगिस्तान के ...
तपता सूरज माथेपे,
पैरों के जलते तलवे,
सच थे इन राहों के...
bha gayi man ko ,bahut khoobsurat rachna .

अरुणेश मिश्र ने कहा…

कितना मनोहर प्रकृति चित्रण है । रोचक एवं आनन्ददायक ।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dil ko chhuti kahani......aur ant me likhi panktiyan....:)bahut khubsurat!!

mujhe follow karna pada!!

Dev ने कहा…

आपकी कलाकारी में भावनाओं का मेल होता है .....बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती .......बहुत खूब .

शारदा अरोरा ने कहा…

कितना दर्द छुपा है इन पंक्तियों में , रेगिस्तान में दूर तक चलना और छले जाने का अहसास ...दोनों रचनाएँ ख़ूबसूरत हैं ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तपता सूरज माथेपे,
पैरों के जलते तलवे,
सच थे इन राहों के...


रेगिस्तान का सच तो ये ही है ... कुछ बीती यादें ज़हन को तड़पाती है .... अच्छा लिखा है बहुत ...

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

Madam meri nazar me aap behtarin kalakar aur lekhika hain.

Avinash Chandra ने कहा…

ye to jabardast hua...kala ko aur klakar ko badhayee

निर्मला कपिला ने कहा…

भावनाओं से ओतप्रोत सुन्दर अभिव्यक्ति\ संवेदनाओं के गहरे सागर मे गोते लगा कर लिखी जाती है ऐसी रचना बधाई

Arvind Mishra ने कहा…

आपकी बहुमुखी सृजन प्रतिभा प्रशंसनीय है -सृजन प्रक्रिया भी अद्भुत !

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

नि:शब्द हूँ आज... ये कैसी मृगतृष्णा है. आपकी कला तो प्रशंशनीय है ही आज कलाकार की बेचैनी भी देख रहा हूँ उसकी रचना में.