शुक्रवार, 25 जून 2010

मैंने क्या सुना?

चंद  साल हो गए इस घटनाको...मै अपनी किसी सहेलीके घर छुट्टियाँ  बिताने गयी थी। सुबह नहा धोके ,अपने कमरेसे बाहर निकली तो देखा, उसकी सासुजी, खाने के मेज़ पे बैठ ,कुछ सब्ज़ी आदि साफ़ कर रही थीं.......१२ लोग बैठ सकें, इतना बड़ा मेज़ था...बैठक, खानेका मेज़ और रसोई, ये सब खुलाही था...

मै उनके सामने वाली कुर्सी पे जा बैठी...तबतक  उन्हों ने सब्ज़ी साफ़ कर,आगेसे थाली हटा दी...मेरे आगे अखबार खिसका दिए और, फ़ोन बजा तो उसपे बात करने लगीं....

उसी दिनकी पूर्व संध्या को, मै मेरी अन्य एक सहेली  के घर गयी थी...ये सहेली उस शहर  के सिविल अस्पताल मे डॉक्टर थी। उसने बडीही दर्द नाक घटना बयान की...और उस घटना को लेके बेहद उद्विग्न भी थी...मुझसे बोली,
" कल मै रात की ड्यूटी पे थी....कुछ १० बजेके दौरान ,एक छोटी लडकी अस्पताल मे आयी...बिल्कुल अकेली...अच्छा हुआ,कि, मै उसे आपात कालीन विभाग के एकदम सामने खडी मिल गयी...उसकी टांगों परसे खून की धार बह रही थी....उम्र होगी ११ या १२ सालकी...

"मै उसके पास दौड़ी और उसे लेके वार्ड मे गयी...नर्स को बुलाया और उससे पूछ ताछ शुरू कर दी...उसके बयान से पता चला कि, उसपे सामुहिक  बलात्कार हुआ था...जो उसे ख़ुद नही पता था...उसे समझ नही आ रहा था,कि, उन चंद लोगों ने उसके साथ जो किया,वो क्यों किया...इतनी भोली थी.....!अपने चाचा के घर गयी थी...रास्ता खेतमे से गुज़रता था...पढनेके लिए, अपने मामा और नानीके साथ शहर  मे रहती थी...शाम ६ बजे के करीब लौट रही थी..."उस" घटना के बाद शायद कुछ घंटे बेहोश हो गयी...जब उसे होश आया तो सीधे हिम्मत कर अस्पताल पोहोंची....नानी के घरभी नही गयी....उसे IV भी चढाने लगी तो ज़रा-सा भी डरी नही...

मै जानती थी,कि,ये पुलिस  केस है...अब इत्तेफाक से मेरे पति  यहाँ पुलिस  विभाग मे हैं,तो, मैंने उसकी ट्रीटमेंट शुरू करनेमे एक पलभी देर नही की...
"वैसेभी, हरेक डॉक्टर को प्राथमिक चिकित्छा  के आधार पे ट्रीटमेंट शुरू करही देनी चाहिए...बाद मे पुलिस  को इत्तेला कर सकते हैं..मैंने अपने पती को तो इत्तेला करही दी...लेकिन, अस्पताल मे भी पुलिस तैनात होती ही है...
वहाँ पे चंद मीडिया के नुमाइंदे भी थे..अपने साथ कैमरे लिए हुए...!

"यक़ीन कर सकती हो इस बातका, कि, उतनी गंभीर हालात मे जहाँ उस लडकी को खून चढाने की ज़रूरत थी...वो किसी भी पल shock मे जा सकती थी..मैंने ऑपरेशन  थिएटर तैयार करनेकी सूचना दी थी...उसे टाँके लगाने थे...और करीब ३० टांकें लगे...इन नुमाइंदों को उसका साक्षात् कार लेनेकी, उसकी फोटो खींचने की पड़ी थी...?
"नर्स , वार्ड बॉय तथा पुलिस कांस्टेबल को भी  धक्का देके, उसके पास पहुँच  ने की कोशिश मे थे....! वो तो मैंने चंडिका का अवतार धारण कर लिया...उस बच्ची को दूसरे वार्ड मे ले गयी...स्ट्रेचर पे डाला,तो उसके मुँह पे चद्दर उढ़ा दी...वरना तो इसकी फोटो खिंच जानी थी ...!"

इतना बता के फिर उसने बाकी घटना का ब्योरा मुझे सुनाया...मै भी बेहद उद्विग्न हो गयी..कैसे राक्षस  होते हैं... हम तो जानवरों को बेकार बदनाम करते हैं...! जानवर तो कहीँ बेहतर...! पर मुझे और अधिक संताप आ रहा था, उन कैमरा लिए नुमाइंदों पे...! ज़रा-सी भी संवेदन शीलता नही इन लोगों मे? सिर्फ़ अपने अखबारों मे सनसनी खेज़ ख़बर छप जाय...अपनी तारीफ़ हो जाय, कि, क्या काम कर दिखाया ! ऐसी ख़बर तस्वीर के साथ ले आए...! सच पूछो तो इस किस्म की संवेदन हीनता का मेरा भी ये पहला अनुभव नही था...जोभी हो!

मै जिनके घर रुकी थी, रात को वहाँ लौटी तो मेरे मनमे ये सारी बातें घूम रही थीं...सुबह मेज़  से जब अखबार उठाये,तो बंगाल मे घटी, और मशहूर हुई एक घटना का ब्योरा पढ़ने लगी...उस "मशहूर" हुए बलात्कारी को फांसी की  सज़ा सुनाई गयी थी, और मानव अधिकार(!) संस्था के सभासदों   ने उसपे "दया" दिखने की गुहार करते हुए मोर्चा निकाला था...परसों वाली  ख़बर भी साथ, साथ छपी थी...! दिमाग़ चकरा रहा था....!

इतनेमे मेरी मेज़बान महिला फोन पे बात ख़त्म कर मेरे आगे आके बैठ गयीं और बतियाने लगीं," आजकल रेपिंग भी एक कला बन गयी है..."

मैंने दंग होके उनकी ओर देखा...! क्या मेरे कानों ने सही सुना ?? मेरी शक्ल पे हैरानी देख वो आगे बोली," हाँ! सही कह रही हूँ...हमलोग तो लड़कियों को ये हुनर सिखाते हैं....!"
कहते,कहते वो, अपनी कुर्सी के पीछे मुड़ के बोलीं ," अरे ओ राधा...ठीक से रेप कर...अरे किसन...तुझे मैंने रेप करना सिखाया था ना...अरे ,तू मेरा मुँह क्या देख रहा है...सिखा ना राधा को...करके दिखा उसको...राधा, सीख ज़रा उससे...ठीकसे देख, फिर रेप कर...!"

मेरी तरफ़ मुडके बोली," कितना महँगा पेपर बरबाद कर दिया...! ज़रा मेरा ध्यान हटा और सब ग़लत रेप करके रख दिया...!"

अब मेरी समझमे आने लगा कि, उस बड़ी-सी मेज़ के कुछ परे, एक कोनेमे,( जो मुझे नज़र नही आ रहा था, और पानी चढाने की मोटर चल रही थी, तो कागज़ की आवाज़ भी सुनाई नही दे रही थी), उनके २ /३ नौकर चाकर , कुछ तोहफे कागज़ मे लपेट रहे थे!

उनके पोते का जनम दिन था ! जनम दिन पे आनेवाले "छोटे" मेहमानों के खातिर, अपने साथ घर ले जानेके लिए तोहपे, "रैप" किए जा रहे थे! ! इन मेज़बान महिला का उच्चारण "wrap"के बदले "रेप" ऐसा हो रहा था....और मै अखबार मे छपी ख़बर भी पढ़ रही थी....तथा,पूर्व संध्या को सुनी "उस" ख़बर का ब्योरा मनमे था....ग़नीमत थी,कि, लडकी का नाम पता नही दिया था...! ज़ाहिर था, उन्हें मिलाही नही था...!

लेकिन चंद पल जो मै हैरान रह गयी, उसका कारण केवल मेरे दिमाग़ का" अन्य जगह" मौजूद होना था...वरना, मुझे इन उच्चारणों की आदत भी थी.....! जब मुझे ऐसा सदमा मिला था,तो उस बालिका पे क्या गुज़री होगी???

20 टिप्‍पणियां:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अन्‍दर तक हिला देने वाली घटना। वास्‍तव में हमारा मीडिया संवेदनहीन हो चुका है।

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

इस पोस्ट पर टिप्पणी???? नहीं दे सकता क्योंकि जो दिल को हिला दे और सोचने के लिये मज़बूर कर दे उस पर अपना वक्तव्य दे सकूं एसा कोई शब्द नहीं सिवा इसके कि जानवर अच्छे

Unknown ने कहा…

इन दरिंदों के अलावा महिला डाक्टर की तरह कुछ अछे लोग भी हैं इस धरती पर नहीं तो इन जानवरों ने तो इसे नर्क ही बना दिया है.
बहुत ही भावनात्मक पोस्ट ..

विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com

श्यामल सुमन ने कहा…

जिस घटना का आपने जिक्र किया - वह तो दुखद है ही। सचमुच जानवर से गए गुजरे व्यवहार इन्सान कर गुजरते हैं। लेकिन आलेख का अंतिम भाग बहुत ही रोचक लगा। अच्छी प्रस्तुति आपकी।

संभव हो तो पती को पति और सहीली को सहेली कर दें - जो लगता है टंकण की गलती से हुआ है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

यह संस्मरण सिर्फ एक घटना से जुड़े संस्मरण नहीं है. जब इंसानी बस्ती के बीच में हैवानियत दौरती है तो कही संवेदना अपना मानवीय फ़र्ज़ अता करती है तो कहीं
संवेदनहीन हो चुके मशीनी लोग इसे बाजारू बना देते हैं. क्या अच्छा महसूस करूँ मैं आज भी समाज में....! खैर आपने अपने मनःस्थिति को इस संस्मरणात्मक पोस्ट में सफलतापूर्वक पिरोया है. यह घटना घुमरती रहेगी.

Meenu Khare ने कहा…

अन्‍दर तक हिला देने वाली घटना।

Ajayendra Rajan ने कहा…

duniya me kitna gum hai ...mera gum kitna kum hai...logon ka gum dekha to...mai apna gum bhool gaya...

vandana gupta ने कहा…

अमिताभ जी से पूरी तरह सहमत हूँ और कुछ भी कहने की स्थिति मे नही हूँ।

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिसकी सज़ा क़ानून के दायरे में नहीं आती है... इस घटना ने स्व. बी आर चोपड़ा की फिल्म इंसाफ का तराज़ू की याद दिला दी... और शायद वही सज़ा है इस अपराध की... और सज़ा सिर्फ अपराधियों को ही नहीं, उन मीडिया वालों को भी मिलनी चाहिए, जिनके लिए उस मासूम की इज़्ज़त का लुटना एक खबर से ज़्यादा कुछ नहीं है...सम्वेदन्हीनता की पराकाष्ठा...

बेनामी ने कहा…

sach mein itna kuch padhne ke baad ab likhne ki himmat nahi reh gayi hai.....

Dev ने कहा…

मानवता भी शर्मसार है .......कुछ कह नहीं सकते ऐसी घटना पर ......बहुत दुःख की बात हैं .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ओह , कितनी वीभत्स घटना....

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

सोच को हतप्रभ कर देने वाली प्रस्तुति...

M VERMA ने कहा…

हम तो जानवरों को बेकार बदनाम करते हैं...! जानवर तो कहीँ बेहतर...!
इंसानी फितरत और हैवानियत देखकर तो यही लगता है कि जानवर ही बेहतर हैं

निर्मला कपिला ने कहा…

इन्सान की संवेदनायें किस कदर मर रही हैं इस घटना से बडा उदहारण क्या हो सकता है? निशब्द। शुभकामनायें

दीपक 'मशाल' ने कहा…

आजकल मीडिया में हृदयविहीन लोग ही ज्यादा हो गए हैं... रैप का रेप हो गया उनसे.. होता है ऐसा..

kunwarji's ने कहा…

MAARMIK....

kunwar ji,

abhi ने कहा…

कुछ टिपण्णी देने लायक नहीं हूँ मैं फ़िलहाल...क्या कहें..

शोभना चौरे ने कहा…

kuchh bhi bya nahi kar sakti

संजय भास्‍कर ने कहा…

निशब्द..........।