रविवार, 1 अगस्त 2010

हिमशिखा.

कुछ साल पहले की बात है. हमलोग ,बहन और उस के बच्चों के साथ हिमालय में घूमने गए. बहन को हिमाच्छादित पर्वत  राशियाँ देखने का बेहद मन था. इससे पहले हम जब रानीखेत आए थे,तो वहाँ बने वन विभाग के विश्राम गृह से कैलाश पर्वत का त्रिशूल सूर्योदय के समय देखा था. क़ुदरत का वो अनुपम  नज़ारा मेरी निगाहों में बस गया था. अफ़सोस, के इस बार जब हम गए तो  वहाँ के गड़रियों  द्वारा वनों में लगाई जानेवाली आग के कारण फिजाओं में धुंआ ही धुंआ था.  लगातार चौथे दिन भी निराशा ही हाथ लगी. एक रात मैंने सपना देखा. ख़्वाबों से मंज़र...बहके नज़ारे..सिहरन पैदा करती सबा...हीरों -सी चमकती,हिमाच्छादित पर्वत राशी...उस पे उतरा पूनम  का चाँद...मानो हाथों से उसे छुआ जा सके...आँखें खुली तो कुछ पल यक़ीन ना हुआ की वो एक सपना था...हिमपर्वत तो दिखे नही,गरमी ने अलग परेशान किया! विश्राम गृह में तो पंखा तक नही था...! ये क़ुदरत के साथ कैसा खिलवाड़ था...??
उसी सपने को याद कर मैंने एक भित्ती चित्र बनाया...सिल्क के कपडे पे नीले,हलके गुलाबी और सफ़ेद जल रंगों से पार्श्वभूमी बना ली.रुपहले कपडेमे से चाँद काटा  और सिल लिया...ऊपर से धुंद  दिखाने  के लिए chiffon लगा दिया.. पेड़ कढाई से बना लिए.  बर्फ के लिए packing से मिली सिंथेटिक रुई   टांक दी.अब के रचना पहले लिखी गयी थी...क्योंकि सपना याद आ रहा था..तसवीर साफ़ नही आयी है...क्षमा चाहती हूँ.

रानी-सी रात ने ओढी,
चाँद टंकी,चुनर श्यामली,
हिमशिखा पे उतर आयी,
चांदी-सी चमकती शुभ्र चांदनी,
सजी फिज़ाएँ,लजीली दुल्हन-सी,
मुबारक हो!क़ुदरत बलाएँ  लेने लगी..

19 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर। अति सुंदर!
अद्भुत!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी कला को नमन ....बहुत खूबसूरत भट्टी चित्र....और उस पर लिखी पंक्तियाँ ...बस मन खुश हो गया ...

Dev ने कहा…

बहुत सुन्दर .......अपने सपने को आपने कला में उतार दिया है .....लाजवाब .

happy friendship day.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

क्षमा जी
अद्भुत है.....

हर बार बस इतना ही कह पाते हैं...
एक सवाल पूछें?

’बता(ओ) ये हुनर तू(म)ने सीखा कहां से’.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर !!

ज्योति सिंह ने कहा…

रानी-सी रात ने ओढी,
चाँद टंकी,चुनर श्यामली,
हिमशिखा पे उतर आयी,
चांदी-सी चमकती शुभ्र चांदनी,
सजी फिज़ाएँ,लजीली दुल्हन-सी,
मुबारक हो!क़ुदरत बलाएँ लेने लगी..

tasvir ho yaa kalam dono hi laazwaab

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

क्षमा जी,
क्षमा याचना सहित, आज आपकी कलाकृति पर अपने शब्द गढने से रोक न पाया खुद को... आपकी कला और कविता दोनों लाजवाब हैं...

चाँद की दुल्हन
जड़े हुए तारों की सुरमयी चादर ओढे
घूंघट में शर्माती
झुक कर आई यहाँ पर.
बर्फ के उजले बालों वाले पेड़ों और पर्बत से
मिलकर,
पैर को छूकर
लेने को आशीष बुज़ुर्गों का धरती पर.

Apanatva ने कहा…

ati sunder. jitnee bhee tareef kee jae kum hee hai.........
adbhut kala kshamata.........

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर!

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

शमा जी आप एक बहुत अच्छी लेखिका और उससे भी बेहतर कलाकार हैं. रानीखेत के पास ही मेरा गाँव है अतः आपकी इस कलाकृति से जुड़ा हुआ महसूस कर रहा हूँ. बहुत सुन्दर.

हमारीवाणी ने कहा…

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शारदा अरोरा ने कहा…

सुन्दर चित्र और प्यारी सी कविता

वाणी गीत ने कहा…

सुन्दर चित्र ...
उम्दा लेखन ...!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

क्षमा जी, चित्र और कविता का सुंदर सामंजस्य।


…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?

vandana gupta ने कहा…

गज़ब का चित्र उकेरा है और उसके साथ कविता का संयोजन उस मे चार चाँद लगा दिये हैं ………………बहुत ही सुन्दर कल्पना शक्ति है।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aapki kalpana shakti ko naman!!

jitni khubsurati se aapne chitra banaya, waise hi kavita ki rachna bhi kiy..........:)

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Saadar Vande!
Abhibhoot hua!
Badhai evam Dhanyawaad!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर चित्र और प्यारी सी कविता

Dimple ने कहा…

Hello once again :)

"मुबारक हो!क़ुदरत बलाएँ लेने लगी.. "

Picture and content both are made for each other :) just like best couples ;-)

Very nice work done :)

Regards,
Dimple