मंगलवार, 17 अगस्त 2010

सूरज मुखी..



21 टिप्‍पणियां:

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

हम भी सूरजमुखी बने आपकी पोस्ट पर एक शिल्पकला के सूरज को खोजते हैं, कभी दिख गई, कभी न दिखी... लेकिन आपकी कविता, लेख, संस्मरण सब अपने आप में एक सूरज की तरह चमकते नज़र आते हैं..हमें अपनी तरफ खींचते!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह ...गज़ब की कारीगरी ..और कविता भी बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

बेनामी ने कहा…

bahut hi khubsurat kaarigiri...aur kavita bhi umdaah....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

बहुत खूबसूरत....
राजगोपाल सिंह जी का एक शेर याद आ गया-
बाग के वातावरण से बेखबर सूरजमुखी
जिस तरफ़ सूरज चले जाए उधर सूरजमुखी.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

वाह जी क्या बात है...एक दम परफेक्ट चित्रकारी में भी लेखन में भी.और ....और जिंदगी में भी.
बधाई.

Arvind Mishra ने कहा…

आप महज शब्द शिल्पी नहीं ,बहु कला शिल्पी हैं -बस मंत्रमुग्ध हूँ!

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्षमाजी!..
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

आपके कढ़ाई के कार्य को देखकर पता चलता है की माध्यम कोई भी क्यों ना हो एक उत्तम कलाकार अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति आसानी से कर लेता है. इससे पहले मैंने कभी देखा या सोचा ना था की कोई कढ़ाई के द्वारा भी प्रकृति का इतना सुन्दर चित्रण कर सकता है.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

सूरजमुखी के बारे में मालूम था लेकिन आज उसके सच्‍चे अर्थ आपकी पोस्‍ट ने समझाए। बहुत अच्‍छी पोस्‍ट आपको बधाई।

vandana gupta ने कहा…

शमा जी
यही तो आपकी कारीगरी है …………………सभी जीवंत हो उठीं………………इसके साथ कविता बेहद शानदार है।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

surajmukhi ki tarah aap bhi suraj ko apna chehra dikha kar lalkar sako..........dekh main nahi darti tere ooj se........:)
aiseee subhkamna hai meri......:)

bahut sundar kriti!!

शारदा अरोरा ने कहा…

वाह वाह क्षमा जी , एक एक टाँका किस नफासत से उभारा है , कितना वक्त और कितना धैर्य !...कौन जानता है सूरज मुखी की यात्रा , सूरज का मुंह देखते देखते ...धरती पर चलने का कोई बहाना तो चाहिए न ..!

abhi ने कहा…

bahut sundar..:)

Deepak chaubey ने कहा…

bahut sundar sansmaran aur surajmukhi ...............

राजभाषा हिंदी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति!

हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना प्रस्तुत किया है आपने! आपकी कारीगरी के बारे में जितना भी कहा जाए कम है! बेहद ख़ूबसूरत लगा!

ज्योति सिंह ने कहा…

ना जाने कब बन गयी,
ज़िंदगी का प्रतीक सूरज मुखी?
रात चाहे रही अमावस की,
उसकी भोर रौशन रही!
चाहे छाई बदरी कारी,
सूरज मुखी ने दिशा बतायी!
दिखे न दिखे उस ओर घूम गयी,
उसी की ओर रुख करती रही!
kavita ke bhav bahut hi achchhe lage ,ye phool mujhe bachpan se behad pasand hai aur kapde se ise banaya bhi hai ,iski khoosurati par kavi ki kalpana udan na bhare ye to namumkin hai .aur aap to ise har rang me saja di .

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ना जाने कब बन गयी,
ज़िंदगी का प्रतीक सूरज मुखी?
रात चाहे रही अमावस की,
उसकी भोर रौशन रही!
चाहे छाई बदरी कारी,
सूरज मुखी ने दिशा बतायी!...

सार्थक संदेश दिया है आपने इस रचना में ... आशा और नयी स्फूर्ति ले कर आता है सूरज और आपने अपनी चित्रकारी और रचना दोनो में उसे बाखूबी उतारा है ...

vijay kumar sappatti ने कहा…

SHAMA JI , NAMASKAR
DERI SE AANE KE LIYE MAAFI CHAHUNGA
AAPKI YE ART TO MAI DEKH CHUKA HI HOON SO .. IS ART KE BAARE ME KUCH BHI KAHNA SURAJ KO CHAAND DIKHANA HONGA ...

AAPNE ITNI ACCHI POST LIKHI HAI KI KYA KAHUN .. AAJ HI HONEY KO KAH RAHA THA KI TUMHE SHAMA BUA SE MILNE JAANA HAI ..

DEKHTE HAI , WO MUBARAK DIN KAB AATA AHI ..

AAPKA

VIJAY
BADHAI

VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html