कुछ सिल्क के टुकड़े,कुछ खादी के,और बाकी कढाई से बनी घांस-फूंस ....कुँए की ओर जाती पगडंडी..और एक मंडवा..
अपने बचपन की एक यादगार लिखने जा रही हूँ...! या तो रेडियो सुना करते थे हम लोग या रेकॉर्ड्स......हँडल घुमा के चावी भरना और "his master's voice" के ब्रांड वाले ग्रामोफोन पे गीत सुनना...
एक रोज़ मैंने अपनी माँ से सवाल किया,
"अम्मा ! अपने कुए के पास कोई जल गया?"
अम्मा: " क्या? किसने कहा तुझसे...?कोई नही जला...! " मेरी बात सुनके, ज़ाहिरन, अम्मा काफ़ी हैरान हुईं !
मै : "तो फिर वो रेडियो पे क्यों ऐसा गा रहे हैं.....वो दोनों?"
अम्मा: " रेडियो पे? क्या गा रहे हैं?" अम्मा ने रेडियो की आवाज़ पे गौर किया...और हँसने लगीं...!
बात ही कुछ ऐसी थी...उस वक़्त मुझे बड़ा बुरा लगा,कि, मै इतनी संजीदगी से सवाल कर रही हूँ, और माँ हँस रही हैं...!
हमारे घर के क़रीब एक कुआ मेरे दादा ने खुदवाया था।उस कुए का पानी रेहेट से भर के घर मे इस्तेमाल होता था... उस कुए की तरफ़ जाने वाले रास्ते की शुरू मे माँ ने एक मंडवा बनाया था...उसपे चमेली की बेल चढी हुई थी... अब तो समझने वाले समझ ही गए होंगे, कि, मैंने कौनसा गीत सुना होगा और ये सवाल किया होगा...!
गीत था," दो बदन प्यार की आग मे जल गए, एक चमेली के मंडवे तले..."!
अम्मा: " अरे बच्चे...! ये तो गाना है...! "
मै: " लेकिन अगर उस मंडवे के नीचे कोई नही जला तो, दो बदन जल गए ऐसा क्यों गा रहे हैं, वो दोनों?"
अम्मा: "उफ़ ! अब मै तुझे कैसे समझाऊँ...! अरे बाबा, वो कुछ सच मे थोड़े ही जले...तू नही समझेगी..."
मै:" प्यार की आग, ऐसा क्यों गा रहे हैं? ये आग अपने लकडी के चूल्हेकी आग से अलग होती है ? उसमे जलने से मर नही जाते? और जलने पर तो तकलीफ़ होती है..है ना? मेरा लालटेन से हाथ जला था, तो मै तो कितना रोई थी... तो ये दोनों रो क्यों नही रहे...? गा क्यों रहे हैं? इनको तकलीफ नही हुई ? डॉक्टर के पास नही जाना पडा? मुझे तो डॉक्टर के पास ले गए थे...इनको इनकी माँ डॉक्टर के पास क्यों नही ले जा रही...? "
मेरी उम्र शायद ५/६ साल की होगी तब...लेकिन, ये संभाषण तथा सवालों की बौछार मुझे आज तलक याद है...
कुछ दिन पूर्व, अपने भाई से बतियाते हुए ये बात निकली तो उसने कहा,
" लेकिन आपको इतने बचपनमे 'मंडवे' का मतलब पता था? मुझे तो बरसों 'मंडवा' किस बला को कहते हैं, यही नही पता था...!"
बुधवार, 30 जून 2010
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14 टिप्पणियां:
चमेली के मंडवे तले, क्या बात है? बहुत ही दिलचस्प संस्समरण।
हा हा इस गाने ने कईयों को छकाया है -यह खाकसार भी ..मंडवा गाने में सुन कर उसकी खोजबीन की गयी ..खैर इस जलने का मतलब उस जलने से फर्क था यह तो मैं अहसास कर गया था ...५-६ की उम्र मेरी भी रही या कुछ अधिक ...आप कैसे समझ नहीं पायीं ? जबकि लडकियां तो लड़कों से थोडा पहले ही समझदार हो जाती हैं ..... :)
अतीत की पगडंडियों में आपकी हस्तकला भी पीछे खीचे ले जा रही है ...एक तंद्रा सी तारी हो आयी
3 टिप्पणियाँ:
डा० अमर कुमार ने कहा…
सँस्मरण अच्छा लगा ।
तो आप कभी बच्ची भी थीं ?
ऊई अल्लाह..
:) :)
मजेदार संस्मरण...
अच्छा लगा आपके बचपन की यादें पढ़ कर ......
दिलचस्प संस्समरण।
......
मख़दूम मोईउद्दीन का ये क़लाम वाक़ई बड़ा ख़ूबसूरत है… मेरे बचपन से भी जुड़ा है, पर किसी और कारण से. पता नहीं क्यूँ मेरे चाचा जी को ये गाना बिल्कुल पसंद नहीं था.. बजते ही वो रेडियो बंद कर देते थे. लेकिन एक़बाल क़ुरेशी का संगीतबद्ध किया ये गाना है बहुत ही मधुर.
मासूम याद!
Nostalgic! Childhood is so innocent.
And as always, loved the art too.
आप की कढ़ाई बड़ी खूबसूरत होती है..
बहुत सुन्दर संस्मरण.
और फिर कढ़ाई का सुन्दर नमूना और उसमें मंडवा
बहुत खूब
बहुत सुन्दर संस्मरण.
और फिर कढ़ाई का सुन्दर नमूना और उसमें मंडवा
बहुत खूब
बहुत ही दिलचस्प संस्मरण है ... अच्छा लिखती हैं आप बहुत ही ......
बहुत सुन्दर संस्मरण.
और दिलचस्प.....
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