यह लडकी अपने दादा दादी ,माता, पिता तथा भाई बहनों समेत उनके खेत में बने मकान में, रहा करती थी. उसके दादा जी उसे रोज़ सब से करीब वाले बस के रास्ते पे अपनी कार से ले जाया करते.बस उसे एक छोटे शहर ले जाती जहाँ उस की पाठशाला थी.
जब से सिम्बा दो माह का हुआ वह भी गाडी में कूद जाया करता. जब कभी वो बच्ची बिना uniform के बाहर आती तो उसे गाडी के तरफ दौड़ने की परवाह न होती. वो तीनो एक दोराहे तक जाते जहाँ से बच्ची बस में सवार हो,चली जाती. हाँ,दादाजी को हमेशा सतर्क रहना पड़ता की,कहीँ सिम्बा गाडी से छलांग न लगा ले!
आम दिनों की तरह वो भी एक दिन था. लडकी बस में सवार हो गयी. जब बस स्थानक पे बस रुकी और वो उतरी तो देखा,सिम्बा बस के बाहर अपनी दम और कान दबाये खडा था! बड़े अचरज से उस के मूह से निकला," सिम्बा..!"
और सिम्बा अपना डर भूल के बच्ची के नन्हें कंधों पे पंजे टिका उस का मूह चाटने लगा...! बस का वह आखरी स्थानक था. बच्ची को सब प्रवासी जानते थे...सभी अतराफ़ में खड़े हो,बड़े कौतुक से , तमाशा देखने लगे!
ज़ाहिरन,सिम्बा उस कच्ची सड़क पे आठ नौ किलोमीटर, बस के पीछे दौड़ा था...और उसे लेने दादाजी को बस के पीछे आना पडा. अब सिम्बा को कार में बिठाने की कोशिश होने लगी. उसे विश्वास दिलाने के ख़ातिर, बच्ची कार में बैठ गयी...पर सिम्बा को विश्वास न हुआ...मजाल की वह कार में घुसे!
बच्ची को पाठशाला के लिए देर होने लगी और अंत में उसने अपनी शाला की ओर चलना शुरू कर दिया. सिम्बा उसके पीछे, पीछे चलता गया. अपनी कक्षा पे पहुँच बच्ची ने फिर बहुत कोशिश की सिम्बा को वापस भेजने की,लेकिन सब व्यर्थ! अंत में वर्ग शिक्षिका ने कुत्ते को अन्दर आने की इजाज़त देही दी! वो दिनभर उस बच्ची के पैरों के पास, बेंच के नीचे बैठा रहा!
उस समय सिम्बा साल भरका रहा होगा. बच्ची थी कुछ दस ,ग्यारह साल की..उस शाम जब दादा जी,सिम्बा और बच्ची घर लौटे तो सिम्बा की तबियत बिगड़ गयी....कभी न ठीक होने के लिए..जो तीन दिन वह ज़िंदा रहा,दिन भर बरामदे में,अपने बिस्तर पे पडा रहता. ठीक शाम सात बजे वह अपनी आँखें खोल ,रास्ते की ओर निहारता..जहाँ से वो बच्ची उसे आते दिखती...बच्ची आके उसका सर थपकती और वो फिर अपनी आँखें मूँद लेता. उसकी बीमारी के लिए कोई दवा नही थी.
तीसरी रात,पूरा परिवार सिम्बा के अतराफ़ में बैठ गया. सब को पता था,की,अब वह चंद पल का मेहमान है...लेकिन सिम्बा अपनी गर्दन घुमा,घुमा के किसी को खोज रहा था. बच्ची अपने कमरे में रो रही थी. उस में सिम्बा के पास जाने की हिम्मत नही थी. अंत में दादा जी बच्ची को बाहर ले आए...जैसे ही बच्ची ने सिम्बा का सर थपका,सिम्बा ने अपनी आँखें बंद कर ली...फिर कभी न खोली..वह लडकी और कोई नही,मै स्वयं थी...
The little girl & her family lived on a farm, in India. The grandpa would drop off the girl to the nearest State Transport bus route. The bus would take her to the small town where her school was located.
Every morning,ever since Simba was two months old, he would wait for the girl to come out in her uniform & would rush & jump along with her in the car.If the kid was in plain clothes,he never bothered! The trio would then drive down to a particular spot, to catch the bus. Grandpa had to be very careful about holding Simba back till the girl boarded the bus.
It was yet another,usual day.The girl got in the bus on her way to school.When she alighted, to her utter surprise, Simba was right there,standing very sheepishly!The onlookers who were regular commuters, watched the scenario with amusement! By then Grandpa too had driven in.Obviously,Simba had chased the bus for all those 8/9 kilometers on the muddy tracks!Grandpa had to follow! The kid gasped & exclaimed,"Simba!"
Suddenly Simba was guilt free & jumped on those tiny shoulders,front paws firmly planted, licking her face & wagging his tail frantically!The onlookers,who were familiar with the kid & the dog, were deeply moved! Grandpa now needed to take Simba back home but he just won't budge! Finally the girl was made to sit in the car to reassure Simba,that she too was going to be with him. But Simba was too sharp to fall into the trap! He refused to get into the car!!
The girl by now,was getting late for her classes, thus started walking towards the school.Simba followed her, & believe it or not, sat next to her bench the whole day! The class teacher had to allow!
At this point of time ,Simba was about a year old. The same evening he fell sick,never to recover.But all those three days that he lived & laid miserably on his bedding in the veranda,dot on 7pm.would glue his gaze to the drive way, from where the girl walked in & once he was patted,he would close his eyes & rest.
Third night, the entire family gathered around Simba. All knew that it was just a matter of moments now.The little girl was too grief stricken to come out.But Simba kept lifting his head & rolling his eyes,as if looking for someone. The kid was persuaded to come out. She stroked his head & Simba closed his eyes,instantly,forever.
The family had many dogs subsequently,named after Simba but none matched THAT simba. Till date HE is not forgotten. That little girl was no one else but me.
17 टिप्पणियां:
Such a great real life story about an intimate relationship between two beautiful souls. Reading your narration, I can vividly picture Simba and the little girl. A heart touching one!
Thank you for sharing!
मार्मिक प्रस्तुति!
कुत्ते तो परिवार के सदस्य हो जाते हैं।
मेरे पास एक गोल्डन रिट्रीवर था। अब नहीं रहा। अक्सर बच्चे मुझसे कहते थे - अंकल, क्या आप मुझे इसका पप दे सकते हैं।
वह आज भी मेरे जहन में है।
क्षमाजी उस समय... सिम्बा के अंत समय... आप पर क्या बिती होगी..मै समझ सकती हूं!...आगे कुछ कहने लिये शब्द ही नहीं है!
क्षमाजी उस समय... सिम्बा के अंत समय... आप पर क्या बिती होगी..मै समझ सकती हूं!...आगे कुछ कहने लिये शब्द ही नहीं है!
woww....i dont know what to say...
sahi mein...speechless
गजब लिखा है !!
दिल को छू लेने वाली दास्ताँ । मुझे बचपन की घटना की याद दिला दिया आपने । कुछ ऐसा ही यादगार लम्हा है ।
लाजवाब,बेहतरीन....आंखे भर आयीं,आप की इस आपबीती ने तो झकझोर के रख दिया ..
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ! कुछ बातें एहसास करने के लिए होती है ... कुछ एहसासों को शब्द देना मुश्किल है ... पर आपने कम शब्दों में जो कहना था कह दिया ...
मार्मिक....प्यार की भाषा हर जगह बोलती है....भले ही मूक प्राणी ही क्यों ना हो ..
कुछ रिश्ते शायद इंसानी रिश्तों से भी ऊपर होते हैं…………………बेहद मार्मिक चित्रण्………………ज्यादा कहने की हिम्मत ही नही है।
ek marmik prastuti........dil ko chhuti hui rachna........na chahte hui bhi aankhe jabab de gayee......!!
संवेदनशील रचना है।
आज कुछ नहीं कहूँगा... ये भी इसलिए लिखा ताकि आमद दर्ज़ हो सके!!
पिछले दो तीन दिनों से थोडा व्यस्त था अतः ब्लॉग देख नहीं पाया. अभी पुराने पोस्ट हुए सभी ब्लॉग देखे पढ़े पर टिपण्णी सिर्फ इस ब्लॉग पर कर रहा हूँ क्योंकि दिल कर रहा है. क्षमा जी मैंने बचपन से तरह तरह के जानवरों को पाला है. वो जिनको पाला जाता है जैसे कुत्ता, बिल्ली, तोता, कबूतर इत्यादि और वो भी जिन्हें पाला नहीं जाता जैसे कछुआ, छिपकली, साप, मेढक इत्यादि. इन सब से बिछड़ना भी हुआ है. बिछड़ के रोया भी खूब. बहुत सारी भावुकता भरी यादें भी हैं पर कभी अपनी भावनाओं को कागज पर व्यक्त नहीं कर पाया. आपकी अभिव्यक्ति अच्छी लगी.
बेहतरीन.....
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